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Independence Day 2023: स्वतंत्रता दिवस के मौके पर गूगल डूडल ने दुनिया में मशहूर भारतीय फैब्रिक्स को दर्शाया

Independence Day 2023: भारतीय स्वतंत्रता दिवस 15 अगस्त को मनाया जाता है। इस वर्ष भारत अपना 77वॉ स्वतंत्रता दिवस मना रहा है। स्वतंत्रता दिवस के मौके पर गूगल ने अपने डूडल के ज़रिये भारत के विभिन्न टेक्सटाइल की तस्वीरें लगाकर भारत की कला और अनोखी करिगरी को दर्शाया है।

Vertika Sonakia
Published on: 15 Aug 2023 11:29 AM IST
Independence Day 2023: स्वतंत्रता दिवस के मौके पर गूगल डूडल ने दुनिया में मशहूर भारतीय फैब्रिक्स को दर्शाया
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Google Doodle on Independence Day 2023 (Photo: Social Media)

Independence Day 2023: भारतीय स्वतंत्रता दिवस 15 अगस्त को मनाया जाता है। इस वर्ष भारत अपना 77वॉ स्वतंत्रता दिवस मना रहा है। भारत ब्रिटिश औपनिवेशिक शासन से आजादी के76 साल पूरे करेगा - जो देश के लिए एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर है।

स्वतंत्रता दिवस के मौके पर गूगल ने अपने डूडल के ज़रिये भारत के विभिन्न टेक्सटाइल की तस्वीरें लगाकर भारत की कला और अनोखी करिगरी को दर्शाया है।भारत पूरी दुनिया में अपने विभिन्न फैब्रिक और उन पर होने वाली कढ़ाई के लिए प्रसिद्ध है।आइये जानते है भारत के विभिन्न प्रदेशों से आने वाले अलग-अलग सुब्दर फैब्रिक्स और कढ़ाई के बारें के में-

1)खादी: खादी एक नेचुरल फाइबर है। आजादी से पूर्व इसे खद्दर कहा जाता था। कपड़े बुनाने के लिए खादी की रेशमी फाइबर का उपयोग करते हैं, जोबुनाने के प्रक्रिया में हाथ से स्पिन किया जाता है। खादी कपड़े मुख्यत: शर्ट, कुर्ता, साड़ी और अन्य परिधानों में उपयोग होते हैं और इन्हें उन्नत बुनाईतकनीकों से सजाया जाता है। यह एक प्राकृतिक और पर्यावरण-स्थायी विकल्प के रूप में प्रस्तुत होते हैं। इसकी खासियत है कि यह गर्मी के समय ठंडा होता है और सर्दी में गर्म।

2)कलमकारी,आंध्र प्रदेश: कलमकारी एक प्राचीन भारतीय कला प्रथा है जो वस्त्र, छाप, चित्रकला आदि में प्रयुक्त होती है। इसमें चित्रण के लिए खादीके कपड़ों का उपयोग किया जाता है जिन्हें नाईलोन या सिल्क से बने ब्रश या पेन की मदद से रंगिन किया जाता है। आंध्र प्रदेश, भारत, कलमकारी कलाका एक प्रमुख केंद्र है। यहाँ की कलमकारी कला में मुख्य रूप से श्रेष्ठ बुनाई गई खादी कपड़े पर चित्रण किया जाता है। यह कला विविध रंगों औरडिज़ाइन के साथ विशेषत: होती है और इसे वस्त्रों, चादरों, साड़ियों आदि में इस्तेमाल किया जाता है।

3) बनारसी सिल्क,उत्तर प्रदेश: बनारसी सिल्क एक प्रसिद्ध पारंपरिक भारतीय साड़ी का नाम है जो उत्तर प्रदेश के वाराणसी शहर से मानवीय कला औरशिल्प का सुंदर मिश्रण है। बनारसी सिल्क साड़ीयों में भारतीय सांस्कृतिक और कला की महत्वपूर्ण धाराएँ दिखाई जाती हैं। इनमें विशेषत: जरी, जरी-बूटा, रेशम बूटा, ग़ल्ला, वस्त्र पल्लू, और चित्रित मोती का उपयोग होता है। यह सिल्क साड़ी भारतीय सद्गुणों, शैली और रिच टेक्सचर की प्रतीकहोती है और यह उत्तर प्रदेश के कला और शिल्प की महत्वपूर्ण धाराओं में से एक का प्रतीक है। इससे बनने वाली साड़ी पर नजर आने वाली डिजाइन मुगल, फूल, आम के पत्तों और मीनाकारी के काम से प्रेरित होती है।

