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जानिए कौन हैं परमहंस रामचन्द्र दास, राम मंदिर निर्माण में क्या है इनकी भूमिका

राम जन्मभूमि पर मंदिर निर्माण के लिए प्रयासरत परमहंस रामचन्द्र दास जी महाराज द्वारा मंदिर निर्माण हेतु अपने जीवन काल में शीला दान किया था जो जिला कचहरी के डबल लॉक में सुरक्षित रखा हुआ है

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Published on: 29 July 2020 5:22 AM GMT
जानिए कौन हैं परमहंस रामचन्द्र दास, राम मंदिर निर्माण में क्या है इनकी भूमिका
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अयोध्या: आगामी 5 अगस्त को श्री राम जन्मभूमि पूजन की तैयारियां स्थानीय स्तर पर बड़े जोर शोर से चल रही हैं, जबकि जनपद में कोरोना महामारी संक्रमण दिन प्रतिदिन फैलता जा रहा है।

मंदिर आंदोलन की लड़ाई जीवन पर्यन्त लड़ते रहे

राम जन्मभूमि पर मंदिर निर्माण के लिए प्रयासरत परमहंस रामचन्द्र दास जी महाराज द्वारा मंदिर निर्माण हेतु अपने जीवन काल में शीला दान किया था जो जिला कचहरी के डबल लॉक में सुरक्षित रखा हुआ है, लेकिन नरेंद्र मोदी जी के कार्यक्रम के दौरान वह शीला दान फिलहाल उसी डबल लॉक में बंद रहेगा जबकि अयोध्या के मंदिर आंदोलन की लड़ाई 1950 से जीवन पर्यन्त लड़ते रहे।

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बताया जाता है कि उन्होंने ने श्रीराम जन्मभूमि में पूजा-अर्चना के लिए 1950 में जिला न्यायालय में प्रार्थनापत्र दिया। अदालत ने उस प्रार्थना पत्र पर अनुकूल आदेश दिए और निषेधाज्ञा जारी की। मुस्लिम पक्ष ने उच्च न्यायालय में अपील की, उच्च न्यायालय ने अपील रद्द करके पूजा-अर्चना बेरोक-टोक जारी रखने के लिए जिला न्यायालय के आदेश की पुष्टि कर दी। इसी आदेश के कारण आज तक श्रीराम जन्मभूमि पर श्रीरामलला की पूजा-अर्चना होती चली आ रही है।

श्रीराम जन्मभूमि मुक्ति के 77वें संघर्ष की शुरूआत अप्रैल, 1984 की प्रथम धर्म संसद (नई दिल्ली) में हुई, जिसमें अयोध्या, मथुरा, काशी के धर्म स्थानों की मुक्ति का प्रस्ताव स्वर्गीय दाऊदयाल खन्ना जी के द्वारा रखा गया, जो सर्वसम्मति से पारित हुआ।

दिगम्बर अखाड़ा, अयोध्या में परमहंस रामचन्द्र दास जी की अध्यक्षता में 77वें संघर्ष की कार्य योजना के संचालन हेतु प्रथम बैठक हुई थी, जिसमें श्रीराम जन्मभूमि मुक्ति यज्ञ समिति का गठन हुआ। परमहंस जी सर्वसम्मति से यज्ञ समिति के वरिष्ठ उपाध्यक्ष चुने गए।

...श्रीराम जन्मभूमि न्यास की स्थापना हुई

जन्मभूमि को मुक्त कराने हेतु जन-जागरण के लिए सीतामढ़ी से अयोध्या तक राम-जानकी रथ यात्रा का कार्यक्रम भी इसी बैठक में तय हुआ था। उत्तर प्रदेश में भ्रमण के लिए अयोध्या से भेजे गए 6 राम-जानकी रथों का पूजन परमहंस जी महाराज के द्वारा अक्टूबर 1985 में सम्पन्न हुआ था। पूज्य परमहंस जी महाराज की दूरदर्शिता के परिणामस्वरूप जगद्गुरु रामानन्दाचार्य स्वामी शिवरामाचार्य जी महाराज के द्वारा श्रीराम जन्मभूमि न्यास की स्थापना हुई।

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दिसम्बर 1985 की द्वितीय धर्म संसद उडुपी (कर्नाटक) में पूज्य परमहंस जी की अध्यक्षता में हुई जिसमें निर्णय हुआ कि यदि 8 मार्च 1986 को महाशिवरात्रि तक रामजन्मभूमि पर लगा ताला नहीं खुला तो महाशिवरात्रि के बाद ताला खोलो आन्दोलन, ताला तोड़ो में बदल जाएगा और 8 मार्च के बाद प्रतिदिन देश के प्रमुख धर्माचार्य इसका नेतृत्व करेंगे।

