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मशहूर मैथेमेटिक्स गुरु आरके श्रीवास्तव और आनंद की सफलता के पीछे है मां का हाथ
‘मां’ जितना संक्षिप्त शब्द, उसका सार उतना ही विशाल है। मां ही है जो अपनी औलाद पर कोई मुश्किल आने ही नहीं देती। फिर चाहे मुश्किलों की राह में उसे खुद ही क्यों न चलना पड़े।
जिंदगी मिलती है कुछ कर गुजरने के लिए ही, अगर इसे सलिके से संवारा जाए तो वहीं आगे चलकर इतिहास बन जाता है। लेकिन उस इतिहास के बनने से पहले कितने संघर्ष के रास्तों से गुजरना पड़ता है… इसे जानने के लिए पढ़िए "मदर्स दे पर" एक खास रिपोर्ट
‘मां’ जितना संक्षिप्त शब्द, उसका सार उतना ही विशाल है। मां ही है जो अपनी औलाद पर कोई मुश्किल आने ही नहीं देती। फिर चाहे मुश्किलों की राह में उसे खुद ही क्यों न चलना पड़े। हम ऐसी ही माताओं को नमन कर रहे हैं, जिन्होंने खुद अकेले दम पर अपने बच्चों की जिंदगी सवारी, कांटों भरी राह पर खुद चलीं लेकिन बच्चों को इसका एहसास तक नहीं होने दिया। आइए रूबरू कराते है कुछ ऐसी ही माताओं से जो बिना पति के भी बच्चों को अकेले संभाल बनाया देश का गौरव। आपको आज सपुर 30 फेम आनंद कुमार की माँ जयंती देवी और मैथमेटिक्स गुरु फेम आरके श्रीवास्तव की माँ आरती देवी के संघर्षो से आपको रूबरू कराते हैं।
आरती देवी (आरके श्रीवास्तव की माँ)
जब आरके श्रीवास्तव बचपन मे पांच वर्ष के थे तभी उनके पिता परास नाथ लाल इस दुनिया को छोड़ चले गये। एक पिता के न होने से एक परिवार को कितना तकलीफे आर्थिक और सामाजिक रूप से होता है ये सभी जानते हैं। आरती देवी ने काफी गरीबी के दौर से गुजरते हुए अपने बेटे रजनी कांत श्रीवास्तव (आरके श्रीवास्तव ) को पढ़ा लिखा एक काबिल इंसान बनाया। आरके श्रीवास्तव बताते है कि माँ के आशिर्वाद के बिना कोई भी उपलब्धि को पाना असंभव।
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माँ के योगदान को शब्दों में बताना सम्भव नहीं
आरके श्रीवास्तव कहते हैं कि अपने सफलता में माँ के योगदान को शब्दों में बताना सम्भव नहीं है। इस विश्व के सारे कागज और स्याही भी कम पड़ जाये माँ के संघर्षों को व्याख्यान करने में। पति के बिना अकेले दम पर बेटे बेटियों को पालना- पोषणा और उन्हें पढ़ा लिखा काबिल इंसान बनाना। बचपन मे गरीबी के दिन ऐसे रहे कि कभी खाली पेट भी बिना भोजन किये सोना पड़ता था, माँ खुद अपने हिस्से की रोटी हमें दे देती और अपने खाली पेट सो जाती। लेकिन एक कहावत है कि हर अंधेरे के बाद उजाला जरूर आता है।
अपनी क्लास से आगे के प्रश्नों को करते थे हल
आरके श्रीवास्तव बचपन से ही पढ़ने में अधिक रुचि रखते , खासकर गणित विषय पर। जब आरके श्रीवास्तव कक्षा 7 में थे तो वे 8 वीं के स्टूडेंट्स को गणित का ट्यूशन पढ़ाते थे। अपने वर्ग से हमेशा आगे के प्रश्नों को हल करते, ट्यूशन पढ़ाने से जो भी लोग अपनी इच्छा से जो पैसा देते उससे आरके श्रीवास्तव अपने आगे की पढ़ाई का खर्च निकालते।
