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बीमारी से परेशान होकर इस खिलाड़ी ने कमरे में अपने आपको कर लिया था बंद

विश्व मुक्केबाजी चैम्पियनशिप में राष्ट्रीय चैंपियन दुर्योधन सिंह नेगी ने जीत के साथ शुरुआत की। लेकिन दूसरे दौरे में उन्हें हार का सामना करना पड़ा और इसके साथ ही नेगी विश्व मुक्केबाजी चैम्पियनशिप से बाहर हो गए।

Dharmendra kumar
Published on: 17 May 2023 4:25 PM GMT
बीमारी से परेशान होकर इस खिलाड़ी ने कमरे में अपने आपको कर लिया था बंद
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लखनऊ: विश्व मुक्केबाजी चैम्पियनशिप में राष्ट्रीय चैंपियन दुर्योधन सिंह नेगी ने जीत के साथ शुरुआत की। लेकिन दूसरे दौरे में उन्हें हार का सामना करना पड़ा और इसके साथ ही नेगी विश्व मुक्केबाजी चैम्पियनशिप से बाहर हो गए।

पहली बार विश्व चैम्पियनशिप में हिस्सा लेने वाले दुर्योधन सिंह नेगी ने पहले दौर में जीत हासिल कर अगले दौर में प्रवेश किया था। नेगी ने 69 किलोग्राम भारवर्ग के मुकाबले में अर्मेनिया के कोरयुन एस्टोयान को 4-1 से मात दी।

माकरन कप में रजत पदक जीतने वाले 33 साल के दुर्योधन का दूसरे दौर में मुकाबला छठी वरीयता प्राप्त जॉर्डन के जेयाद ईशाश से हुआ। नेगी को दूसरे दौर में जोर्डन के जायेद एहसास के खिलाफ धीमी शुरुआत का खामियाजा भुगतना पड़ा। पूर्व राष्ट्रीय चैंपियन नेगी को 1-4 के खंडित फैसले से छठी वरीय मुक्केबाज से शिकस्त झेलनी पड़ी।

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रुस के एकाटेरिमबर्ग में विश्व मुक्केबाजी चैम्पियनशिप चल रही है। इस प्रतियोगिता में पहली बार भाग लेने वाले दुर्योधन सिंह नेगी की काहानी बहुत दिलचस्प है। दुर्योधन सिंह नेगी उत्तराखंड के पिथौरागढ़ जिले के रहने वाले हैं। 33 वर्षीय दुर्योधन सिंह अपना नाम स्कूल बदलवाना चाहते थे। उन्होंने ये बातें एक अंग्रेजी अखबार के साथ बातचीत में कहीं।

चैम्पियनशिप में पदक के दावेदार मुक्केबाज का कहना है कि पंडित जी पता नहीं क्या सोचकर मेरा नाम दुर्योधन रख दिया। उन्होंने कहा कि उन्हें इससे आश्चर्य हुआ, क्योंकि उनके पिता बहुत धार्मिक हैं। लेकिन मैंने देखा कि उन्होंने इसका विरोध नहीं किया। दुर्योधन बताते हैं कि जब स्कूल में आए तो उन्होंने सोचा कि वह अपना नाम बदल लें, लेकिन वे ऐसा नहीं कर पाए। दुर्योधन का कहना है कि वह इस नाम के साथ ठीक हैं।

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दुर्योधन सिंह ने भारतीय सेना में भी काम किया है। वह 'घातक कमांडो' के साथ जुड़े हुए थे। घातक कमांडो में करीब-करीब 20 जवान होते हैं। इसमें एक कमांडिंग कैप्टन होता है। दो नन कमीशंड अफसर होते हैं। इसके अलावा मार्क्समैन, स्पॉटर जोड़े, लाइटमशीन गनर, मेडिक और रेडियो ऑपरेटर होते हैं। बाकी बचे सैनिक असॉल्ट ट्रूप के तौर पर काम करते हैं। दुर्योधन सिंह नेगी ने कई आॅपरेशन्स को अंजाम दिया है।

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उनका कहना है कि सेना का अनुभव विश्व चैंपियनशिप की ट्रेनिंग आसान बनाता है। दुर्योधन सिंह बताते हैं कि उनका लक्ष्य भारतीय सेना में भर्ती होना था। वह कहते हैं कि 2003 में उन्होंने सभी परीक्षाएं पास कि लेकिन उच्च रक्तचाप की वजह से मेडिकल में फेल हो गए। वह कहते हैं कि हार मानने के विचार मेरे मन में नहीं था और एक साल बाद मैंने अपना लक्ष्य पा लिया। उन्होंने कहा कि मुझे जम्मू-कश्मीर, नागालैंड और असम जैसे क्षेत्रों में पोस्टिंग मिली जहां हमेशा खुफिया जानकारी और आदशों को पालन का करना का इंतजार रहता था।