4) चिकनकारी, लखनऊ, उत्तर प्रदेश: चिकनकारी एक प्रसिद्ध हस्तकला है जो उत्तर प्रदेश के लखनऊ शहर से संबंधित है। यह एक प्रकार की बुनाईतकनीक है जिसमें मुख्य रूप से मोती धागा, श्वेत रेशम धागा और बुटी से नक्काशी की जाती है। चिकनकारी की शुरुआत भारत में मुगल काल के दौरान 16वीं शताब्दी में हुई थी।

चिकनकारी द्वारा बनाई गई वस्त्र विशेष रूप से कमीज़ों, कुर्तों और साड़ियों में प्रयुक्त होती हैं और यह एक बारीकी से नक्काशी की गई होती है जिसमें फूल, पत्तियाँ और अन्य गहरे डिज़ाइन शामिल होते हैं। यह कला लखनऊ की सांस्कृतिक धरोहर का महत्वपूर्ण हिस्सा मानी जाती है और यह वस्त्रों को एलगेंट और आकर्षक बनाती है।

5) चंदेरी, मध्य प्रदेश: चंदेरी एक प्रसिद्ध ग्रामीण क्षेत्र है जो मध्य प्रदेश राज्य, भारत, में स्थित है। यह जगह अपने खास डिज़ाइन और हस्तकलासे प्रसिद्ध है, जिन्हें चंदेरी प्रिंट्स के नाम से भी जाना जाता है।

चंदेरी प्रिंट्स एक प्रकार की ब्लॉक प्रिंटिंग तकनीक का प्रतीक है, जिसमें लकड़ी के छप्परों का उपयोग किया जाता है। इन छप्परों को डिज़ाइन और मोतीयों से भरा जाता है, जिनसे वस्त्र को रंगीन और आकर्षक बनाया जाता है। चंदेरी प्रिंट्स मुख्य रूप से साड़ियों, सुट्स, कुर्तों और अन्य परिधानों में प्रयुक्त होते हैं और इन्हें खास अवसरों पर पहना जाता है। यह कला चंदेरी क्षेत्र की सांस्कृतिक धरोहर का महत्वपूर्ण हिस्सा है और यहाँ की आर्टिस्टिक दक्षता को प्रमोट करता है। इसका उपयोग अक्सर साड़ी बनाने के लिए किया जाता है, लेकिन इसे ब्लाउज, कुर्ता और स्कार्फ जैसे अन्य परिधान बनाने के लिए इस्तेमाल भी किया जा सकता है।

6) पश्मीना, कश्मीर: पश्मीना एक मूलत: कश्मीर से आने वाले श्रेणी का उपनगर्मी कपड़ा होता है, जो उत्तरी भारत के कश्मीर घाटी में उत्पन्न होताहै। यह एक प्राचीन बुनाई प्रक्रिया से तैयार किया जाता है और इसमें पश्मीना रेशमी फाइबर का उपयोग होता है, जो चीनी बकरीयों के रोगरहित लोमों से प्राप्त होता है।

पश्मीना कपड़े का बनावटी और मुलायम अनुभव होता है जो उन्नत तकनीक से बुनकर तैयार किया जाता है। यह कपड़ा विशेषत: शॉल, स्कार्फ, स्वेटर और अन्य गरमी के परिधानों में प्रयुक्त होता है और उसकी बुनाई बेहद कठिन और समय लेने वाली होती है। पश्मीना कपड़ों का मूल्य उनकी बुनाई की जटिलता और उनकी अद्वितीयता के कारण अधिक होता है। इसके कुछ डिजाइन हैंड ब्लॉक प्रिंट होते हैं और यह ब्लॉक कभी-कभी 100 साल से भी अधिक पुराने होते हैं।

7) फुल्कारी, पंजाब: फुल्कारी एक प्रसिद्ध पंजाबी हस्तकला और डिज़ाइन प्रथा है, जो पंजाब राज्य, भारत, से संबंधित है। इस डिज़ाइन मेंछोटे-छोटे गोल गोल डिज़ाइन बनाए जाते हैं जो मुख्यत: गर्मी के मौसम में पहने जाने वाले परिधानों में दिखाई देते हैं, जैसे कि साड़ियाँ, कुर्तियाँ, चादरें आदि। फुल्कारी का अर्थ है फूलों की कढ़ाई।