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जिम्मेदारी कब किसको किस उम्र में निभाना पड़े। यह सब समय का चक्र ही बता सकता है। हर अंधेरे के बाद उजाला जरूर होता है। पति पारस नाथ लाल के गुजरने के बाद कैसे आरती देवी ने अपने संघर्ष के बल पर अपने बेटे- बेटियो को पढ़ाया लिखाया । बेटियो की शादी भी धूमधाम से शिक्षित परिवार में किया।
पूरे परिवार की खुशियों का ख्याल
आरके श्रीवास्तव ने बताया कि पांच वर्ष के उम्र मे ही पिता को खोने का गम अभी दिल और मन दोनों से मिटा भी नहीं था की पिता तुल्य इकलौते बड़े भाई भी इस दुनिया को छोड़ चले गये। पापा का चेहरा तो हमें याद भी नहीं बस कभी रात को सोते वक्त सोचता हूँ तो धुंधला धुंधला सा दिखाई देता है। माँ ने पिताजी और भैया के गुजरने के बाद भी हमे यह अहसास नहीं होने दिया कि उसके जीवन पर कितना बड़ा पहाड़ टूटा। पूरे परिवार को वो सारी खुशियाँ देते रही जो एक माध्यम वर्गीय परिवार का जरूरत होता है।
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कभी महसूस नहीं हुई पापा की कमी
माँ ने पापा की कमी कभी हमें महसूस होने नहीं दिया। वे अपने क्षमता से भी बढ़कर हर वह जरूरी आवश्यकता की हमें बस्तुए , काॅपी – किताबे, खिलौने आदि उपलब्ध कराती जो हमारे जरूरत और माॅगे रहता। आरके श्रीवास्तव ने बताया कि माँ के आशिर्वाद के बिना कोई भी उपलब्धि को पाना असंभव, आज मैं जो कुछ भी हु वह माँ के आशीर्वाद से है।
आज जो कुछ भी हूं मां के वजह से
आपको बताते चले कि दिन प्रतिदिन अपने ज्ञान और कौशल के बल पर देश में अपना पहचान बना चुके चर्चित मैथेमेटिक्स गुरू आर के श्रीवास्तव ने लोगो को संदेश देते हुए मां के महत्व के बारे में समझाया। वर्ल्ड बुक ऑफ रिकॉर्ड होल्डर, एशिया बुक ऑफ रिकॉर्ड होल्डर एवं इंडिया बुक ऑफ रिकॉर्ड होल्डर मैथमेटिक्स गुरु फेम ने बताया की आज मैं जो कुछ भी हूँ और अपने साथ जुड़ रहे निरंतर उपलब्धियां ये सब माँ के आशीर्वाद और इनके द्वारा दिये जा रहे निरंतर संस्कारों से हो रहा है।
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आरके श्रीवास्तव के सपने को मां ने लगाया पंख
आपको बताते चलें कि आरती देवी ने अपने सँघर्ष के बल पर गरीबी को काफी पीछे छोड़ते हुए आरके श्रीवास्तव के सपने को लगाया पंख। बिहार का मान सम्मान को विश्व पटल पर बढ़ाने वाले मैथमेटिक्स गुरु फेम आर के श्रीवास्तव है हजारों स्टूडेंट्स के रोल मॉडल हैं। अमेरिकी विवि डॉक्टरेट की मानद उपाधि से कर चुका है सम्मानित। वर्ल्ड रिकॉर्ड्स में भी नाम है दर्ज है।
शैक्षणिक कार्यशैली के लिए प्रसिद्ध हैं आरके श्रीवास्तव
बता दें कि आरके श्रीवास्तव अपने शैक्षणिक कार्यशैली के लिये लोकप्रिय हैं वे केवल एक रुपया गुरु दक्षिणा लेकर पिछ्ले 10 वर्षो से स्टूडेंट्स को गणित का गुर सिखाते आ रहे है ।आरके श्रीवास्तव ने वंचित वर्गों के 100 से अधिक आर्थिक रूप से गरीब छात्रों को आईआईटी, एनआईटी, बीसीईसीई जैसे इंजीनियरिंग प्रवेश परीक्षा में सफलता दिलाकर उनके सपने को पंख लगाया है, जिनकी सफलता की दर जबरदस्त है।
कचरे से खिलौने बनाकर कबाड़ की जुगाड़ पद्धति से गणित पढाने का तरीका लाजवाब है । इनके द्वारा चलाया जा रहा गणित का नाइट क्लासेज अभियान अद्भूत है, 250 क्लास से अधिक बार पूरी रात लगातार 12 घंटे गणित पढाना किसी चमत्कार से कम नही, वर्ल्ड बुक ऑफ रिकॉर्ड लंदन और इंडिया बुक ऑफ रिकॉर्ड में भी दर्ज हो चुका है उनका नाम।
