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नंबर वन था कभी यूपी का ये जिला, अब सबसे पिछड़े का तमगा
श्रावस्ती को भगवान गौतम बुद्ध की तपोभूमि के रूप में जाना जाता है। यहां बुद्ध ने चौबीस वर्षामास व्यतीत किये थे। तब कोसल राज्य पर महाराजा लव के सूर्यवंशी राजाओं की 27वीं पीढ़ी में राजा अरिनेमि ब्रहमादत्त के पुत्र प्रसेनजित शासन था और यह उत्तरी पहाड़ियों से लेकर दक्षिण में गंगा तट तक तथा पूर्व में गंडक नदी तक फैला था।
-तेज प्रताप सिंह
गोंडा। शिवालिक पर्वत श्रंखला की तराई में स्थित कोसल (श्रावस्ती) क्षेत्र सघन वन व औषधियों वनस्पतियों से आच्छादित, पहाड़ी नालों और तरह तरह के पशु पक्षियों की शरण स्थली रही है। बौद्ध धर्म के आठ महातीर्थों में प्रसिद्ध तीर्थ श्रावस्ती बौद्ध साहित्य में सावत्थी के नाम से विख्यात है। जैन धर्म के अनुयायी भी इसे अपना तीर्थ स्थल मानते हैं।
यह नगरी बहुत समय तक शक्तिशाली कोसल देश की राजधानी थी। समय के थपेड़ों से जहां श्रावस्ती का प्राचीन गौरव आज भग्नावशेषों के रूप में अतीत की कहानी बनकर रह गया है। वहीं शासन प्रशासन की घोर उपेक्षाओं से प्राचीन वैभव को खोते हुए यह भूभाग यानी वर्तमान श्रावस्ती जिला पूरी तरह सिमट कर देश व प्रदेश में सबसे निचले पायदान पर पहुंच गया है।
आदिकालीन श्रावस्ती
लगभग छह हजार वर्ष पूर्व हुए महान प्रतापी राजा मनु ने सम्पूर्ण आर्यावर्त पर राज्य स्थापित किया था। उन्होंने सरयू नदी के तट पर एक भव्य नगर अयोध्या का निर्माण करवाया और उसी अयोध्या को राजधानी बनाया।
राजा मनु के नौ पुत्र इक्ष्वाकु, नृग, धृष्ट, शर्याति, नारियत, प्रांशु, नाभानेदिष्ट, करुष और पृणध थे। यही वंश सूर्यवंशी क्षत्रिय कहलाया।
कहा जाता है कि राजा मनु ने अपने सम्पूर्ण साम्राज्य को अपने सभी पुत्रों में विभाजित कर दिया। ज्येष्ठ पुत्र इक्ष्वाकु को उत्तर-मध्य (काशी-कोसल) का विशाल क्षेत्र शासन के लिए दे दिया था। महाराजा इक्ष्वाकु से लेकर इसी वंशावली में हुए भगवान रामचन्द्र तक के समय में कोशल राज्य की राजधानी अयोध्यापुरी थी।
इक्ष्वाकु के वंशजों में महाप्रतापी राजा पृथु हुए। सम्राट पृथु के पश्चात् क्रमशः विश्व्गाश्व, आद्दर्व, युवनाश्व कोसल के सम्राट हुए। युवनाश्व के पुत्र श्रावस्त ने हिमालय की तलहटी में अचिर्व्ती नदी के निकट एक सुन्दर नगर का निर्माण कराया था। उनके नाम पर इस नगर का नाम श्रावस्ती पड़ा।
सावस्थ ऋषि की तपोभूमि
पूर्व काल खण्ड में ऋषि सावस्थ की तपोभूमि होने के अर्थ में भी इस नगर का नाम श्रावस्ती कहा गया है। इक्ष्वाकु वंश में महा प्रतापी सम्राट मान्धाता धर्मानुसार प्रजापालक थे। उन्होंने गोदान प्रथा का सूत्रपात किया। उनके शासनकाल में मांस भक्षण पूर्ण निषिद्ध था।