फुल्कारी के डिज़ाइन में विविध रंगों का उपयोग होता है और यह डिज़ाइन वस्त्रों को जीवंत और आकर्षक बनाता है। इसे मुख्यत: हाथ से बुनकर तैयार किया जाता है और इसकी बुनाई में दक्षता और समय लगता है। फुल्कारी डिज़ाइन पंजाबी सांस्कृतिक और शैली का प्रतीक है और यह परिधानों में उन्नत कला और हस्तकला की महत्वपूर्ण रूपरेखा माना जाता है।

8) कानजीवरम, तमिलनाड़ु: काञ्चीपुरम कपड़ा, जिसे काञ्चीराम कपड़ा भी कहा जाता है, एक प्रसिद्ध पारंपरिक तमिलनाडु का उपनगर्मीकपड़ा है जो काञ्चीपुरम (कांचीवरम) शहर से संबंधित है। यह कपड़ा मुख्य रूप से साड़ियों में प्रयुक्त होता है और इसकी बुनाई और डिज़ाइनधार्मिक और सांस्कृतिक विचारधारा को प्रकट करते हैं।

काञ्चीराम कपड़े की खासियत है कि वह मुलायम और उत्तम गुणवत्ता के रेशम से बनाए जाते हैं, जो उन्नत तकनीक से बुनकर तैयार किए जाते हैं। इनके डिज़ाइन धार्मिक और स्थानीय पारंपरिकता को प्रकट करते हैं, जिनमें मूल तमिल मोतीफ्स, धार्मिक चित्रण और अन्य आभूषण हो सकते हैं।

काञ्चीराम कपड़ों को विभिन्न प्रतिरूपों में उपयोग किया जाता है, जैसे कि साड़ियाँ, सुट्स, ब्लाउज़, और अन्य परिधान। ये कपड़े तमिलनाडुकी कला, शिल्प, और सांस्कृतिक धरोहर का हिस्सा माने जाते हैं और यह वस्त्रों को विशेषत: आकर्षक बनाते हैं। यह सबसे महंगे फैब्रिक्स में से एक है।

9) इकत, हैदराबाद: इकत एक प्रकार की भारतीय टेक्सटाइल बुनाई प्रक्रिया है, जो मुख्य रूप से वस्त्रों में प्रयुक्त होती है। इस तकनीक में, धागे एक विशिष्ट तरीके से बुने जाते हैं ताकि वस्त्र में विशेष डिज़ाइन और पैटर्न बन सके।

इकत वस्त्रों का निर्माण बुनाई करके किया जाता है, जो हाथ से की जाती है और इसमें विभिन्न रंगों का उपयोग होता है ताकि वस्त्र में आकर्षकऔर आलंबिक डिज़ाइन बना सके। हैदराबाद इकट वस्त्रों की महत्वपूर्ण खासियत है कि वे संयोजित और अराजकता से मुक्त ढंग से बनते हैं, जिनसे यह वस्त्र आकर्षक और विशेष दिखते हैं।

इकत कपड़े का उपयोग अक्सर कपड़े, एक्सेसरीज और होम डेकोर की चीजों बनाने के लिए किया जाता है। इसकी शुरुआत भारत में हुई थी लेकिन अब यह इंडोनेसिया, पेरू और अन्य देशों में भी बनाया जाता है।


10) बागरू प्रिंट, गुजरात:
बागरू प्रिंट एक प्रसिद्ध पारंपरिक गुजराती बुनाई तकनीक है जो भारत के गुजरात राज्य से संबंधित है। इस तकनीक की शुरुआत 15वीं शताब्दी में हुई थी। इस तकनीक में, बुने गए वस्त्रों पर विविध डिज़ाइन और पैटर्न का प्रिंट किया जाता है।

बागरू प्रिंट में, प्रिंटिंग के लिए रंग और डिज़ाइन का नक्काशी विशिष्ट तरीके से बुनकर तैयार किया जाता है। इसके बाद, नक्काशी बने हुएबुने हुए वस्त्रों पर डालकर डिज़ाइन को अद्वितीय तरीके से प्रिंट किया जाता है। इस प्रक्रिया से बने वस्त्र विभिन्न प्रतिरूपों में उपयोग किए जातेहैं, जैसे कि साड़ियाँ, ड्रेसेस, स्कर्फ, और अन्य परिधान।

बागरू प्रिंट गुजराती सांस्कृतिक और शैली का प्रतीक माना जाता है और यह वस्त्रों को आकर्षक और विशेष बनाता है। यह प्रिंट गुजरात कीउन्नत वस्त्र बुनाई तकनीकों में से एक का प्रतीक है और इसे दुनियाभर में प्रसिद्धी प्राप्त है।



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