सैकड़ों वर्षों की शौर्य गाथा, कोई बना राजा तो किसी को बनाया रंक

जिले में मनकापुर राज घराने के दस पीढ़ियों का जल्वा देख चुके मनकापुर कोट (राज महल) की छत्र छाया, जिसे मिला वह रंक से राजा हो गया। और जिस पर नजरें टेढ़ीं हुई वह धूल में भी मिल गया।

Shreya
Published on: 13 May 2020 10:00 AM GMT
सैकड़ों वर्षों की शौर्य गाथा, कोई बना राजा तो किसी को बनाया रंक
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तेज प्रताप सिंह

गोंडा: जिले में मनकापुर राज घराने के दस पीढ़ियों का जल्वा देख चुके मनकापुर कोट (राज महल) की छत्र छाया, जिसे मिला वह रंक से राजा हो गया। और जिस पर नजरें टेढ़ीं हुई वह धूल में भी मिल गया। यह अनेक लोगों के साथ हुआ है, इतिहास इस बात का साक्षी है। आज भी इसका आशीर्वाद जिसे मिलता है वह अपने को भाग्यशाली मानता है। अब तक के चुनावी इतिहास में गोंडा और बलरामपुर लोक सभा क्षेत्र के दर्जनों विधान सभा क्षेत्रों में मनकापुर कोट का आर्शीवाद प्राप्त तमाम उम्मीदवार चुनाव जीते हैं।

पूर्वांचल की राजनीति में अपने सियासी दबदबे को लोहा मनवाने वाले मनकापुर के राजा आनन्द सिंह ने सन 1964 से सक्रिय राजनीति शुरू की। इसके पहले उनके पिता राजा राघवेन्द्र प्रताप सिंह स्वतंत्र पार्टी से विधायक हुआ करते थे। राजा आनंद सिंह ने तीन बार विधायक तथा गोंडा लोकसभा क्षेत्र से चार बार चुनाव जीता। मनकापुर विधान सभा क्षेत्र सुरक्षित होने पर भी मनकापुर कोट का ही प्रत्याशी जीतता रहा। तब अविभाजित गोंडा की गोंडा व बलरामपुर लोक सभा और 11 विधान सभा सीटों पर उनका सिक्का चलता था।

कांग्रेस पार्टी उन्हें सादा सिम्बल दे देती फिर वे जिसे चाहते नाम भरकर सिम्बल दे देते थे। कहा जाता है कि जिसके सिर पर मनकापुर कोट का हाथ होता था वह सांसद, विधायक, जिला परिषद अध्यक्ष और ब्लाक प्रमुख बन जाता था। सन 2012 में राजा आनंद सिंह ने गौरा विधान सभा क्षेत्र से समाजवादी पार्टी के टिकट पर चुनाव जीता और प्रदेश की अखिलेश सरकार में कृषि मंत्री बने थे। लेकिन अब वे राजनीति से सन्यास ले चुके हैं।

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मनकापुर राज घराने का इतिहास

इतिहास बताता है कि वर्ष 1681 में कुंवर अजमत सिंह यहां के राजा बने। उनके बाद राजा गोपाल सिंह, राजा बहादुर सिंह, राजा बख्त सिंह, राजा पृथ्वीपाल सिंह और राजा जय प्रकाश सिंह ने गद्दी संभाला। इसके बाद 1884 में राजा रघुराज सिंह यहां के उत्तराधिकारी बने और राजकाज संभाला। उनके पांच रानियां थीं। वर्ष 1932 में उनकी मृत्यु के बाद दूसरी रानी के पुत्र अम्बिकेश्वर प्रताप सिंह राजा हुए। वे अत्यंत लोकप्रिय रहे और साधू राजा कहे जाते थे।

1943 में उनके देहावसान के बाद राघवेन्द्र प्रताप सिंह को राजा का दायित्व मिला। उनके एक पुत्र कंुवर आनंद सिंह उर्फ अन्नू भैया और एक पुत्री कुंवरि अरुणा कुमारी हैं। वर्ष 1964 में पिता के निधन के बाद से वर्ष 1939 में जन्मे कंुवर आनंद सिंह उर्फ अन्नू भैया राजकाज संभाल रहे हैं जबकि राजा आनंद सिंह के पुत्र कुंवर कीर्तिवर्धन सिंह वर्तमान में राजनीतिक विरासत संभाल रहे हें और गोंडा लोकसभा सीट से सांसद हैं।

