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कोरोना का खौफ़: ट्रेनों-बसों में यात्रियों का टोटा, खाली जा रहीं गाड़ियां

मई और जून महीने में लगन के चलते ट्रेन से लेकर रोडवेज बसों में मारामारी होती है। डग्गामार बस और टैक्सियों में भी जून महीने में खूब भीड़ होती है।

Aradhya Tripathi
Published on: 12 Jun 2020 4:46 PM IST
कोरोना का खौफ़: ट्रेनों-बसों में यात्रियों का टोटा, खाली जा रहीं गाड़ियां
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पूर्णिमा श्रीवास्तव

गोरखपुर: रेलवे या रोडवेज प्रशासन, या फिर ऑटो वाले। सभी दावा कर रहे हैं कि वह सैनिटाइजेशन को लेकर सतर्क हैं। ट्रेन, बस या फिर ऑटो में यात्रा सुरक्षित है। लेकिन पब्लिक ट्रांसपोर्ट पर लोगों का भरोसा अभी लौट नहीं रहा है। लोग मजबूरी में ही पब्लिक ट्रांसपोर्ट का सहारा ले रहे हैं। ऐसे में न तो ट्रेनों में यात्री हैं, और न ही रोडवेज की बसों में। ऑटो और कैब में भी लोग मजबूरी में ही यात्रा कर रहे हैं। बहुत जरूरी होने पर लोग निजी वाहनों का ही सहारा ले रहे हैं।

यात्रियों का टोटा

मई और जून महीने में लगन के चलते ट्रेन से लेकर रोडवेज बसों में मारामारी होती है। डग्गामार बस और टैक्सियों में भी जून महीने में खूब भीड़ होती है। यात्रियों की संख्या के लिहाज से जून माह रेलवे के लिए महत्वपूर्ण होता है। लॉकडाउन में श्रमिक एक्सप्रेस के बाद पूर्वोत्तर रेलवे गोरखपुर से मुंबई, गुजरात और दिल्ली के लिए पांच ट्रेनें संचालित कर रहा है। डिमांड पर चलाई गईं इन ट्रेनों में यात्रियों का टोटा है।

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मुंबई और दिल्ली से गोरखपुर की तरफ आने वाली ट्रेनों में तो स्थिति कुछ हद तक ठीक भी है, लेकिन यहां से जाने वालों की संख्या काफी कम है। न तो टिकट काउंटर पर यात्रियों की भीड़ है और न ही ऑनलाइन बुकिंग को लेकर तेजी है। ट्रेनों में यात्रियों के टोटा में रेलवे स्टेशन का अर्थशास्त्र ही बेपटरी हो गया है। विश्व के सबसे लंबे गोरखपुर रेलवे स्टेशन पर न तो कुली दिख रहे हैं, न ही खानपान की दुकानों पर ही कोई डिमांड है। सिर्फ पानी के बॉटल की डिमांड सामान्य के करीब है।

कोरोना वायरस का खौफ़

कोरोना संक्रमण के खौफ का आलम यह है कि पहले एक ट्रेन में जितने यात्री जाते थे उतने पांच ट्रेनों में भी सफर नहीं कर रहे हैं। पहले जहां मई और जून के महीने में दिल्ली और मुम्बई जाने वाली ट्रेनों में एक एक सीट के लिए मारामारी होती थी। उन्हीं ट्रेनें में यात्री ही नहीं मिल रहे हैं। जून 2019 में जहां गोरखधाम और कुशीनगर में 2100 से 2200 यात्री जाते थे, वहीं 10 जून 2020 को पांच ट्रेनें मिलाकर 2100 यात्री पूरे नहीं हुए। सबसे बुरी स्थिति मुंबई जाने वाली ट्रेनों की है। करीब 1600 यात्रियों की क्षमता वाले कुशीनगर एक्सप्रेस से 4 जून को 301 यात्री गए तो 6 जून को सिर्फ 291 यात्री। मुबई जाने वाली एलटीटी एक्सप्रेस में 2 जून को 370 यात्री गए तो 6 जून को यह संख्या 240 पर सिमट गई।