इसी राजवंश में राजा सत्यव्रत के पुत्र महादानी सत्यव्रती राजा हरिश्चन्द्र हुए। इस राजवंश के महाराज सगर उनके पुत्र अंशुमान के बाद महाराजा दिलीप, महाराजा रघु व राजा भगीरथ ने अपने शौर्य और पुरूषार्थ से स्वर्णिम इतिहास रचा। इसी वंश के राजा अश्मक राजा मूलक व राजा अज के पुत्र राजा दशरथ ने कोसल (अवध) पर शासन किया।
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ऋषि मुनियों की तपोभूमि
प्राचीन काल में श्रावस्ती कोसल महाजनपद के अन्तर्गत भगवान राम चन्द्र के पुत्र लव की राजधानी के रूप में जाना जाता था। मान्यता है कि श्रावस्ती के टंडवा महन्थ ग्राम में स्थित सीताद्वार स्थल पर भगवान राम के पुत्र लव और कुश का जन्म हुआ था। वर्तमान में यहां पर सीताद्वार मंदिर स्थापित है, जहां प्रतिवर्ष लाखों श्रद्धालु आते हैं।
महाभारतकालीन शिव मंदिर
कर्ण द्वारा स्थापित महाभारत कालीन विभूतिनाथ शिव मन्दिर घने जंगल के बीच लाखों श्रद्धालुओं को अपनी ओर आकर्षित करता है। महाभारत काल में महर्षि अग्निवेष (आमोद) का आश्रम इसी हिमवत प्रदेश में था।
आचार्य धौम्य व उनके शिष्य उपमन्यु का आश्रम भी यहीं था। श्वेतकेतु व महर्षि अष्यवक्र की तपोभूमि यह पवित्र शिवालिक-अरण्य रहा था। योग ऋषि पातंजलि, बाल्यऋषि नचिकेता, ऋषि च्यवन, ऋषि पाराशर व महर्षि बाल्मीकि आदि की मनोरम तपोभूमि श्रावस्ती ही रही है।
पंच भारत में कोसल साम्राज्य
पौराणिक काल में भारत वर्ष को महाजनपदों, प्रदेशों, प्रान्तों अथवा अन्तः प्रक्षेत्रों के रूप में विभाजित गया है। प्राकृतिक धरातल की विषमता के अनुसार उदीप्य व दाक्षिणात्य मुख्य विभाजन है। उदीप्य भारत को आर्यावर्त के नाम से जाना जाता है।
पूर्व-पश्चिम समुद्र से उत्तर हिमालय से व दक्षिणी विंध्य पर्वत शृंखला से घिरा सम्पूर्ण भू-भाग आर्यावर्त है। सम्पूर्ण आर्यावर्त मध्य प्रदेश, उत्तरांचल, प्राच्य, दक्षिणावत और उपरांत (पश्चिमी भारत) पांच भागों में विभक्त था। चीनी यात्री फाह्यान ने इसी को पंच भारत कहा है। मध्य देश भारत का हृदय प्रदेश रहा है।
वायु पुराण प्रामाणिक ग्रंथ
इतिहासकारों ने वायु पुराण को प्रामाणिक प्राचीनतम ग्रन्थ माना है। इस पुराण में पंचभारत के विभिन्न प्रदेशों के जनपदों का भी वर्णन है, जिसके अनुसार काशी-कोसल महा जनपद पंचभारत के मध्य देश में स्थित था। वायु पुराण में इसका उल्लेख है-
वत्साः किसष्णाः र्कुन्वाश्च कुन्तलाः काशि-कोशलाः।
मध्यदेशा जनपदा प्रायशोअमी प्रर्कीर्तिताः।।
