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नवरात्रों में जानिए ऐसे मंदिरों के बारें में, जहां पुरूषों का प्रवेश है वर्जित

देश में सात ऐसे मंदिर है, जहाँ पुरुषों के प्रवेश पर रोक है। हालांकि, इन मंदिरों में सबरीमाला की तरह नियम नहीं हैं, लेकिन मान्यता यही कहती है, कि पुरुषों को सिर्फ मंदिर के आंगन तक ही जाने की अनुमति हैं। मूर्ति के पास तक नहीं।

Vidushi Mishra
Published on: 10 April 2019 3:11 PM IST
नवरात्रों में जानिए ऐसे मंदिरों के बारें में, जहां पुरूषों का प्रवेश है वर्जित
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भारत में कई ऐसी धार्मिक जगहें हैं,जहाँ महिलाओं को प्रवेश करने की अनुमति नहीं है। पर साथ ही पुरूषों के लिए भी कुछ धार्मिक जगहों में प्रवेश की अनुमति नहीं है।

देश में सात ऐसे मंदिर है, जहाँ पुरुषों के प्रवेश पर रोक है। हालांकि, इन मंदिरों में सबरीमाला की तरह नियम नहीं हैं, लेकिन मान्यता यही कहती है, कि पुरुषों को सिर्फ मंदिर के आंगन तक ही जाने की अनुमति हैं। मूर्ति के पास तक नहीं।

1. अट्टुकल मंदिर (तिरुवनंतपुरम, केरल)

भारत के केरल में स्थित अट्टुकल मंदिर में महिलाओं ही पूजा कर सकती हैं यहां पुरुषों का वर्जित है। मंदिर में भद्रकाली की पूजा होती है।

यह वह मंदिर है, जिसका नाम गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड में दर्ज था, क्योंकि यहाँ एक साथ 35 लाख महिलाएं आ गई थीं। ये अपने आप में महिलाओं की सबसे बड़ा ऐसा जुलूस था। जो किसी धार्मिक काम के लिए इकट्ठा हुआ था।

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कथा यह है,कि ‘कन्नागी’ जिसे ‘भद्रकाली’ का रूप माना जाता है। उनकी शादी एक धनी परिवार के बेटे कोवलन से हुई थी, लेकिन कोवलन ने एक नाचने वाली पर सारा धन लुटा दिया और जब उसे अपनी गलती का एहसास हुआ, तब तक वह बर्बाद हो चुका था। कन्नागी के पास एक बेहद कीमती पायल ही बची थी। जिसे बेचने के लिए वह मदुरई के राजा के दरबार कोवलन गए था। उसी समय रानी की वैसी ही पायल चोरी हुई थी और कोवलन को इसका दोषी मान उसका सिर कलम कर दिया गया। इसके बाद कन्नागी ने अपनी दूसरी पायल दिखाई थी और मदुरई को जलने का श्राप दिया था। कन्नागी उसके बाद मोक्ष को प्राप्त हो गयी थीं। ऐसा माना जाता है, कि भद्रकाली अट्टुकल मंदिर में पोंगल के दौरान 10 दिन रहती हैं।

अट्टुकल मंदिर (तिरुवनंतपुरम, केरल)

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2. चक्कुलाथुकावु मंदिर (नीरात्तुपुरम, केरल)

यह मंदिर भी केरल का ही है। यहाँ हर साल पोंगल के अवसर पर नवंबर-दिसंबर में नारी पूजा होती है। इस पूजा में पुरुष पुजारी महिलाओं के पैर धोते हैं। इस दिन को धानु के नाम से जाना जाता है। इस दिन पुजारी पुरुष भी मंदिर के अंदर नहीं जा सकते। पोंगल के समय 15 दिन पहले से ही यहाँ महिलाओं की भीड़ दिखने लगती है। महिलाएं अपने साथ चावल, गुड़ और नारियल लेकर आती है, ताकि पोंगल बनाया जा सके और प्रसाद रूप में वितरित किया जा सके। ये मंदिर मां दुर्गा को समर्पित है।

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इस मंदिर को महिलाओं का सबरीमला भी कहा जाता है। हिंदू पुराण देवी महात्मयम में इस मंदिर के बारे में बताया गया है। कि देवी को शुंभ और निशुंभ नाम के दो राक्षसों को मारने के लिए सभी देवताओं ने याद किया था, क्योंकि वह राक्षस किसी पुरुष के हाथों नहीं मर सकते थे। देवी ने यहाँ आकर दोनों का वध किया था।

चक्कुलाथुकावु मंदिर (नीरात्तुपुरम, केरल)

3. संतोषी माता मंदिर (जोधपुर, राजस्थान)

वैसे तो संतोषी माता का मंदिर और व्रत दोनों ही महिलाओं के लिए है, इस समय उन्हें खट्टी चीज़ें खाने की अनुमति नहीं होती। लेकिन पुरुष भी इस मंदिर में जाते है। जोधपुर में विशाल मंदिर है, जो पौराणिक मान्यता रखता है। हालांकि, संतोषी माता की पूजा की अगर ऐतिहासिक कहानी देखी जाए, तो यह माता1960 के दशक से ही ज्यादा लोकप्रिय हुई।

