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बुजुर्ग के साथ 500 किलोमीटर ऐसे किया सफर, देखकर हर किसी की भर आईं आंखें

कोरोना की मार ने रोजी-रोटी छीन ली तो घर लौटने के सिवा उनके सामने चारा भी क्या था। श्रावस्ती के 40 मजदूरों की टोली भी ट्रेन और बस सेवा बंद होने के कारण पैदल ही घर के लिए निकल पड़ी, लेकिन साथ रहने वाले 80 साल के बुजुर्ग सालिग को भी तो नहीं छोड़ा जा सकता था।

Vidushi Mishra
Published on: 29 March 2020 3:44 PM IST
बुजुर्ग के साथ 500 किलोमीटर ऐसे किया सफर, देखकर हर किसी की भर आईं आंखें
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बुजुर्ग के साथ 500 किलोमीटर ऐसे किया सफर, देखकर हर किसी की भर आईं आंखें

लखनऊ। कोरोना की मार ने रोजी-रोटी छीन ली तो घर लौटने के सिवा उनके सामने चारा भी क्या था। श्रावस्ती के 40 मजदूरों की टोली भी ट्रेन और बस सेवा बंद होने के कारण पैदल ही घर के लिए निकल पड़ी, लेकिन साथ रहने वाले 80 साल के बुजुर्ग सालिग को भी तो नहीं छोड़ा जा सकता था। फिर क्या था। टोली में शामिल युवाओं ने कपड़े का एक झूला बनाया और उसे बांस में फंसाकर चार कंधों पर टांग लिया। झूले में बैठे थे 80 साल के सालिग। पांच दिन के सफर के बाद जब यह टोली लखनऊ पहुंची तो युवाओं की मेहनत पर सालिग की आंखों में भी आंसू आ गए।

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सालिग को मार चुका है लकवा

सालिग बीमार हैं। चल फिर नहीं सकते। उनके एक हाथ और पैर को लकवा मार गया है। इसलिए उनके सामने युवाओं के कंधे के सहारे के सिवा कोई चारा भी नहीं था। जिस किसी ने सालिग को कंधे पर ले जा रहे इन युवाओं को देखा उनकी आंखें भर आईं। लोगों को श्रवण कुमार की कथा याद आ गई।भूखे प्यासे बच्चों, औरतों , युवाओं और बूढ़ों की यह 40 लोगों की टोली श्रावस्ती जिले के इकौना बाजार के लिए निकली थी।

युवाओं ने बारी-बारी से बुजुर्ग को उठाया

टोली में शामिल युवाओं ने बताया कि 80 साल के सालिग चलने फिरने में असमर्थ हैं। इस कारण हमने इनके लिए कपड़े का एक झूला बनाने का फैसला किया और फिर इस झूले को बांस में फंसा कर अपने कंधों पर लाद लिया। टोली में शामिल युवा बारी-बारी से बुजुर्ग को उठाकर लखनऊ पहुंचे।

सिकेरा की मदद से पहुंचे अपने घर

गोमतीनगर के सिनेपोलिस मॉल के पास बैठे लोगों की इस टोली में शामिल हर सदस्य के चेहरे पर थकान झलक रही थी। उन्हें देखकर ही यह समझा जा सकता था कि वह भूखे प्यासे हैं। इसी बीच इस टोली पर सीनियर आईपीएस अफसर नवनीत सिकेरा और स्थानीय थाने के प्रभारी श्याम बाबू शुक्ला की नजर पड़ी। सिकेरा ने जब टोली में शामिल लोगों से बातचीत की तो उन्होंने अपनी दर्द भरी दास्तान सुनाई।

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बुजुर्ग सालिग तो फफक फफक कर रोने लगे। सिकेरा ने पहले तो टोली के सदस्यों के खाने-पीने का इंतजाम किया और फिर उत्तर प्रदेश सड़क परिवहन निगम के एमडी राजशेखर से बातचीत करके इन लोगों को सरकारी बस से श्रावस्ती भेजने का इंतजाम किया।

कोरोना वायरस ने छीन ली रोजी रोटी

टोली में शामिल जगराम का कहना था कि वह दिल्ली में दिहाड़ी मजदूर है। कोरोना वायरस के कारण जनता कर्फ्यू का ऐलान होने के बाद उसके ठेकेदार ने उसे पैसा भी नहीं दिया और काम लेने से मना कर दिया। जगराम ने बताया कि उसके जैसे तमाम अन्य लोगों के पास भी पैसे का कोई इंतजाम नहीं था। घर लौटने का कोई साधन भी नहीं था। लिहाजा वह पैदल ही दिल्ली से श्रावस्ती के लिए कूच कर गए।

नहीं हुआ बेटे की कमी का एहसास

जगराम ने सफर की दर्द भरी दास्तां बताते हुए कहा कि रास्ते में कहीं ट्रक तो कहीं टेंपो पर कुछ कुछ देर का का सहारा लिया। बंदी के कारण पैसे भी ज्यादा देने पड़े। टोली में शामिल कोई भी सदस्य बुजुर्ग सालिग का अपना बेटा नहीं था। कोई उनका भांजा था तो कोई बहनोई तो कोई साला मगर किसी ने सालिग को बेटे की कमी का एहसास नहीं होने दिया। पांच दिन के इस सफर के दौरान टोली के हर सदस्य ने उनका ख्याल रखा।

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सफर में हर किसी ने रखा बुजुर्ग का ख्याल

इस बाबत पूछने पर बुजुर्ग सालिग की आंखें भर आई। उन्होंने कहा कि मुसीबत भरे इस सफर के दौरान हर किसी ने मेरा जरूरत से ज्यादा ख्याल रखा। इतना तो शायद अपना बेटा भी होता तो नहीं करता। टोली में शामिल सभी सदस्यों ने आईपीएस सिकेरा के प्रति कृतज्ञता जताई। उन्होंने कहा कि रास्ते से गुजरते वक्त सिकेरा ने उन लोगों को देखकर अपनी गाड़ी रोक ली और उन्हें श्रावस्ती तक भेजने का इंतजाम किया।

सिकेरा की भी भर आई आंखें

सिकेरा ने भी कहा कि बल्ली पर लटके बुजुर्ग को देखकर खुद उनकी आंखें भी भर आईं। उन्होंने कहा कि वे टोली के सदस्यों को इस तरह बुजुर्ग को ले जाते देखकर खुद भी हैरान हो गए क्योंकि 500 किलोमीटर तक किसी शख्स को कंधे पर लादकर सफर करना बहुत ही मुश्किल काम है।

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Vidushi Mishra

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