वायु पुराण के अनुसार, राजा राम चन्द्र के पुत्र लव जब कोसल के राजा हुए तो उनकी राजधानी श्रावस्ती (उत्तर प्रदेश) में स्थित थी।
उत्तरकोसला राज्यं लवस्य च महात्मनः।
श्रावस्ती लोक विख्याता...।।
प्राचीनता में संदेह नहीं
इस प्रकार कोसल श्रावस्ती की प्राचीनता में संदेह नहीं है। हिमालय से गंगा-सरयू और गण्डकी नदी के मध्य स्थिल भू भाग का प्राचीनतम नाम कोसल ही है। पुराणों तथा बौद्ध ग्रन्थों में प्राचीन भारत के सोलह महा जनपदों (राज्यों) में कोसल (सम्पूर्ण अवध क्षेत्र) की राजधानी अयोध्या और श्रावस्ती का स्थान प्रमुखता से वर्णित है।
राजा प्रसेनजित के शासन काल में कोसल राज्य उत्तरी पहाड़ियों से लेकर दक्षिण में गंगा तट तक तथा पूर्व में गंडक नदी तक फैला हुआ था। इसका सम्पूर्ण विस्तार 300 योजन था। अट्ठकथाचार्य बुद्धघोष के अनुसार 80 हजार गांवों में बसे श्रावस्ती की जनसंख्या तब 18 करोड़ थी। कोसल साम्राज्य में कपिलवस्तु, कोलिय, मौर्य या मोरिय और मल्ल गणराज्य थे।
श्रावस्ती कोसल की दूसरी राजधानी
हिमालय की तराई से गंगा व विन्ध्य पर्वत की विशाल सीमा क्षेत्र में स्थित कोसल देश सूर्यवंशी सम्राटों के शौर्य से समृद्धि के उत्कर्ष को प्राप्त था। सम्पूर्ण काशी-कोसल राज्य शासन सुविधा के लिये उत्तर एवं दक्षिण में विभाजित हुआ। उत्तरी भाग श्रावस्ती से व दक्षिणी भाग अयोध्या से शासित होता था।
इक्ष्वांकु वंश में सर्वश्रेष्ठ महाराजा रघु से लेकर दशरथ पुत्र मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान राम के शासन काल तक अयोध्या को प्रधान राजधानी व श्रावस्ती को द्वितीय राजधानी का गौरव प्राप्त था।
महाराज रघु द्वारा गोवंश की वृद्धि विपुलता के लिये आरक्षित क्षेत्र गोनर्द (गोंडा) राजाओं की रमणीक आखेट स्थली रही है। जब भगवान राम के पुत्र लव उत्तर कोसल के राजा हुए तो उन्होंने श्रावस्ती को मुख्य राजधानी बनाया और सुंदर नगर के रूप में विकसित किया।
गौतम बुद्ध की तपोभूमि
श्रावस्ती को भगवान गौतम बुद्ध की तपोभूमि के रूप में जाना जाता है। यहां बुद्ध ने चौबीस वर्षामास व्यतीत किये थे। तब कोसल राज्य पर महाराजा लव के सूर्यवंशी राजाओं की 27वीं पीढ़ी में राजा अरिनेमि ब्रहमादत्त के पुत्र प्रसेनजित शासन था।
यह उत्तरी पहाड़ियों से लेकर दक्षिण में गंगा तट तक तथा पूर्व में गंडक नदी तक फैला था। सहेट-महेट जेतवन व अंगुलिमाल की गुफा के अवशेष श्रावस्ती को प्राचीन काल में बौद्ध धर्म के प्रमुख केन्द्र के रूप में स्थापित करते हैं।
कटरा, श्रावस्ती में पूर्वी व दक्षिणी पूर्वी एशिया के कई देशों के द्वारा अनेक मठ व मंदिर स्थापित किये गये हैं, जहां वे अपने-अपने पारम्परिक तरीके से भगवान बुद्ध की आराधना करते हैं। श्रावस्ती में पूरे वर्ष लाखों भारतीय व विदेशी पर्यटक विशेषकर बौद्ध धर्म अनुयायी आते हैं।
