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फंस गए राम देव बाबा, फर्जीवाड़े, मिलावट और नकल के बाद अब कोरोना का पेंच

राम देव अपने उत्पादों के अलावा जमीन के झंझटों में भी फंस चुके हैं। पतंजलि के फूड पार्क और अन्य यूनिट्स की स्थापना के लिए महाराष्ट्र, यूपी, उत्तराखंड आदि राज्यों में सस्ते दामों पर जमीन देने के आरोप लगे हैं। 

राम केवी
Published on: 24 Jun 2020 5:31 PM IST
फंस गए राम देव बाबा, फर्जीवाड़े, मिलावट और नकल के बाद अब कोरोना का पेंच
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नीलमणिलाल

लखनऊ। योग गुरु बाबा राम देव एक बार फिर फंस गए हैं। समय समय पर विवादों में आने वाले राम देव का लेटेस्ट कारनामा है कोरोना की दवाई लांच करने का। सरकार की अनुमति और उचित जांच पड़ताल के बगैर राम देव के पतंजलि आयुर्वेद ने कोरोना की औषधि बड़े तामझाम के साथ लांच कर दी।

नतीजा वही हुआ जो अपेक्षित था। कुछ ही घंटों में भारत सरकार के आयुष मंत्रालय और इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च (आईसीएमआर) ने इस दवाई से पल्ला झाड़ लिया है।

महामारी के इस संकट काल में पतंजलि की इस तरह की बचकाना हरकत से कंपनी की छवि को भारी धक्का लगा है। साफ-सफाई दी जा रही है लेकिन अब इस दवाई की बिक्री पर रोक लगा दी गई है।

इससे पहले भी रामदेव के पतंजलि आयुर्वेद के तमाम प्रोडक्ट पर सवाल उठते रहते हैं। पतंजलि पर वैसे भी कई केस चल रहे हैं और पतंजलि के कई प्रोडक्ट क्वालिटी टेस्ट फेल कर चुके हैं। पतंजलि पर फर्जीवाड़े और दूसरी कंपनियों में सामान बनवा कर अपने नाम से बेचने का आरोप लग चुका है औए एक केस में कोर्ट जुर्माना भी लगा चुकी है।

कोरोनिल का कारनामा

रामदेव का ताजातरीन विवाद ये है कि जिस कोरोना वायरस की वैक्सीन और सटीक दवा बनाने का काम पूरी दुनिया की बड़ी बड़ी कंपनियाँ और वैज्ञानिक नहीं कर कर सके हैं, उसे बना लेने का दावा बाबा राम देव ने कर दिया। ऐलान कर दिया गया कि पतंजलि ने कोरोना वायरस की दवा बना ली है जो एक हफ्ते के अंदर मरीजों को पूरी तरह ठीक कर देगी।

पतंजलि ने इस दवा को 'कोरोनिल' नाम दिया है। केंद्र सरकार के आयुष मंत्रालय को जैसे ही इस बात की खबर मिली तो उसने स्वत: संज्ञान लेते हुए इस दवा के प्रचार पर रोक लगा दी।

मंत्रालय ने कहा कि पतंजलि कंपनी ने जो दावा किया है उसके तथ्य और वैज्ञानिक स्टडी को लेकर मंत्रालय के पास कोई जानकारी ही नहीं पहुंची है। मंत्रालय ने कहा कि इस तरह का प्रचार करना कि इस दवाई से कोरोना का 100 प्रतिशत इलाज होता है, ड्रग्स एंड मैजिक रेमेडीज (आपत्तिजनक विज्ञापन) कानून 1954 का उल्लंघन है।

सिर्फ इस दवा का है लाइसेंस

दूसरी ओर उत्तराखंड की आयुर्वेद ड्रग्स लाइसेंस अथॉरिटी ने बताया है कि पतंजलि को दरअसल सर्दी-जुकाम और खांसी की दवा बनाने का लाइसेंस मिला हुआ है और उसने इस लाइसेंस के जरिए बनी दवा को कोरोना के नाम पर लॉन्च कर दिया। बाबा की दवा पर सवाल उठाया है।