सम्पूर्ण विश्व के रामभक्तों को जन्मभूमि के साथ प्रत्यक्ष जोड़ दिया

पूज्य परमहंस रामचन्द्र दास जी महाराज ने अयोध्या में अपनी इस घोषणा से सारे देश में सनसनी फैला दी कि "8 मार्च 1986 तक श्रीराम जन्मभूमि का ताला नहीं खुला तो मैं आत्मदाह करूंगा।' जिसका परिणाम यह हुआ कि 1 फ़रवरी 1986 को ही ताला खुल गया। जनवरी, 1989 में प्रयाग महाकुम्भ के अवसर पर आयोजित तृतीय धर्मसंसद में शिला पूजन एवं शिलान्यास का निर्णय परमहंस जी की उपस्थिति में ही लिया गया था। इस अभिनव शिलापूजन कार्यक्रम ने सम्पूर्ण विश्व के रामभक्तों को जन्मभूमि के साथ प्रत्यक्ष जोड़ दिया।

श्रीराम जन्मभूमि न्यास के अध्यक्ष जगद्गुरु रामानन्दाचार्य पूज्य स्वामी शिवरामाचार्य जी महाराज का साकेतवास हो जाने के पश्चात्‌ अप्रैल, 1989 में परमहंस जी महाराज को श्रीराम जन्मभूमि न्यास का कार्याध्यक्ष घोषित किया गया।

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परमहंस जी महाराज की दृढ़ संकल्प शक्ति के परिणामस्वरूप ही निश्चित तिथि, स्थान एवं पूर्व निर्धारित शुभ मुहूर्त 9 नवम्बर 1989 को शिलान्यास कार्यक्रम सम्पन्न हुआ।

30 अक्टूबर 1990 की कारसेवा के समय अनेक बाधाओं को पार करते हुए अयोध्या में आये हजारों कारसेवकों का उन्होंने नेतृत्व व मार्गदर्शन भी किया। 2 नवम्बर 1909 को परमहंस जी का आशीर्वाद लेकर कारसेवकों ने जन्मभूमि के लिए कूच किया। उस दिन हुए बलिदानश् के वे स्वयं साक्षी थे। बलिदानी कारसेवकों के शव दिगम्बर अखाड़े में ही लाकर रखे गए थे।

परमहंस महाराज को मन्दिर निर्माण समिति का अध्यक्ष चुना गया

अक्टूबर 1982 में दिल्ली की धर्म संसद में 6 दिसम्बर की कारसेवा के निर्णय में आपने मुख्य भूमिका निभायी और स्वयं अपनी आंखों से उस ढांचे को बिखरते हुए देखा था जिसका स्वप्न वह अनेक वर्षों से अपने मन में संजोए थे। अक्टूबर 2000 में गोवा में केन्द्रीय मार्गदर्शक मण्डल की बैठक में पूज्य परमहंस जी महाराज को मन्दिर निर्माण समिति का अध्यक्ष सर्वसम्मति से चुना गया। जनवरी, 2002 में अयोध्या से दिल्ली तक की चेतावनी सन्त यात्रा का निर्णय पूज्य परमहंस रामचन्द्र दास जी का ही था। 26 जनवरी 2002 को प्रधानमंत्री से मिलने गए सन्तों के प्रतिनिधि मण्डल का नेतृत्व भी आपने ही किया।

मार्च 2002 के पूर्णाहुति यज्ञ के समय शिलादान पर अदालत द्वारा लगायी गई बाधा के समय 13 मार्च को पूज्य परमहंस की इस घोषणा ने सारे देश व सरकार को हिला कर रख दिया कि "अगर मुझे शिलादान नहीं करने दिया गया तो मैं रसायन खाकर अपने प्राण त्याग दूंगा।'

आन्दोलन को तीव्र गति से चलाने के लिए सितम्बर, 2002 को केन्द्रीय मार्गदर्शक मण्डल की लखनऊ बैठक में परमहंस जी की योजना से ही गोरक्ष पीठाधीश्वर महन्त अवैद्यनाथ जी महाराज की अध्यक्षता में श्रीराम जन्मभूमि मन्दिर निर्माण आन्दोलन उच्चाधिकार समिति का निर्माण हुआ।

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26 मार्च 2003 को दिल्ली में आयोजित सत्याग्रह के प्रथम जत्थे का नेतृत्व कर पूज्य परमहंस रामचन्द्र दास जी महाराज ने अपनी गिरफ्तारी दी।

29, 30 अप्रैल 2003

29, 30 अप्रैल 2003 को अयोध्या में आयोजित उच्चाधिकार समिति की बैठक में परमहंस जी के परामर्श से ही श्रीराम संकल्पसूत्र संकीर्तन कार्यक्रम की योजना का निर्णय हुआ। इसके द्वारा दो लाख गांवों के दो करोड़ रामभक्त प्रत्यक्ष रूप से मन्दिर के साथ सहभागी बनेंगे। इसके बाद बीमारी की अवस्था में भी वे अपने संकल्प को दृढ़ता के साथ व्यक्त एवं देश, धर्म-संस्कृति की रक्षा हेतु समाज का मार्गदर्शन करते रहे। आज जब मंदिर निर्माण में भूमि पूजन का समय आया है ऐसे महापुरुष को जो स्थान मिलना चाहिए फिलहाल वह नहीं मिल रहा है और उनकी सिला दान की हुई सरकारी संस्थानों में फिलहाल सुरक्षित है। अभी 2 दिन पूर्व ही रामचंद्र परमहंस दास की पुण्यतिथि मनाई गई।

रिपोर्ट: नाथ बख्श सिंह

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