श्रावस्ती के प्राचीन इतिहास को प्रकाश में लाने के लिए प्रथम प्रयास जनरल कनिंघम ने किया। उन्होने वर्ष 1863 में उत्खनन प्रारम्भ करके जेतवन का थोड़ा भाग साफ कराया तो बोधिसत्व की 07 फुट 4 इंच ऊंची प्रतिमा प्राप्त हुई।
जैनियों का प्रसिद्ध तीर्थ
श्रावस्ती में जैन धर्म के प्रवर्तक महावीर स्वामी यहां कई बार आये और जैन धर्मानुयायी भी इस नगर को प्रमुख धार्मिक स्थान मानते थे। यह जैन धर्म के प्रचार केंद्र के रूप में विख्यात था। जैन धर्म के तीसरे तीर्थकर संभवनाथ व आठवें तीर्थंकर चंद्र प्रभानाथ की जन्मस्थली यहीं थी।
महावीर ने भी यहां एक वर्षावास व्यतीत किया था। जैन साहित्य में इसके लिए चंदपुरी तथा चंद्रिकापुरी और जैन धर्म में सावधि अथवा सावत्थीपुर के प्रचुर उल्लेख मिलते हैं। जैन धर्म भगवती सूत्र के अनुसार तब श्रावस्ती नगर आर्थिक क्षेत्र में भौतिक समृद्धि के चमोत्कर्ष पर थी।
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मध्यकालीन श्रावस्ती
श्रावस्ती के मध्यकालीन इतिहास पर नजर डालें तो यहां लगभग सौ साल तक नंद वंश और 137 वर्ष (182 ई. पू.) तक मौर्य वंश का शासनकाल का रहा। मगध से शासित श्रावस्ती की समृद्धि इस काल में सुविस्तारित हुई थी।
शुंगवंशी पुष्यमित्र और उनके वंशजों ने 112 वर्षों तक कोसल श्रावस्ती पर शासन किया। मध्य एशिया के यायावर शकों के कबीलों में एक कुषाण जाति के कुजुलकर कदफिसस ने भारत में कुषाण राजवंश की स्थापना की। इस वंश के सम्राट कनिष्क का राज्यकाल शक संवत 01 से 24 तक अर्थात सन 78 से 102 ई. माना जाता है। इस वंश का शासन 180 ई. तक चला।
उपेक्षित रही श्रावस्ती
नागंवश के शासन काल में जब शैव धर्म (शिव-पूजा) बढ़ा तो बुद्ध धर्म पीछे चला गया और श्रावस्ती पूर्णतः उपेक्षित रही। 275 ई0 में गुप्त शासन के आगमन के साथ चन्द्रगुप्त प्रथम ने अपने पुत्र समुद्रगुप्त को उत्तराधिकारी बनाया।
गुप्तवंश में चन्द्रगुप्त तृतीय अंतिम शासक हुए। मध्य एशिया के खानाबदोश बर्बर जाति का हूण तोरमाण चन्द्रगुप्त तृतीय को मारकर शासक बना था। तोरमाण के पुत्र क्रूरतम शासक मिहिरकुल के राज्यारोहण 512 ई. मानी गयी है। इसी काल में चीनी यात्री ह्वेनसांग भारत आया था।
निर्दयी और अत्याचारी शासक मिहिर कुल ने गांधार के 1600 से अधिक बौद्ध मठों को ध्वस्त करवाया। बौद्धों के विनाश से नाराज प्रांतीय शासक नरसिंह गुप्त ने मिहिर कुल को श्रावस्ती युद्ध में परास्त कर बंदी बना लिया।