अथॉरिटी ने बताया कि पतंजलि को कोरोना की दवा के लिए नहीं बल्कि इम्युनिटी बूस्टर और खांसी-जुकाम की दवा के लिए लाइसेंस जारी किया गया था। भारत सरकार का निर्देश है कि कोई भी कोरोना के नाम पर दवा बनाकर उसका प्रचार-प्रसार नहीं कर सकता। आयुष मंत्रालय से वैधता मिलने के बाद ही ऐसा करने की अनुमति होगी।

भ्रामक विज्ञापन पर लगा है भारी जुर्माना

पतंजलि आयुर्वेद पर अलग अलग मामलों में लंबा जुर्माना लग चुका है। जीएसटी घटने के बावजूद पतंजलि अपने वॉशिंग पाउडर उत्पादों को ज्यादा कीमत पर बेच रही थी जिस पर राष्ट्रीय मुनाफाखोरी रोधी प्राधिकरण ने 75.10 करोड़ रुपये का जुर्माना ठोंका था।

इससे पहले 2016 में पतंजलि की पांच यूनिटों पर पर गलत प्रचार और गुमराह करने वाले विज्ञापन के लिए हरिद्वार की एक अदालत 11 लाख रुपए का जुर्माना लगा चुकी है। इन यूनिट्स से 16 अगस्त 2012 को बेसन, शहद, कच्ची घानी का सरसों का तेल, जैम एवं नमक के सैंपल लेकर जांच के लिए रुद्रपुर लैब में भेजा था।

जांच में रिपोर्ट में उत्पादों के सैंपल फेल हो गए। चार साल तक इस मामले में मुकदमा चला। कोर्ट ने कहा कि 'पतंजलि' जिन उत्पादों को अपनी यूनिटों में उत्पादित बताकर अपने लेबल पर बेच रही थी, वह किसी दूसरी कंपनी के यूनिटों में बने थे। ये खाद्य सुरक्षा मानक अधिनियम और फूड सेफ्टी एंड स्टैंडर्ड पैकेजिंग एंड लेबलिंग रेग्युलेशन का उल्लंघन है।

पुत्रजीवक बीज पर हुआ भारी बवाल

रामदेव की दिव्य फार्मेसी की पुत्रजीवक नामक एक औषधि पर काफी बवाल हो चुका है। इस दवा का मामला संसद तक में उछल चुका है। पहले ये दवा 'पुत्रवती' नाम से बेची जाती थी। विवाद होने की वजह से 2007 में मामले की जांच हुई जिसके बाद इस दवा को बेचना बंद कर दिया गया था। इसके बाद इस दवा को नए नाम से बेचा जाने लगा।

हालांकि इस दवा पर कहीं भी ऐसा कुछ नहीं लिखा है जिससे यह कहा जा सके कि यह बेटा पैदा होने के लिए दी जाने वाली दवा है लेकिन आरोप है कि कंपनी के स्टोर्स में ये दवा पुत्र पैदा करने की दवा कह कर बेची जाती है। मामला गरमाने पर केंद्र सरकार ने उत्तराखंड सरकार से जांच करने को कहा।. जांच रिपोर्ट बाबा राम देव के खिलाफ आई थी।

दिव्य योग फार्मेसी विवाद

रामदेव की हरिद्वार स्थित दिव्य योग फार्मेसी से अप्रैल 2005 में 115 कर्मचारियों को निकालने पर बवाल हुआ था। तब सीपीएम नेता बृंदा करात ने कहा था कि उनको आंदोलनरत कर्मचारियों ने बताया है कि इस फार्मेसी में इनसानी खोपड़ी और पशुओं के अंगों का इस्तेमाल दवा बनाने में किया जाता है।

