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अंग्रेजों के जमाने का ये थाना: आज भी है बेहद खास
जिला मुख्यालय से करीब चालीस किलो मिटर की दुरी पर स्थित करीमुद्दीनपुर मे मौजूद ब्रितानी हुकूमत का थाना स्थित है। लेकिन तब से लेकर अब तक इस पुराने थाने में कुछ खास बदलाव नहीं आये।
रजनीश कुमार मिश्र बाराचवर (गाजीपुर)
जिला मुख्यालय से करीब चालीस किलो मिटर की दुरी पर स्थित करीमुद्दीनपुर मे मौजूद ब्रितानी हुकूमत का थाना स्थित है। लेकिन तब से लेकर अब तक इस पुराने थाने में कुछ खास बदलाव नहीं आये। ग्रामीण बताते हैं की ये वहीं ब्रिटिश कालीन थाना है, जहां कभी स्वतंत्रता सेनानियों को फिरंगियों द्वारा पकड़ कर बंन्द किया जाता था। करीमुद्दीनपुर थानाध्यक्ष ने बताया की तब से लेकर अब तक कुछ खास बदलाव नहीं हुएं है। अशेषनाथ सिंह ने बताया कि पुराने भवन तो खंडित हो गये ये जो नये भवन बनाये गये हैं। ये जनसहयोग द्वारा बनाया गया है।
सन् 1902 में हुआ था करीमुद्दीनपुर थाने का निर्माण
थानाध्यक्ष अशेषनाथ सिंह ने बताया कि गजेटियर के अनुसार थाने का निर्माण सन् 1902 में ब्रिटिश हुक्मरानों ने कराया था। स्थानीय बुजुर्गों का कहना है कि उस समय इस थाने के अंतर्गत बलिया जिले का कुछ हिस्सा भी आते थे। बुजुर्ग बताते हैं कि इस थाने में स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों को रखा जाता था।
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बलिया से 40 और गाजीपुर से 35 किलोमीटर की दूरी पर कराया था निर्माण
गोरो ने इस देश मे राज ऐसे ही नहीं किया करीमुद्दीनपुर थाने का निर्माण सोच समझ कर कराया की बलिया से 40 व गाजीपुर जिला मुख्यालय से 35 किलोमीटर की दूरी पर पड़ता हैं। यहां के स्थानीय बुजुर्ग बताते हैं की अंग्रेजो ने थाने का निर्माण बहुत सोच समझकर कराया था। लोग बताते हैं कि इस थाने क्षेत्र से सटा कुछ गांवों में बगावत होती थीं, तो इसी थाने से घुड़सवार पुलिस जाती थीं। क्योंकी बलिया से ये गांव 30 किलोमीटर दुरी पर पड़ता हैं। और करीमुद्दीनपुर से आठ से दस किलोमीटर की दूरी पर पड़ता है।
5,754 रुपये में अंग्रेजो ने कराया निर्माण
थानाध्यक्ष अशेषनाथ सिंह ने बताया की रिकॉर्ड के मुताबिक अंग्रेजों ने सन् 1902 में थाने का निर्माण पाचं हजार सात सो चौवन रुपये में निर्माण कराया था। थाने में जितने भी अवास उस समय बने थे सबकी लागत अलग अलग थी।
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दो बिघा आठ बिसवां सोलह धुर में बना थाना परिसर
थाने का निर्माण अंग्रेजो ने दो बिघा आठ बिसवां सोलह धुर में कराया था। जिसमे स्टेशन आफिसर के लिए अवास सब स्पेक्टर अवास, हवालात, मालखाना, और सिपाहियों के लिए बनाए गये अवास मौजूद थे।
बनाये गये कमरों की लागत अलग-अलग
पुराने थाना परिसर की लागत उस समय अलग अलग थी। आफिस कि लागत 5774 रुपये, हवालात 113 रुपये, स्टेशन आफिसर अवास 131 रुपये, कास्टेबल अवास 5170 की लागत से निर्माण हुआ था।
कास्टेबल के लिए बनाये गये थे चार क्वाटर
ब्रिटिश हुक्मरानों ने कास्टेबल के लिए चार क्वाटरों का निर्माण कराया था। क्योंकी उस समय बहुत ही कम लोग अंग्रेजों की गुलामी करना पसंद करते थे। इन कास्टेबल में ज्यादातर फिरंगी ही होते थे। भारतीयों की बात करें तो किसी थाने पर एकाद भारतीय ही मौजुद होते थे।
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करीमुद्दीनपुर थाने में रखे गये थे स्वतंत्रता सेनानी सरजु पाण्डेय
बुजुर्ग ग्रामीण बताते है की वो दौर सन् 1941-42 का था। जब फिरंगियों के नाक मे दम करने वाले स्वतंत्रता सेनानी व कम्युनिस्ट पार्टी के नेता सरजू पाण्डेय को पकड़ा गया था। लोग बताते हैं कि गोरी सरकार ने सरजू पान्डेय को पकड़ कर इसी थाने मे बन्द किया था।
अस्तित्व के नाम पर बचे एकाद कमरे
करीमुद्दीनपुर थानाध्यक्ष अशेषनाथ सिंह बताते हैं की। उस समय के भवन गिर चुके हैं, उस समय के एकाद कमरे ही बचे है। वो भी जर्जर हो चुके हैं। कब गिर जाये किसी को पता नहीं।
हो चुका है नवनिर्माण
समय बदला देश आजाद हुआं इस देश और प्रदेश मे नेताओ ने राज करना शुरू किया। समय बदलता गया। थानो का आधुनिकीकरण होता गया 70,80 के दसक मे थाने का भवन गिरते गये। जो गिर गये पुनः बने नहीं, अशेषनाथ सिंह बताते हैं की। मेरे आने से पहले आरक्षियों के रहने के लिए कोई सुबिधा नहीं थी। दो चार भवन बने हैं। वो यहां के लोगों के जनसहयोग व मेरे प्रयास से रहने लायक हुआं है।
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