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13 बार जीता राज परिवार

महात्मा गांधी की प्रेरणा से राजनीति में उतरे मनकापुर राज घराने के राज राघवेन्द्र प्रताप सिंह 1957 और 1962 में स्वतंत्र और 1964 व 1967 में उनके पुत्र राजा आनंद सिंह कांग्रेस से मनकापुर के विधायक बने। गोंडा लोक सभा सीट पर हमेशा ही मनकापुर राज परिवार का ही दबदबा रहा है। 1971 से शुरू हुआ यह सिलसिला 2019 में भी चल रहा है। राजा आनंद सिंह चार बार लोक सभा का चुनाव जीत चुके थे। उन्होंने 1971 का चुनाव कांग्रेस के टिकट पर लड़ा और जीत गए लेकिन 1977 में भारतीय लोकदल के सत्यदेव सिंह से हार गए। फिर 1980 से 1989 तक वह लगातार चुनाव जीते। 1991 के राम लहर में फिर उनकी हार हुई।

राजा आनंद सिंह ने चुनाव लड़ना बंद कर दिया और तब उनके बेटे राजा कीर्तिवर्धन सिंह चुनाव मैदान में उतरे। 1998 और 2004 का चुनाव कीर्तिवर्धन सिंह सपा और 2014 में भाजपा के टिकट पर चुनाव जीते। वर्ष 2012 के चुनाव में सपा मुखिया मुलायम सिंह यादव के आग्रह पर राजा आनंद सिंह गौरा विधान सभा से लड़कर चुनाव जीते और अखिलेश यादव सरकार में कृषि मंत्री बने। बीते 2019 में भारी मतों से जीतकर मनकापुर राजघराने के राजा कुंवर कीर्तिवर्धन सिंह वर्तमान में भाजपा के सांसद हैं।

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मनकापुर कोट ने महात्मा गांधी को देखा

मनकापुर कोट कई गौरवमयी इतिहास को समेटे है। मनकापुर राजभवन में महात्मा गांधी 1929 में आए थे। महात्मा गांधी ट्रेन से मनकापुर आए तो राजा ने बग्घी (घोड़ों का रथ) भेजा और राजमहल में पहुंचने पर गांधी जी का जोरदार स्वागत किया। महात्मा गांधी की प्रेरणा से राजा राघवेंद्र प्रताप सिंह कांग्रेस में शामिल हो गए और आजादी की लड़ाई में हिस्सा लिया। राजा राघवेंद्र प्रताप सिंह के पुत्र राजा आनंद सिंह ने अपने बाल्यकाल में गांधी को देखा उनके और भाषणों को सुना था।

उन्होंने खुद गांधीजी के पैर छूकर आशीर्वाद लिया था। राजा साहब गांधी जी से प्रभावित होकर उनके विचारों में इतना डूब गए लोग उन्हें गांधी राजा कहने लगे थे। वह कहते हैं कि उनके पिताजी के कार्यों से बापू इतने अभिभूत हुए कि वह उनकी कुशलता के लिए पत्र लिखते थे। उनके द्वारा लिखा गया पत्र आज भी सुरक्षित है। जिसमें कुशलक्षेम पूछने के साथ ही अंत में गांधीजी ने लिखा है बापू का आशीर्वाद।

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पूर्व सांसद, विधायक दीप नरायन वन

पहला मामला मुजेहना के पूर्व विधायक स्व. महंत दीप नरायन वन के साथ हुआ था। बाबागंज में संत सहज वन के शिष्य रहे उन्होंने कभी सपने में भी नहीं सोचा था कि सियासत के रास्ते पर चलकर एक दिन इतना बड़ा मुकाम हासिल होगा। बात 1969 की है, जब कांग्रेस के कद्दावर नेता रहे राजा आनंद सिंह ने दीप नरायन वन को मुजेहना (अब मेहनौन) क्षेत्र से टिकट देकर विधायक बना दिया। इसके बाद 1974 और 1980 में भी यहां से विधायक हुए। बाद में 1985 में उन्हें मनकापुर के महराज ने ही कांग्रेस से ही बलरामपुर लोक सभा से चुनाव लड़ाया और वे बलरामपुर के सांसद बन गए।

1985 और 1989 में राजा साहब ने अपने करीबी और जिले के मशहूर वकील बाबू रामपाल सिंह को कांग्रेस का टिकट दिलाकर मुजेहना से विधायक बनवाया। इसकी चर्चा करते हुए बाबू रामपाल सिंह कहते हैं कि राजा साहब ने ही दीप नरायन वन को बलरामपुर से लाकर 1969 में मुजेहना से विधायकी का टिकट देकर राजनीति में प्रवेश कराया। हालांकि साल 1989 के बाद इन्होंने राज महल से नाता तोड़ लिया। 2017 में पूर्व विधायक और बलरामपुर के पूर्व सांसद स्व. दीप नरायन वन के परिवार पर एक बार फिर राजघराने के करीब आया और यहां के आर्शीवाद से उनके पुत्र विनय कुमार द्विवेदी उर्फ मुन्ना भैया मेहनौन से भाजपा के विधायक बन गए।

