Death Anniversary: पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर को दी गई श्रद्धांजलि, किया नमन

ग्रामीण पृष्ठभूमि वाले पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर एक प्रखर वक्ता, लोकप्रिय राजनेता, विद्वान लेखक और बेबाक समीक्षक थे । वे अपने तीखे तेवरों और बेलौस बातचीत के लिये जाने जाते थे । चंद्रशेखर वर्ष 1962 से 1977 तक देश के ऊपरी सदन राज्यसभा तथा वर्ष 1977 से मृत्यु के समय तक वर्ष 1984 के चुनाव को छोड़कर बलिया से लगातार आठ बार सांसद रहे ।

Newstrack
Published on: 8 July 2020 7:49 AM GMT
Death Anniversary: पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर को दी गई श्रद्धांजलि, किया नमन
X

बलिया । बलिया जिले के एक पिछड़े हुए गांव के ऊंचे-नीचे व ऊबड़-खाबड़ रास्तों से गुजरते हुए देश की राजनीति के शीर्ष तक पहुँचे तीखे बगावती तेवरों और खुलकर बेलौस बोलने वाले नेता के तौर पर जाने जाने वाले युवा तुर्क व समाजवादी विचारधारा के पुरोधा पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर को आज उनके पुण्यतिथि पर भावपूर्ण स्मरण किया गया । वैश्विक महामारी कोरोना के कहर के कारण पुण्यतिथि पर कोई सार्वजनिक कार्यक्रम नही हुआ ।

SBI का बड़ा ऐलान: करोड़ों ग्राहकों को दिया ये शानदार तोहफा, आ गई खुशियां

प्रधानमंत्री पद की सीधे शपथ ली थी

अपने क्रांतिकारी व बगावती तेवर के लिये जाने जाने वाले व इतिहास के हर करवट के साथ अविस्मरणीय अवदान देने वाले बागी बलिया के सिकंदरपुर तहसील के कचुअरा गांव में 17 अप्रैल 1927 को जन्मे चंद्रशेखर का गत 3 जुलाई 2007 को देश की राजधानी में देहावसान हो गया था । वह जीवन के आखिरी समय में प्लाज्मा कोष कैंसर मल्टिपल मायलोमा रोग से ग्रसित हो गए थे । बलिया जिले के बिल्थरारोड तहसील के भीमपुरा थाना क्षेत्र के इब्राहिमपट्टी ग्राम के मूल निवासी चंद्रशेखर की गणना क्रांतिकारी व समाजवादी विचारधारा को लेकर देश के समाजवादी योद्धा के रूप में की जाती है । युवा तुर्क की पहचान से जाने जाने वाले चन्द्रशेखर देश के ऐसे प्रधानमंत्री रहे, जिनके पास प्रधानमंत्री बनने के पहले तक केंद्र व राज्य सरकार में मंत्री का कोई अनुभव नही रहा था । उन्होंने प्रधानमंत्री पद की सीधे शपथ ली थी ।

देश के नौंवे प्रधानमंत्री रहे थे चंद्रशेखर

ग्रामीण पृष्ठभूमि वाले पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर एक प्रखर वक्ता, लोकप्रिय राजनेता, विद्वान लेखक और बेबाक समीक्षक थे । वे अपने तीखे तेवरों और बेलौस बातचीत के लिये जाने जाते थे । चंद्रशेखर वर्ष 1962 से 1977 तक देश के ऊपरी सदन राज्यसभा तथा वर्ष 1977 से मृत्यु के समय तक वर्ष 1984 के चुनाव को छोड़कर बलिया से लगातार आठ बार सांसद रहे ।

10 नवंबर, 1990 से 21 जून, 1991 तक की बेहद अल्प अवधि में देश के नौंवे प्रधानमंत्री रहे चंद्रशेखर के बारे में यह भी कहा जाता है कि वह देश के समाजवादी आंदोलन से निकली इकलौती ऐसी शख्सियत हैं, जिसे प्रधानमंत्री पद तक पहुंचने का सौभाग्य प्राप्त हुआ । देशवासियों से मिलने एवं उनकी महत्वपूर्ण समस्याओं को समझने के लिए चंद्रशेखर ने 6 जनवरी, 1983 से 25 जून, 1983 तक ‘भारत यात्रा’ किया था ।

UP में दर्दनाक हादसा: 6 लोगों की मौत, कई घायल, खून से सनी सड़क

4,260 किलोमीटर की पदयात्रा की थी

इस दौरान उन्होंने कन्याकुमारी से नई दिल्ली में राजघाट तक तकरीबन 4,260 किलोमीटर की पदयात्रा की थी । चंद्रशेखर समाजवाद के मनीषी आचार्य नरेंद्रदेव के शिष्य थे और इलाहाबाद विश्वविद्यालय में अपने छात्र जीवन में ही समाजवादी आंदोलन से जुड़ गए थे । युवा तुर्क के ही रूप में उन्होंने वर्ष 1971 में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के विरोध के बावजूद कांग्रेस की राष्ट्रीय कार्यसमिति का चुनाव लड़ा था और वह यह चुनाव जीते थे ।

जनता पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष रहे

वर्ष 1974 में उन्होंने इंदिरा गांधी की नीतियों की पुरजोर मुखालफत करते हुए लोकनायक जयप्रकाश नारायण के आंदोलन का समर्थन किया था तथा वर्ष 1975 में कांग्रेस में रहते हुए इमरजेंसी के विरोध में आवाज उठाई थी । वह जनता पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष रहे । ऊंचे-नीचे व ऊबड़-खाबड़ रास्तों से गुजरने के बाद भी उन्होंनेे जीवन के आखिरी समय तक समाजवादी विचारधारा को नहीं छोड़ा । वह अपने तीखे तेवरों और खुलकर बात करने वाले नेता के तौर पर जाने जाते थे । युवा तुर्क के नाम से मशहूर चंद्रशेखर की सियासत में आखिर तक बगावत की झलक मिलती रही ।