540 ई. में मौखरि वर्धन राजवंश के सूर्यवंशी क्षत्रिय हरिवर्मन ने कन्नौज को राजधानी बनाकर मौरवीर राज्य की स्थापना की। उनके वंशज गृहवर्मन को हराकर पुष्य भूति क्षत्रिय वंशी थानेश्वर नरेश हर्षवर्धन ने 606 ई में कन्नौज को अपने अधीन किया और श्रावस्ती को प्रांतीय राजधानी बनाया।
हर्षवर्धन सन 647 ई. तक शासन करते हुए मृत्यु को प्राप्त हुए।
और श्रावस्ती मंडल बना
713 ई. में कन्नौज की गद्दी पर जहतलराय के पुत्र हरिश्चन्द्र सत्तासीन हुए और मुस्लिम आक्रांता मुहम्मद-बिन-कासिम को परास्त किया। मौखरियों, वर्मनों व वर्धन वंशजों का खण्डित-विच्छिन्न शासन 770 ई. तक चलता रहा। आयुध वंशी शासक ब्रजायुध, इद्रायुध और चक्रायुध ने 810 ई. तक शासन किया।
प्रतिहार इक्ष्वाकु कुल के सूर्यवंशी क्षत्रिय गुर्जर नागभट्ट चक्रायुध को परास्त कर कन्नौज की राजगद्दी पर बैठे। इस वंश के नागभट्ट द्वितीय (800-833 ई.) लगभग सम्पूर्ण भारत के सम्राट हुए।
बाद में महाप्रतापी राजा मिहिर भोज के काल में श्रावस्ती एक मंडल के रूप में स्थापित हुई। महिपाल अंतिम शासक हुए और इस वंश का शासन काल 846 से 946 ई. तक चला। सुल्तान मुहम्मद महमूद गजनवी के आक्रमण (1001 ई0 से लेकर 1025 ई.) तक इस वंश का शासन था।
श्रावस्ती भुक्ति (प्रांत) के तत्कालीन शासक मोरध्वज के पुत्र सुहेलदेव (1009 से 1077 ई.) ने 10 जून 1034 ई. को महमूद गजनवी के सिपहसालार सालार मसूद को कौड़ियाला नदी के तट पर युद्ध में मौत के घाट उतारा और श्रावस्ती के पूर्ण स्वतन्त्र राजा हुए।
श्रावस्ती में रक्तपात
गजेटियर में सुहेलदेव के आगे राजपूत, भर, पासी, जैन, बौद्ध जैसे शब्द भी जुड़े थे इससे स्पष्ट नहीं है कि सुहेलदेव किस जाति या पंथ से जुड़े राजा थे। जब दिल्ली के तख्त पर आसीन गुलाम तुर्कों के शासन में श्रावस्ती पर आक्रमण व लूटपाट बहुत बढ़ गयी तो सुहेलदेव के पौत्र हरिसिंह देव श्रावस्ती से पलायन कर नेपाल चले गये और दांगदून-तुलसीपुर (नेपाल) को अपनी राजधानी बनाकर रहने लगे।
दिल्ली सुल्तान इल्तुतमिश का पुत्र नसीरुद्दीन बालादिक नगर (बहराइच) का सूबेदार नियुक्त हुआ तो श्रावस्ती पर आक्रमण करके भयंकर लूटपाट, विध्वंस व रक्तपात किया। इसके कुछ समय बाद अलाउद्दीन खिलजी ने आक्रमण करके श्रावस्ती का पूर्ण विध्वंस कर दिया, जिससे मात्र खण्डहर अवशेष रह गये थे।
इस अराजक स्थिति का अंत करके गढ़वाल वंश के यशोविग्रह के पौत्र व महीचन्द्र के पुत्र सामंत चन्द्रदेव ने अपने बल पर कान्यकुब्ज प्रदेश पर 1085 ई. में कब्जा कर लिया। चन्द्रदेव (1085-1104 ई.) को गढ़वालों की स्वतन्त्र सत्ता का संस्थापक माना जाता है।