बृंदा करत ने जांच की मांग की थी। बाद में कर्मचारियों ने दो दवाइयों के सैंपल की जांच में केंद्र सरकार के आयुष मंत्रालय ने जांच के बाद पाया था कि इनमें इनसानी और पशुओं के डीएनए मौजूद हैं।

फाइनल रिपोर्ट में कहा गया कि आयुर्वेद में इन वस्तुओं के इस्तेमाल की अनुमति है लेकिन दिव्य योग फार्मेसी ने लाइसेंसिंग और लेबलिंग संबंधी क़ानूनों का उल्लंघन किया है। इस पर काफी राजनीति हुई और अंततः उत्तराखंड सरकार ने 2006 में रामदेव को आरोपों से मुक्त कर दिया।

आंवला जूस पर प्रतिबंध

पतंजलि का आंवला जूस भी विवाद में घिर चुका है। 2017 में आर्मी कैंटीन यानी सीएसडी ने पतंजलि के आंवला जूस को उपभोग के लिए अनुपयुक्त करार देकर इसकी बिक्री पर रोक लगा दी थी। इस आंवला जूस के सैंपल कोलकाता की प्रयोगशाला में जांच कराई गई थी।

जांच में ये सैंपल फेल हो गया था। इसके बाद से सीएसडी ने इसकी बिक्री रोक दी। इसी तरह पतंजलि के घी में फंगस लगने का भी प्रकरण सामने आ चुका है।

शर्बत पर यूएसएफडीए की फटकार

पतंजलि के शर्बत पर अमेरिका की फूड एंड ड्रग एजेंसी (यूएसएफडीए) सवाल खड़े कर चुकी है। 2019 में यूएसएफडीए की एक रिपोर्ट में कहा गया था कि पतंजलि भारत और अमेरिका के लिए अलग अलग क्वालिटी के शर्बत बनाता है।

अमेरिकी खाद्य विभाग पतंजलि आयुर्वेद कंपनी के खिलाफ केस दर्ज करने पर विचार कर रहा है और दोषी पाए जाने पर कंपनी पर करीब 3 करोड़ रुपये का जुर्माना लगाया जा सकता है।

कंपनी के अधिकारियों को तीन साल की सजा हो सकती है। पतंजलि ने अपने बेल और गुलाब शर्बत की जो खूबियाँ गिनायीं थीं वो भारत और अमेरिका के लिए अलग अलग थीं। यूएसएफडीए ने पतंजलि के हरिद्वार प्लांट में अपनी जांच में देखा था कि प्रोडक्शन गंदगी के माहौल में हो रहा था।

मेसेजिंग एप में खाया गच्चा

बाबा रामदेव की पतंजलि आयुर्वेद लिमिटेड ने मल्टीनेशनल्स के साथ साथ व्हाट्सएप को चुनौती देने का ऐलान किया था। 15 अगस्त 2018 को पतंजलि आयुर्वेद लिमिटेड ने किंभो ऐप नाम एक मेसेजिंग ऐप का ट्रायल वर्जन प्ले स्टोर पर लांच किया लेकिन एक ही दिन में ऐप को प्ले स्टोर से हटा दिया गया।

हुआ ये कि ऐप को डाउनलोड करने के बाद यूजर्स को कई तकनीकी समस्याओं का सामना करना पड़ा था। यूजर्स से शिकायत मिलने के बाद किंभो ऐप को गूगल प्ले स्टोर से हटा दिया गया।

इसके बाद पतंजलि आयुर्वेद के प्रबंध निर्देशक आचार्य बालकृष्ण ने कहा था कि ऐप के लॉन्च की नई तारीख की घोषणा जल्द की जाएगी। लेकिन अब दो साल बाद इस ऐप का कोई अता पता नहीं हैं और अब इसकी चर्चा तक बंद हो चुकी है।