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गरीबी में गुजरा है बचपन
आर के श्रीवास्तव की बचपन भी काफी गरीबी से गुजरा है। परन्तु अपने कड़ी मेहनत, उच्ची सोच, पक्का इरादा के बल पर आज देश में मैथमेटिक्स गुरु के नाम से मशहूर हैं। वे कहते हैं कि मेरे जैसे देश के कई बच्चे होंगे जो पैसों के अभाव में पढ़ नहीं पाते। आरके श्रीवास्तव अपने छात्रों में एक सवाल को अलग-अलग मेथड से हल करना भी सिखाते हैं। वे सवाल से नया सवाल पैदा करने की क्षमता का भी विकास करते है।
पुरस्कार-
वर्ल्ड बुक ऑफ रिकार्ड्स लंदन से सम्मानित, इंडिया बुक ऑफ रिकार्ड्स में नाम दर्ज, एशिया बुक ऑफ रिकार्ड्स में नाम दर्ज, बेस्ट शिक्षक अवॉर्ड, इंडिया एक्सीलेन्स प्राइड अवॉर्ड, ह्यूमैनिटी अवॉर्ड, इंडियन आइडल अवॉर्ड, युथ आइकॉन अवॉर्ड सहित दर्जनों अवॉर्ड आरके श्रीवास्तव को उनके शैक्षणिक कार्यशैली के लिए मिल चुके है। इसमे कोई शक नही की आरके श्रीवास्तव देश का गौरव है।
जयंती देवी (आनंद कुमार की माँ)
पिता के गुजरने के बाद खुद माँ जयंती देवी पापड़ बनाती और आनंद उसे बेचते। सुपर 30 फेम आनंद कुमार कहते हैं कि आज मैं जो कुछ भी हु माँ के आशीर्वाद और उनके दिखाए रास्ते पर चलकर ही हु। आज वैसे माताओ को हम प्रणाम करते है जिन्होंने अपने सँघर्ष के बल पर अपने बच्चो को बनाया समाज मे युवायों के लिए रोल मॉडल।शिक्षा के क्षेत्र में पटना के आनंद कुमार और उनकी संस्था ‘सुपर 30’ को कौन नहीं जानता। हर साल आईआईटी रिजल्ट्स के दौरान उनके ‘सुपर 30’ की चर्चा अखबारों में खूब सुर्खियाँ बटोरती हैं।
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गरीब मेधावी बच्चों के सपने को करते हैं सच
आनंद कुमार अपने इस संस्था के जरिए गरीब मेधावी बच्चों के आईआईटी में पढ़ने के सपने को हकीकत में बदलते हैं। सन् 2002 में आनंद सर ने सुपर 30 की शुरुआत की और तीस बच्चों को नि:शुल्क आईआईटी की कोचिंग देना शुरु किया। पहले ही साल यानी 2003 की आईआईटी प्रवेश परीक्षाओं में सुपर 30 के 30 में से 18 बच्चों को सफलता हासिल हो गई। उसके बाद 2004 में 30 में से 22 बच्चे और 2005 में 26 बच्चों को सफलता मिली। इसीप्रकार सफलता का ग्राफ लगातार बढ़ता गया। सन् 2008 से 2010 तक सुपर 30 का रिजल्ट सौ प्रतिशत रहा।
राष्ट्रीय व अंतराष्ट्रीय मंचों को करते हैं संबोधित
आज आनंद कुमार राष्ट्रीय व अंतराष्ट्रीय मंचों को संबोधित करते हैं। उनके सुपर 30 की चर्चा विदेशों तक फैल चुकी है। कई विदेशी विद्वान उनका इंस्टीट्यूट देखने आते हैं और आनंद कुमार की कार्यशैली को समझने की कोशिश करते हैं। इनके जीवनी पर बॉलीवुड ने फिल्म सुपर 30 भी बना चुका है । आनंद कुमार विश्व के प्रतिष्ठित विश्विद्यालय अपने यहाँ सेमिनार के लिए भी बुलाते है। आज आनंद कुमार का नाम पूरी दुनिया जानती है और इसमें कोई शक नहीं कि आनंद कुमार देश का गौरव हैं।
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