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छह बार विधायक रहे राम विशुन अब पैदल

मनकापुर विधान सभा क्षेत्र से 1957 में तत्कालीन राजा राघवेन्द्र प्रताप सिंह निर्दल और 1962 में स्वयं तो 1964 और 1967 में उनके पुत्र कुंवर आनंद सिह चुनाव जीते। कोट की कृपा से ही 1972 में सिसई रानीपुर के कांग्रेस से देवेन्द्र नाथ मिश्र, 1977 में गंगा बरवार और 1980 में छेदीलाल कांग्रेस के विधायक हुए। इसके बाद कोट की कृपा हुई और राजा आनंद सिंह ने गरीब परिवार के राम विशुन आजाद को 1985, 1989, 1993, में कांग्रेस तथा 1996, 2002 और 2007 में समाजवादी पार्टी से टिकट दिलाकर विधायक बनाया। कोट से सम्बन्ध खराब हुए तो 2017 के चुनाव में सपा के टिकट पर चुनाव मैदान में उतरे राम विशुन को करारी हार मिली। राज घराने का साथ छोड़ते ही हासिए पर आ गए। इन्होंने समय के साथ पार्टी बदल ली। राज घराना भाजपा में तो राम विशुन समाजवादी पार्टी में हैं।

इसके अलावा कई बार से चुनाव हार रहे भाजपा के सरकारों में कैबिनेट मंत्री रहे रमापति शास्त्री भी बीते विधान सभा चुनाव में राज महल की छत्रछाया में आए तो मनकापुर से विधायक बन गए। जो प्रदेश की वर्तमान योगी सरकार में समाज कल्याण मंत्री हैं। राजनीति में राजा के धुर विरोधी रहे मनकापुर तहसील क्षेत्र के ही दिग्गज नेता ठाकुर प्रसाद वर्मा के पुत्र प्रभात वर्मा भी जब राज परिवार के करीब आए तो उन्हंे गौरा क्षेत्र से भाजपा के टिकट दिलाकर विधायक बनवा दिया। इससे पूर्व के चुनाव में प्रभात ने बसपा के टिकट पर राजा आनंद सिंह के खिलाफ गौरा से ही चुनाव लड़ा था।

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चार बार विधायक रहे बाबूलाल

मनकापुर कोट की छत्रछाया में नवाबगंज क्षेत्र के नगवा निवासी अत्यंत गरीब परिवार के मात्र साक्षर बाबूलाल की भी किस्मत खूब चमकी और वह राजा की कृपा से 1967 में स्वतंत्र पार्टी, 1980, 1985 में कांग्रेस के टिकट पर डिकसिर और 2002 में सपा के टिकट पर मनकापुर से विधायक चुने गए। कहा जाता है कि मनकापुर कोट की छाया जिसके भी सिर से हटी उसे लोगों ने भुला दिया। इसी प्रकार पूर्व विधायक बाबूलाल कोरी भी हैं जो राजघराने का साया हटते ही पैदल हो गए।

मुनीम, उमेश्वर प्रताप भी बने विधायक

राजा आनंद सिंह के अति करीबी रहे पूर्व विधायक बाबू राम पाल सिंह बताते हैं कि कर्नलगंज में स्वर्ण व्यवसाई कनपुरिया सेठ के यहां मुनीम रहे कटरा बाजार क्षेत्र के नहवा परसौरा निवासी मुरलीधर द्विवेदी ‘मुनीम‘ को भी राजा का आर्शीवाद मिला तो वे कटरा बाजार क्षेत्र से 1980 और 1989 में कांग्रेस के विधायक बन गए। इसी प्रकार राज घराने के खास रहे लक्ष्मी नरायन दूबे व रघुराज सिंह कर्नलगंज से विधान सभा में प्रतिनिधित्व किया। कालांतर में भंभुआ कोट के उमेश्वर प्रताप सिंह भी राजा के आर्शीवाद से 1980 और 1985 में कांग्रेस के टिकट पर कर्नलगंज के विधायक बने। राजा ने बपने करीबी डा. उमर को भी 1985 में सादुल्लाह नगर (अब गौरा) क्षेत्र से कांग्रेस का विधायक बनवाया।

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