चन्द्रदेव ने काशी, कोसल व इन्द्रप्रस्थ (दिल्ली के समीप के क्षेत्रों) पर अपना आधिपत्य कायम कर लिया। इसी वंश के सम्राट गोविन्द चन्द्र ने अपने शासन काल (1110-1156 ई.) में तुर्कों को परास्त कर साम्राज्य को विस्तार दिया।
बुद्ध विहारों का पुनर्निर्माण
12वीं सदी में सम्राट गोविन्द चन्द्र की महारानी कुमार देवी ने श्रावस्ती के अनेक बुद्ध विहारों का पुर्ननिर्माण कराया था। सन् 1258 ई. में सुल्तान फिरोजशाह ने जनवार क्षत्रिय बरियार शाह को कोसल के अधीन रही इकौना (प्राचीन नाम खानपुर महादेव) राज्य का शासक बना दिया। जनवार वंश के ही माधव सिंह ने दिवंगत पुत्र बलराम सिंह के नाम पर कोसल और इकौना राज्य का हिस्सा रहे रामगढ़ गौरी में बलरामपुर नगर बसाया।
महाराजा दिग्विजय सिंह यहां के अन्तिम शासक हुए। सन् 1552 ई. में यह सम्पूर्ण क्षेत्र मुस्लिम शासन का एक ताल्लुका बन गया। इसके बाद सन 1800 ई. तक श्रावस्ती उपेक्षित और अन्धकार में रही। 07 फरवरी 1856 में अवध का ब्रिटिश भारत में विलय हुआ तो यह क्षेत्र अवध शासक के नियंत्रण में आ गया और श्रावस्ती को बहराइच जनपद में शामिल किया गया।
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1997 में बना जिला
बहराइच का अंग रहे श्रावस्ती जनपद का गठन 27 मई 1997 को हुआ। 13 जनवरी 2004 को शासन द्वारा इस जनपद का अस्तित्व समाप्त कर दिया गया था लेकिन जून 2004 से यह जनपद पुनः अस्तित्व में आ गया। जनपद मुख्यालय भिनगा श्रावस्ती से 55 किमी की दूरी पर है।
भारत-नेपाल अन्तर्राष्ट्रीय सीमा पर स्थित यह जनपद देश, प्रदेश में जनसंख्या व क्षेत्रफल की दृष्टि से सबसे छोटे जनपदों में शुमार है। 1,640 वर्ग किमी क्षेत्रफल और 2011 की जनगणना के अनुसार 11 लाख 17 हजार 361 आबादी तथा 397 ग्रामों वाले इस जिले में तीन तहसील भिनगा, इकौना व जमुनहा और पांच ब्लाक इकौना, गिलौला, सिरसिया, जमुनहा और हरिहरपुर रानी है।
जनपद में 07 थाने (महिला थाना के साथ) स्थापित है, जिन्हे दो सर्किल भिनगा और इकौना में विभाजित किया गया है। भिनगा और श्रावस्ती (इकौना) दो विधान सभा क्षेत्र हैं। श्रावस्ती लोकसभा सीट में श्रावस्ती की 02 व बलरामपुर जनपद की 03 विधान सभा सीटें शामिल हैं।
श्रावस्ती का अधिकांश भाग आज भी वनाच्छादित है और यहां के जंगलों में विभिन्न प्रकार के पशु पक्षी और वृक्ष पाए जाते हैं। श्रावस्ती व बलरामपुर जिले में फैला सोहेलवा वन्य जीव अभ्यारण प्रकृति प्रेमियों के आकर्षण का केन्द्र है।
कटरा श्रावस्ती में हर वर्ष लाखों भारतीय व विदेशी पर्यटक विशेषकर बौद्ध धर्म के अनुयायी आते हैं। इन सबके बावजूद यहां के लिए कोई रेलमार्ग नहीं है और न ही जनपद की परिवहन सेवा अब तक सुदृढ़ हो सकी है।
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