कई जानकारों ने किंभो को बेहद असुरक्षित करार दिया था। एलियट एंडरसन नाम के एक फ्रेंच सिक्योरिटी रिसर्चर ने तो इस ऐप को सिक्योरिटी के नाम पर मज़ाक बताया था।

आटा नूडल्स पर फंसे

पतंजलि ने 2015 में मैगी की टक्कर में आटा नूडल्स लांच की थी। लेकिन बाद में पता चला कि नूडल्स के उत्पादन के लिए फूड सेफ्टी एंड स्टैंडर्ड अथॉरिटी से मंजूरी ही नहीं ली गई थी। इस पर एफएसएसआई ने पतंजलि को नोटिस जारी किया था। पतंजलि ये नूडल्स आकाश योग नाम की कंपनी से बनवाती थी सो उसे भी कारण बताओ नोटिस जारी किया गया। पतंजलि ने इस मामले में ये खेल किया था कि नूडल्स के पैकेट्स पर फर्जी लाइसेंस नंबर छाप दिये थे।

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एफएसएसआई ने कहा था कि जिस प्रोडक्ट को मंजूर ही नहीं किया, तो उसे लाइसेंस नंबर कैसे मिल सकता है। यही नहीं, कई जगह पतंजलि नूडल्स के पैकेट में कीड़े पाये गए।

मल्टीनेशनल कंपनियों के ब्रांड्स की नकल

पतंजलि के ढेरों आइटम स्थापित ब्रण्ड्स की नकल ही दिखते हैं। किंभो ऐप हो या इंस्टेंट नूडल्स, बिस्किट या चॉकलेट ये तमाम आइटम्स अन्य ब्राण्डों की नकल नजर आते है। इनके नाम भी बहुत मिलते जुलते हैं। इससे पता चलता है कि कंपनी को अपने प्रोडक्ट की बजाय डुप्लिकेसी पर ही ज्यादा भरोसा है।

मिसाल के तौरा पर, मैगी के इंग्रेडिएंट्स को लेकर देश भर में विवाद के बाद पतंजलि ने मौके का फायदा उठा कर इंस्टेंट नूडल्स बाजार में उतार दिये थे और इसे स्वदेशी नूडल करार दिया था। लेकिन पतंजलि नूडलस की पैकिंग और साइज तक काफी कुछ मैगी जैसा ही था।

इसके बाद पतंजलि मैरी बिस्किट ले कर आई। ये ब्रिटेनिया के मारी बिस्किट की नकल थी। यही नहीं। कैडबरी की फाइव स्टार चॉकलेट का पतंजलि अवतार भी बाजार में लाया गया जिसका नाम था पतंजलि सुपर स्टार। कैडबरी के बोर्नविटा की नकल में पतंजलि ले आई पावर वीटा।

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अमेरिकी कंपनी केलॉग्स की नकल में पतंजलि चॉको फ्लेक्स लांच किया गया। सिर्फ विदेशी ब्रण्ड्स ही नहीं, देशी ब्रण्ड्स की भी नकल मे पतंजलि आगे रही। इमामी लिमिटेड ने तो ब्रांड की नकल के लिए पतंजलि को कोर्ट तक में घसीट लिया था। पतंजलि ने इमामी के केश किंग तेल का नाम, बॉटल डिजाइन और फॉन्ट स्टाइल भी अपने केश कांति तेल में कॉपी कर ली थी।

हार्पिक का नकल का आरोप

पतंजलि ने एक टॉइलेट क्लीनर बाजार में उतारा था जिसकी पैकेजिंग एक स्थापित ब्रांड हार्पिक टॉयलेट क्‍लीनर से मेल खाती थी। इसे लेकर हार्पिक की निर्माता कंपनी रेकिट बेन्किसर इंडिया ने दिल्ली हाई कोर्ट में पंतजलि के खिलाफ केस दायर कर रखा है।

