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खेल दिवस 2020: हॉकी का जादूगर ये खिलाड़ी, देखकर हिटलर ने छोड़ा था स्टेडियम
मेजर ध्यानचंद हॉकी के सबसे महान खिलाड़ी है। उनको हॉकी का जादूगर कहा जाता है। उन्होंने साल 1928, 1932 और 1936 में तीन ओलंपिक स्वर्ण पदक जीते।
नई दिल्ली: 29 अगस्त को हर साल भारत में राष्ट्रीय खेल दिवस मनाया जाता है। यह दिन हॉकी के जादूगर मेजर ध्यानचंद का जन्मदिन है। इस दिन देश के राष्ट्रपति, राजीव गांधी खेल रत्न, अर्जुन और द्रोणाचार्य पुरस्कार जैसे अवार्ड नामित लोगों को देते हैं।
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जानते हैं कौन थे मेजर ध्यानचंद जिनका जन्मदिवस खेल दिवस है...
मेजर ध्यानचंद को हॉकी का जादूगर कहते है। 29 अगस्त 1905 को उत्तर प्रदेश के इलाहाबाद जिले में एक राजपूत परिवार में उनका जन्म हुआ था। वो हॉकी के सबसे महान खिलाड़ी है। उनको हॉकी का जादूगर कहा जाता है। उन्होंने साल 1928, 1932 और 1936 में तीन ओलंपिक स्वर्ण पदक जीते।
मिले कई सम्मान
ध्यानचंद ने अपने करियर में 400 से अधिक गोल किए। भारत सरकार ने ध्यानचंद को 1956 में देश के तीसरे सर्वोच्च नागरिक सम्मान पद्म भूषण से सम्मानित किया। इसलिए उनके जन्मदिन को भारत में राष्ट्रीय खेल दिवस मानते हैं।
1928 में पहली बार ओलंपिक खेलने गए ध्यानचंद ने इस पूरे टूर्नामेंट में अपनी हॉकी का ऐसा जादू दिखाया तो विरोधी टीमें के छक्के छूट गए। 1928 में नीदरलैंड्स में खेले गए ओलंपिक में ध्यानचंद ने 5 मैच में सबसे ज्यादा 14 गोल किए और भारत को गोल्ड मेडल जिताया। ध्यानचंद ने 1932 में लॉस एंजलिस में खेले गए ओलंपिक में जापान के खिलाफ अपने पहले ही मुकाबले को भारत ने 11-1 से जीत लिया।
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हिटलर ने छोड़ दिया था स्टेडियम
1936 का साल ध्यानचंद के लिए ओलम्पिक में सबसे ज्यादा यादगार रहने वाला था। ध्यानचंद की कप्तानी में भारतीय टीम बर्लिन पहुंची। भारतीय टीम इस टूर्नामेंट में भी उम्मीदों पर खरी उतरी और विरोधी टीमों को पस्त करते हुए फाइनल तक पहुंची। फाइनल में ध्यानचंद की टीम की भिड़ंत जर्मन चांसर एडोल्फ हिटलर की टीम जर्मनी से होनी थी।
इस मैच को देखने के लिए खुद हिटलर भी पहुंचे थे। लेकिन हिटलर की मौजूदगी या गैर-मौजूदगी से भारतीय टीम या ध्यानचंद के प्रदर्शन पर कोई असर नहीं पड़ा। मैच के पहले हाफ में जर्मनी ने भारत को एक भी गोल नहीं करने दिया। इसके बाद दूसरे हाफ में भारतीय टीम ने एक के बाद एक गोल दागे।
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हिटलर के साथ डिनर
जर्मनी को हार का सामना करना पड़ा। इस मैच के खत्म होने से पहले ही हिटलर ने स्टेडियम छोड़ दिया था क्योंकि वो अपनी टीम को हारते हुए नहीं देखना चाहता था। इस मैच के दौरान हिटलर ने भारतीय टीम मेजर ध्यानचंद की हॉकी स्टिक भी चेक करने के लिए मंगवाई। बर्लिन में 1936 में हुए ओलंपिक खेलों के बाद उनके प्रदर्शन से प्रभावित होकर हिटलर ने उन्हें डिनर पर बुलाया था। हिटलर ने उन्हें जर्मनी की तरफ से हॉकी खेलने का प्रस्ताव भी दिया था लेकिन मेजर ध्यानचंद ने इसे ठुकरा दिया
साल 1948 में अपना आखिरी मैच खेला और अपने पूरे कार्यकाल में कुल 400 से अधिक गोल भी किए। जो कि एक रिकॉर्ड है। ध्यानचंद ने हॉकी में एक के बाद एक कीर्तिमान जो बनाए उन तक आज भी कोई खिलाड़ी नहीं तोड़ सका है।