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संतोषी माता के मंदिर में शुक्रवार को महिलाओं को खास पूजा करने की अनुमति है, और महिलाएं ही इस व्रत को रखती हैं। व्रत कथाओं में संतोषी माता की भक्त सत्यवती की कहानी कही जाती है। शुक्रवार को यहाँ पुरुषों को नही जाने दिया जाता हैं। हालांकि, ये मनाही सिर्फ एक दिन की ही है, लेकिन फिर भी इसे जरूरी माना जाता है।

जोधपुर संतोषी माता मंदिर परिसर

4. ब्रह्म देव का मंदिर (पुष्कर, राजस्थान)

पूरे हिंदुस्तान में ब्रह्मा का एक ही मंदिर है, जोकि पुष्कर में स्थित हैं। यह मंदिर ऐसी ऐतिहासिक मान्यता है, कि यहाँ कोई वैवाहित पुरूष मंदिर में भगवान की पूजा नही कर सकता।

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मान्यता यह है, कि जो भी वैवाहित पुरूष मंदिर में जायेंगे, तो उनका वैवाहिक जीवन दुखों से भर जायेगा। इसलिये पुरुष मंदिर के आंगन तक ही जाते हैं, और अंदर पूजा सिर्फ महिलाएं ही करती हैं।

कथानुसार, ब्रह्मा जी को पुष्कर में एक यज्ञ करना था, और माता सरस्वती उस यज्ञ के लिए देरी से आयी, इसलिए ब्रह्मा जी ने देवी गायत्री से शादी कर यज्ञ पूरा कर लिया। इसके बाद देवी सरस्वती रूठ गईं और श्राप दिया, कि कोई भी शादीशुदा पुरुष ब्रह्मा के मंदिर में नहीं जाएगा।

ब्रह्मा मंदिर पुष्कर

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5. कोट्टनकुलंगरा/ भगवती देवी मंदिर (कन्याकुमारी, तमिलनाडु)

ये मंदिर कन्याकुमारी में स्थित है। यहाँ माँ भगवती या आदि शक्ति की पूजा होती है। जो माँ दुर्गा का ही रूप हैं। इस मंदिर में पुरुषों का आना मना है। यहां भी पूजा करने के लिए सिर्फ स्त्रियां ही आती हैं. किन्नरों को भी इस मंदिर में पूजा करने की आजादी है, लेकिन अगर पुरुष यहां आना चाहें तो उन्हें पूरी तरह से सोलह श्रंगार करना होगा।

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मान्यता यह है, कि देवी यहाँ तपस्या करने आयी थी, ताकि उन्हें भगवान शिव पति के रूप में मिल सकें। एक और मान्यता के अनुसार सती माता की रीढ़ की हड्डी यहाँ गिरी थी, उसके बाद यहाँ मंदिर बना दिया गया। ये सन्यास का भी प्रतीक है, इसलिए सन्यासी पुरुष मंदिर के गेट तक तो जा सकते हैं, लेकिन उसके आगे उनका प्रवेश करना भी वर्जित हैं।

कोट्टनकुलंगरा/ भगवती देवी मंदिर

6. मुजफ्फरपुर का माता मंदिर (मुजफ्फरपुर बिहार)

बिहार के मुजफ्फरपुर में एक ऐसा देवी का मंदिर है, जहां पुरुषों का आना एक सीमित समय के लिए वर्जित होता है। इस मंदिर के नियम इतने सख्त हैं, कि यहाँ पुरुष पुजारी भी इस दौरान नहीं आ सकतें और सिर्फ महिलाएं ही यहाँ पूजा करती हैं।

मुजफ्फरपुर का माता मंदिर (मुजफ्फरपुर बिहार)

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7. कामरूप कामाख्या मंदिर (गुवाहाटी, असम)

यह मंदिर असम के गुवाहाटी में स्थित हैं। यह मंदिर 108 शक्ति पीठों में से एक हैं। मान्य्ता के अनुसार यहाँ देवी की मासिकधर्म के समय पूजा की जाती है। महिलाएं यहां मासिकधर्म के समय भी आ सकती हैं। यहाँ पुजारी भी महिलाएं ही हैं। माता सती का मासिक धर्म वाला कपड़ा बहुत पवित्र माना जाता है।

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धार्मिक मान्यता यह है, कि जब सती माता ने अपने पिता के हवन कुंड में कूदकर जान दी थी, तब भगवान शिव इतने क्रोधित हो गए थे, कि वह सती का शरीर लेकर तांडव करने लगे। विष्णु भगवान ने सृष्टि को बचाने के लिए सती के शरीर को सुदर्शन चक्र से काट दिया था। सती के 108 टुकड़े हुए थे। जो पृथ्वी पर जहाँ भी गिरे, वहाँ शक्ति पीठ बन गई। कामाख्या में माता सती का गर्भ और उनकी योनि‍ गिरी थी। इसीलिए मूर्ति भी योनि‍ रूपी है, और मंदिर में एक गर्भ ग्रह भी है। इस मंदिर की देवी को साल में तीन दिन महावारी होती है।

कामरूप कामाख्या मंदिर (गुवाहाटी, असम)

Vidushi Mishra

Vidushi Mishra

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