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दिल्ली जाने वाली ट्रेनें भी आधी नहीं भर रहीं हैं। गोरखपुर से दिल्ली को जाने वाली गोरखधाम एक्सप्रेस में औसतन रोज 750 यात्री ही सफर कर रहे हैं। वहीं अहमदाबाद जाने वाली ट्रेन में 600 यात्री भी नहीं पहुंच रहे हैं। रेलवे पर नजर रखने वाले पत्रकार आशीष श्रीवास्तव बताते हैं कि जून के महीने में गोरखधाम, वैशाली, एलटीटी और अवध एक्सप्रेस में हर कोच में 10 से 15 यात्री प्रतीक्षा सूची के बाद भी सफर करते थे। साधारण कोच में जिनती सीट होती थी, उससे दोगुने यात्री सफर करते थे। मसलन, गोरखधाम में 1630 सीट है तो कम से 2100 से 2200 यात्री यात्रा करते हैं। इतना ही नहीं रोजाना 200 से 250 यात्री यात्रा से वंचित रह जाते थे।

बसों का भी हाल ख़राब

गोरखपुर परिक्षेत्र से करीब 1200 बसें सामान्य दिनों में विभिन्न शहरों को रवाना होती हैं। वर्तमान में 20 फीसदी बसें भी नहीं निकल रही हैं। दिल्ली जाने वालों की संख्या नहीं के बराबर है। वैसे भी रोडवेज की बसें गाजियाबाद के कौशाम्बी तक ही जा रही हैं। जो दिल्ली का बार्डर है। गोरखपुर से कौशाम्बी के लिए चलने वाली वातानुकूलित शताब्दी बस सेवा में दो से तीन यात्री ऑनलाइन बुकिंग तो कराते हैं लेकिन बस स्टेशन पर आने के बाद उन्हें निराशा ही हाथ लगती है। गोरखपुर डिपो के एआरएम केके तिवारी का कहना है कि मुख्यालय से आदेश है कि 60 फीसदी सीट भरने के बाद ही बसों को रवाना किया जाए। पिछले 10 दिनों से शताब्दी बस सेवा यात्रियों के इंतजार के बाद रद हो रही है। राप्तीनगर डिपो के कंडक्टर रामप्रीत यादव बताते हैं कि लखनऊ की बस भरने में बमुश्किल 30 मिनट लगते थे। इनमें से 80 फीसदी सवारी लखनऊ की होती थी।

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ट्रेवल एजेंसी चलाने वाले बासुकी नाथ का कहना है कि कोरोना के खौफ में लोग घरों से नहीं निकल रहे हैं। बहुत जरूरी होने पर निजी वाहन से निकल रहे हैं, मजबूरी में ही लोग बस का सफर कर रहे हैं। गोरखपुर डिपो के रेलवे बस स्टेशन से पहली जून से बसें रवाना होने लगीं। पहली जून को सिर्फ 28 बसें रवाना हुईं। यह आकड़ा फिलहाल 100 तक नहीं पहुंच सका है। गोरखपुर से लखनऊ के बीच 125 से 150 बसें चलती थीं, वर्तमान में यह संख्या 5 से 8 के बीच सिमट गई है। रोडवेज कर्मचारी विनोद तिवारी बताते हैं कि लखनऊ की सवारियां तो कुछ हद तक निकल रही हैं लेकिन लोकल रूट पर तो यात्रियों का जबरदस्त टोटा है। जब रेलवे स्टेशन पर ट्रेन से यात्री आते हैं तो देवरिया, कुशीनगर, सिद्धार्थनगर, सोनौली और महराजगंज की बसों में सवारी मिलती है।