दुर्योधन अपने सेना में काम करने के अनुभव को बताते हुए कहते हैं कि एक बार अंतर बटालियन प्रतियोगिता में हिस्सा लेने के लिए कहा गया था। मुझे चिंता हो रही थी, क्योंकि मेरे पास इसका कोई अनुभव नहीं था। मैं सोच रहा था कि अगर हार गया तो मेरा चेहरा धूमिल हो जाएगा, लेकिन मैं ये प्रतियोगिता जीत गया।

उनका कहना है कि बाक्सिंग नई थी, लेकिन उनके लिए कोई बड़ी बात नहीं थी। वह कहते हैं कि मझे याद है कि मैं एक बार सुरनजॉय को ओलंपिक क्वार्टर फाइनल 2000(सिडनी) में दुरदर्शन पर देख रहा था। वह मेडल जीतने के करीब थे। नेगी ने कहा कि वह कुछ दिनों पहले ही उनसे एक कैंप में मिले थे और उनको बताया कि वह उन्हें कितना पंसद करते हैं।

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नेगी के साथ कविंदर सिंह बिष्ट ने बताते हैं कि नेगी और वे एक राज्य ही नहीं बल्कि एक ही जिले से हैं। वह कहते हैं कि नेगी 2015 से उनके रूम पार्टनर हैं। बिष्ट कहते हैं कि हमने सभी उतार-चढ़ाव देखे हैं। इतनी सारी प्रतियोगिताएं, परीक्षण। उन्होंने कहा कि इस आदमी(नेगी) को कभी टूटते हुए नहीं देखा है।

पांच से पहले नेगी टूट गया था और अपने आप को कमरे में बंद कर लिया था। 2014 में सब कुछ सामान्य चल रहा था। नेगी ने उसी साल अपना पहला खिताब भी जीता था। लेकिन उनको विटिलिगो (ल्यूकोडर्मा) एक प्रकार के त्वचा रोग की शुरुआत हुई जिसकी वजह से उनकी त्वचा की रंगत खत्म होती जा रही थी। यह बीमारी नेगी के धीरे-धीरे पूरे शरीर पर दिखाई देने लगीं।

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नेगी को जब प्रतिद्वंद्वियों से लड़ना चाहिए था तब वह अपने आंतरिक राक्षसों से जूझ रहे थे और सार्वजनिक चकाचौंध से छिप रहे थे।

नेगी कहते हैं कि इस बीमारी ने मेरे आत्मविश्वास को बहुत प्रभावित किया। जब भी मैं बाहर जाता मुझे लगता कि सब लोग मुझे ही देख रहे हैं। फिर किसी ने आयुर्वेद दवा का सुझाव दिया और कहा कि मुझे दूध, दही को छोड़ देना चाहिए। एक बॉक्सर इनसे कैसे बच सकता है?

इस चर्मरोग की वजह से टूट चुके नेगी उनके कोच नरेंद्र राणा और एएसआई के बाकी कोचिंग स्टाफ ने समझाया। नेगी अवसाद से ग्रस्त हो गए थे और यह उनके मुक्केबाजी में दिखाई देता था। कोच राणा कहते हैं कि उससे कहा कि तुम्हारे पास फिट बॉडी है और एक फिट बॉक्सर हो।

कोच राणा ने नेगी को आश्वस्त किया कि इसका उनकी मुक्केबाजी पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा। उन्होंने बताया कि हमने नेगी को सभी परीक्षणों और सब कुछ के बाद पूर्ण फिटनेस का प्रमाण पत्र दिलाया। फिर उसको लगा कि यह उसे एक पूर्ण रूप से बॉक्सर बनने से नहीं रोक सकता।

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नेगी कहते हैं कि मैंने सभी चीजों को परिपेक्ष्य में रखा। फिर मैंने विचार-विमर्श किया कि मेरी पत्नी है, मेरा एक बेटा है और एक बेटी है जो मुझे हमेशा प्यार करेंगे। नेगी बताते हैं कि मैंने लोगों को जानता हूं जो न केवल हर दिन लड़ाई लड़ते हैं, लेकिन अपने जीवन को जीते हैं और आनंद लेते हैं।

नेगी कहते हैं कि आप इस त्वचा के साथ सहज महसूस करते हैं और पूरे आत्मविश्वास के साथ घूमते हैं, आपका पूरी दुनिया सम्मान करती है। नेगी कहते हैं कि मुझे लगता है कि मैं बेहतर दिखता हूं। दुर्योधन के यहां तक पहुंचने की कहानी काफी प्रभावित करने वाली है।

Dharmendra kumar

Dharmendra kumar

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