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इंटरनेशनल नर्स डे: क्यों मनाया जाता है ये दिन, आखिर कौन है 'लेडी विद द लैंप'

ब्रिटि‍श परिवार में 12 मई 1820 को इटली के फ्लोरेंस में विलियम नाइटिंगेल और फेनी के घर जन्मी फ्लोरेंस नाइटिंगेल ने जिस तरह लोगों की सेवा की वो आज तक एक मिसाल है।

Shreya
Published on: 12 May 2020 11:38 AM IST
इंटरनेशनल नर्स डे:  क्यों मनाया जाता है ये दिन, आखिर कौन है लेडी विद द लैंप
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लखनऊ: कोरोना वायरस की इस महामारी से पूरी दुनिया जूझ रही है। कोरोना की इस लड़ाई में सबसे अहम भूमिका निभा रहे हैं डॉक्टर्स, नर्सेस जिन्हें आज पूरी दुनिया कोरोना वॉरियर यानि कोरोना योद्धा बोल रही है। ऐसे में आज का दिन और खास हो जाता है क्योंकि आज इंटरनेशनल नर्सेस डे है। हर साल आज (12 मई) ही के दिन पूरी दुनिया मे नर्स डे मनाया जाता है। साथ ही यह दिन दुनिया में आधुनिक नर्सिंग की जनक मानी जाने वाली फ्लोरेंस नाइटिंगेल को श्रद्धांजलि देने के लिए भी मनाया जाता है। उनके जन्मदिन के अवसर पर ही अंतरराष्ट्रीय नर्स दिवस मनाया जाता है।

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12 मई 1820 को ब्रिटिश परिवार में जन्मीं फ्लोरेंस

ब्रिटि‍श परिवार में 12 मई 1820 को इटली के फ्लोरेंस में विलियम नाइटिंगेल और फेनी के घर जन्मी फ्लोरेंस नाइटिंगेल ने जिस तरह लोगों की सेवा की वो आज तक एक मिसाल है। फ्लोरेंस को एक नर्स बनना था, लेकिन उनके पिता इसके सख्त खिलाफ थे। क्योंकि उस वक्त नर्सिंक एक सम्मानित पेशे की तौर पर नहीं देखा जाता था। अस्पताल भी काफी गंदे हुआ करते थे और मरीजों के मर जाने की वजह से डरावने लगते थे। उन्होंने 1851 में नर्सिंग की पढ़ाई शुरू की। फिर 1853 में उन्होंने लंदन में एक लेडी हॉस्पिटल खोला।

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क्रीमिया युद्ध में घायल हुए सैनिकों का रखा ख्याल

जब साल 1854 में क्रीमिया का युद्ध हुआ तो ब्रिटिश सैनिकों को रूस के दक्षिण स्थित क्रीमिया लड़ने भेजा गया। रूस से ब्रिटेन, फ्रांस और तुर्की की लड़ाई थी। जब युद्ध में सैनिकों के घायल होने और उनके मरने की खबर आई तो फ्लोरेंस नर्सों के साथ वहां पहुंची। वहां पर हालात काफी बुरे थे। हर तरफ गंदगी, दुर्गंध, उपकरणों की कमी, बेड, पानी आदि कई तरह की असुविधाओं के बीच काफी तेजी से बीमारी फैली थी और सैनिकों की संक्रमि से मौत होने लगी। फ्लोरेंस ने अस्पताल की हालत सुधारने के साथ-साथ मरीजों के नहाने, खाने और उनकी चोटों की ड्रेसिंग आदि पर ध्यान दिया। सैनिकों की हालत में काफी सुधार आने लगा।

इसलिए कहा गया 'लेडी विद द लैंप'

इसके अलावा फ्लोरेंस सैनिकों की तरफ से उनके परिजनों को चिट्ठियां भी लिखकर भेजती थीं। रात में हाथ में लालटेन पकड़े वो मरीजों को देखने जाती थीं। इसी वजह से उन्हें सैनिक आदर और सम्मान से 'लेडी विद द लैंप' कहकर पुकारने लगे। जब वह 1856 में युद्ध के बाद लौटीं तो उनका यह नाम 'लेडी विद द लैंप' मशहूर हो गया।

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1974 में हुई थी 12 मई को 'नर्स डे' मनाने की घोषणा

उसके बाद अमेरिका के स्वास्थ्य, शिक्षा और कल्याण विभाग के एक अधिकारी डोरोथी सुदरलैंड ने 1953 में पहली बार नर्स दिवस मनाने का प्रस्ताव रखा था। अमेरिका के राष्ट्रपति डेविट डी. आइजनहावर ने जनवरी, 1974 में 12 मई को अंतरराष्ट्रीय दिवस के तौर पर इसे मनाने की घोषणा की। उनका निधन 99 वर्ष की आयु में 13 अगस्त 1919 को हुआ था। फ्लोरेंस नाइटिंगेल अपनी सेवा भावना के लिए याद की जाती हैं और इसलिए उनके जन्मदिन को 'नर्स दिवस' के रूप में मनाया जाता है।

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