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रेकिट बेन्किसर इंडिया ने आरोप लगाया है कि पंतजलि का टॉइलेट क्‍लीनर ‘ग्रीन फ्लैश’ उसके उत्पाद हार्पिक जैसा है। रेकिट बेन्किसर इंडिया ने पतंजलि कंपनी पर यह भी आरोप लगाया है कि उत्पाद की पैकिंग में दिए गए निर्देश भी उनके उत्‍पाद से मिलते-जुलते है। कंपनी ने आरोप लगाया है कि पतंजलि ग्राहकों को अपने उत्‍पाद को जैविक उत्‍पाद बताकर भ्रमित भी कर रही है।

नाम बादाम तेल, बोतल में तिल का तेल

पतंजलि का एक प्रोडक्ट है बादाम केश तेल। इसकी बोतल में छोटे अक्षरों में लेकिन साफ लिखा है कि इसमें 500 मिलीग्राम तिल तेल और मात्र 25 मिलीग्राम बादाम तेल है।

दंतकान्ति टूथपेस्ट

दंतकान्ति टूथपेस्ट पतंजलि का प्रोडक्ट है खूब बिकता है लेकिन डेंटल स्पेशलिस्ट चेतावनी देते हैं कि इस टूथपेस्ट के ज्यादा इस्तेमाल से दांतों का एनेमल यानी दांतों की परत घिस जाती है। इस टूथपेस्ट में एब्रेसिव (खुरदरे पदार्थ) सामग्री मिली हुई है।

जो माना करते थे वही खुद करने लगे

समय-समय पर अपनी बातों से पलट जाते हैं जैसे कि पहले वो जीन्स पैंट की बुराई करते दिखाई देते थे, फिर उन्होंने परिधान नामक कपड़ों का ब्रांड लॉन्च किया और जीन्स पैंट भी बनाने लगे। रामदेव पहले लोगों से शक्कर का सेवन करने से मना करते थे लेकिन बाद में उनके पतंजलि स्टोर पर शक्कर भी बिकने लगी।

जमीन के झंझट

रामदेव अपने उत्पादों के अलावा जमीन के झंझटों में भी फंस चुके हैं। पतंजलि के फूड पार्क और अन्य यूनिट्स की स्थापना के लिए महाराष्ट्र, यूपी, उत्तराखंड आदि राज्यों में सस्तेदामों पर जमीन देने के आरोप लगे हैं।

घट गई बिक्री

2017 में राम देव ने दावा किया था कि उनकी कंपनी के टर्नओवर के आंकड़े मल्टीनेशनल कंपनियों को कपालभाती करने को मजबूर कर देंगे लेकिन ये दावा हवाई निकला। और वित्तीय वर्ष 2017-18 में पतंजलि की बिक्री 10 फीसदी घटकर 8100 करोड़ रुपये रह गई।

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शुरुआत में उनके उत्पादों पर लोगों ने खूब भरोसा दिखाया था लेकिन अब लोकप्रियता तेजी से घट गई है। रामदेव ने कहा था कि मार्च, 2018 में वित्त वर्ष खत्म होने तक पतंजलि की बिक्री लगभग दोगुनी से ज्यादा होकर 20 हजार करोड़ रुपये तक पहुंच जाएगी लेकिन इन सब दावों के विपरीत पतंजलि की बिक्री 10 फीसदी घट गई।

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पतंजलि से मिली जानकारी के आधार पर केयर रेटिंग्स ने कहा था कि कंपनी की बिक्री महज 4700 करोड़ रुपये रहने का संकेत दे रहे हैं। कंपनी के मौजूदा और पूर्व कर्मचारियों, सप्लायर्स, डिस्ट्रीब्यूटर्स, स्टोर मैनेजर्स और कंज्यूमर्स से बातचीत में पता चला है कि कंपनी को कुछ गलत कदमों की वजह से नुकसान हुआ है। उत्पादों की अस्थिर क्वालिटी और सप्लाई में गड़बड़ी की वजह से कंपनी को झटका लगा है।



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