विकास पर बड़ी कार्रवाई: 68 पुलिसकर्मी पर गिरी गाज, अब नए संभालेंगे कमान

प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की सैनिक कार्रवाई की पुरजोर मुखालफत किया था

चंद्रशेखर उन गिने-चुने नेताओं में से एक थे, जिन्होंने स्वर्ण मंदिर पर तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की सैनिक कार्रवाई की पुरजोर मुखालफत किया था । उन्होंने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से वैचारिक मतभेद के बावजूद संघ के स्वदेशी आंदोलन का समर्थन किया । कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के विदेशी मूल का मसला उठने के बाद देश में राजनैतिक बवंडर मचा था तब इस संवाददाता ने उनसे इस मसले पर सवाल किया था । चंद्रशेखर के तब कांग्रेस से मधुर सम्बन्ध रहे, फिर भी उन्होंने सोनिया गांधी के विदेशी मूल के होने के कारण उनके प्रधानमंत्री बनने को गलत ठहराया था । उन्होंने कहा था कि एक अरब के देश में विदेशी मूल के किसी व्यक्ति का प्रधानमंत्री बनना उचित नही होगा ।

क्या आप सरकार बनाएंगे?

प्रधानमंत्री बनने के वह प्रधानमंत्री के सरकारी आवास 7 रेस कोर्स में कभी नही निवास किये । वह काम निपटाकर भोड़सी आश्रम चले जाते थे या फिर जीवन के आखिरी समय तक निवास रहे 3 साउथ एवेन्यू में ही रहते थे । जब उन्होंने प्रधानमंत्री पद स्वीकारने का फैसला लिया था , तब कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष व पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने एक वर्ष तक उनकी सरकार का समर्थन करने का वायदा किया था । चंद्रशेखर ने अपनी आत्मकथा 'ज़िदगी का कारवाँ' में लिखा है, ''एक दिन अचानक आर के धवन मेरे पास आ कर बोले कि राजीव गांधी आप से मिलना चाहते हैं ।

जब मैं धवन के यहाँ गया तो राजीव गांधी ने मुझसे पूछा, क्या आप सरकार बनाएंगे?'' मैने कहा, सरकार बनाने का मेरा कोई नैतिक आधार नहीं है । मेरे पास सरकार बनाने के लिए पर्याप्त संख्या भी नहीं है. इस पर उन्होंने कहा कि आप सरकार बनाइए. हम आपको बाहर से समर्थन देंगे । कांग्रेस के समर्थन से सरकार बनाते समय चंद्रशेखर ने सरकार बनाने को सही ठहराते हुए कहा था कि मैं देश में अमन चैन लाना चाहता हूं , समय का जो तकाजा है उसके लिए सरकार बना रहा हूँ । कांग्रेस का समर्थन मिलने के बाद जब चंद्रशेखर से पत्रकारों ने पूछा था कि आप सरकार कितने दिन तक चलाएंगे , इस पर चंद्रशेखर ने जबाब दिया था कि वी पी सिंह की सरकार से एक महीने ज्यादा ।

चंद्रशेखर एक दिन में तीन बार अपने विचार नहीं बदलता

कांग्रेस के समर्थन वापसी की सुगबुगाहट के बाद उन्होंने तत्काल प्रधानमंत्री पद से त्यागपत्र दे दिया था । राजीव गांधी ने चंद्रशेखर को उनके मित्र रहे दिग्गज नेता शरद पवार के जरिये मनाने की कोशिश की थी , लेकिन बगावती तेवर वाले चंद्रशेखर तैयार नही हुए थे । दिग्गज नेता शरद पवार ने अपनी आत्मकथा ' On My Terms: From the Grassroots to the Corridors of Power ' में लिखा है, ''राजीव गाँधी ने मुझे दिल्ली बुला कर कहा कि क्या मैं चंद्रशेखर को इस्तीफ़ा वापस लेने के लिए मना सकता हूँ? मैं चंद्रशेखर के पास गया और इस्तीफ़ा वापस लेने के लिए कहा ।

चंद्रशेखर ने तब गुस्से में कहा, ''आप प्रधानमंत्री के पद का कैसे इस तरह उपहास कर सकते हैं?'' उन्होंने ये भी कहा, ''जाओ और उनसे कह दो, चंद्रशेखर एक दिन में तीन बार अपने विचार नहीं बदलता " । प्रधानमंत्री के रूप में चंद्रशेखर को चार महीने ही मिले । इस दौरान वह सार्क सम्मेलन में भाग लेने मालदीव गए । सार्क सम्मेलन में उन्होंने विदेश मंत्रालय द्वारा तैयार भाषण के बजाय अपना ठेठ भाषा में भाषण पढ़ा था ।

रिपोर्टर- अनूप कुमार हेमकर, बलिया

खतरनाक प्यार: प्रेमिका के चक्कर में मिली ऐसी दर्दनाक मौत, कांप उठे लोग

देश दुनिया की और खबरों को तेजी से जानने के लिए बनें रहें न्यूजट्रैक के साथ। हमें फेसबुक पर फॉलों करने के लिए @newstrack और ट्विटर पर फॉलो करने के लिए @newstrackmedia पर क्लिक करें।

Newstrack

Newstrack

Next Story