निजी इस्तेमाल के वाहनों की बिक्री बढ़ी

पब्लिक ट्रांसपोर्ट के खौफ ने ऑटो सेक्टर को संजीवनी दे रखी है। जो लोग ऑटो या बस से दफ्तर या कारोबार के चलते सफर करते थे, वह निजी वाहनों का प्रयोग कर रहे हैं। नतीजतन, बीएस-4 के बाद लॉकडाउन में फंसा ऑटो सेक्टर बंदिशों के चलते ही रफ्तार पकड़ रहा है। कमोबेश सभी ब्रांड की प्रीमियम रेंज की गाड़ियों की ही डिमांड है। हीरो कंपनी की गाड़ियों के प्रमुख डीलर नितेन मातनहेलिया कहते हैं कि लोग पब्लिक ट्रांसपोर्ट से बच रहे हैं। पहले एक दिन में 15 से 25 गाड़ियां बिकती थी और अब भी वही हाल है। कामकाजी महिलाएं प्रीमियम रेंज के स्कूटर को तरजीह दे रही हैं। होंडा के स्कूटर और बाइक के बिक्रेता दिनेश राय कहते हैं कि डिमांड में कोई कमी नहीं है। फैक्ट्रियों से रेंज उपलब्ध नहीं हो पा रहा है। बीएस-6 की गाड़ियों की अच्छी डिमांड है।

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लोग रोजमर्रा की जरूरतों के लिए स्कूटर और बाइक खरीद रहे हैं। आरटीओ में बीएस-6 मानक की 1000 से अधिक गाड़ियों का रजिस्ट्रेशन हो चुका है। इनमें बमुश्किल 100 चार पहिया वाहन है। कामर्शियल वाहनों की बिक्री काफी प्रभावित दिख रही है। आरटीओ के अधिकारियों के मुताबिक आम दिनों में आरटीओ में करीब 100 गाड़ियों का रजिस्ट्रेशन होता है। जून महीने में लगभग इतनी ही गाड़ियों का रजिस्ट्रेशन हो रहा है। गोरखपुर डिपो के एआरएम केके तिवारी का कहना है कि वर्तमान समय में देवरिया, महराजगंज, सिद्धार्थनगर, कुशीनगर आदि जिलों में सरकारी ड्यूटी से लेकर व्यापार करने वाले निजी वाहनों से ही सफर कर रहे हैं। वह कहते हैं कि यह चुनौती का समय है। हम लोगों को सेवा देने को संकंल्पित हैं।

6 लाख कीमत तक की कार की डिमांड

चार पहिया वाहनों की बिक्री भी काफी हद तक सामान्य होती दिख रही है। अभी लोग महंगी गाड़ियों की तरफ नहीं जा रहे हैं। लोगों की डिमांड 4 से 6 लाख कीमत की गाड़ियों को लेकर है। वहीं पुराने कार बाजार में भी पूछताछ काफी बढ़ गई है। पुरानी कारों के डीलर अरविंद राव कहते हैं कि लोग पुरानी कार पर डेढ़ से दो लाख रुपये तक खर्च करने को तैयार हैं। इनमें ऐसे लोग अधिक हैं जो आसपास के जिलों में सरकारी नौकरी या व्यापार करते हैं। मारूती डीलर विक्रम सराफ का कहना है कि अभी कुछ दिन ही हुए हैं शो-रूम के खुले। लग्जरी के साथ ही प्रीमियम रेंज की गाड़ियों को लेकर पूछताछ हो रही है। लॉकडाउन में लोग शौक की बजाए जरूरत के लिए ही बाइक और कार खरीद रहे हैं।

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नकदी के बजाए लोग फाइनेंस कराकर अधिक गाड़ियां खरीद रहे हैं। बुलेट की गाड़ियों के डीलर राकेश गुप्ता कहते हैं कि पहले नकदी और फाइनेंस का अनुपात 70 और 30 का होता था। अब यह 50:50 का हो गया है। एक फाइनेंस कंपनी के एरिया मैनेजर अभिषेक मिश्रा का कहना है कि लॉकडाउन के बाद लोग फाइनेंस कराकर खूब गाड़ियां खरीद रहे हैं। 8 मई से 11 जून के बीच गोरखपुर में हीरो की 650 बाइक और स्कूटर फाइनेंस किया है। वहीं चौरीचौरा में फाइनेंस कंपनी में काम करने वाले गिरजेश दूबे बताते हैं कि लोग अपनी जरूरतों के लिए ही बाइक और स्कूटर की खरीदारी कर रहे हैं।

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