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सवालों में उद्यमियों के ‘सवाल’

ये मुख्यमंत्री का गृह जनपद है। जाहिर है, यहां के उद्यमियों को अपने मुख्यमंत्री के उम्मीदें हैं। उन्हें यह भरोसा भी है कि मुख्यमंत्री के रहते कोई अधिकारी उनके काम को न तो अटका सकता है न ही लटका सकता है।

Shreya
Published on: 18 Dec 2019 8:57 AM GMT
सवालों में उद्यमियों के ‘सवाल’
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गोरखपुर: ये मुख्यमंत्री का गृह जनपद है। जाहिर है, यहां के उद्यमियों को अपने मुख्यमंत्री के उम्मीदें हैं। उन्हें यह भरोसा भी है कि मुख्यमंत्री के रहते कोई अधिकारी उनके काम को न तो अटका सकता है न ही लटका सकता है। पर, मुख्यमंत्री के मंच पर ही उद्यमी सवाल उठाएं और मुख्यमंत्री उन्हें नसीहत दें तो समझा जा सकता है, पर्दे के पीछे सब कुछ ठीक नहीं है। कुल मिलाकर उद्यमियों द्वारा उठाए गए सवालों पर ही सवाल उठ रहा है।

पिछले 4 दिसम्बर को गोरखपुर में गोरखपुर औद्योगिक विकास प्राधिकरण गीडा के स्थापना दिवस के मंच पर आरोप और नसीहत का जो दौर चला उसकी तपिश आज भी उद्यमी से लेकर अधिकारी तक महसूस कर रहे हैं। उद्यमियों के एक वर्ग द्वारा प्रदेश में निवेश के माहौल को लेकर उठाए गए सवाल को देखने का नज़रिया अलग-अलग है। कोई इसे उद्यमियों द्वारा अधिकारियों पर दबाव बनाने की कवायद के रूप में देख रहा है तो किसी में इसमें सब कुछ स्वाभाविक दिख रहा है।

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गोरखपुर के सर्किट हाउस के एनेक्सी भवन में बीते 4 दिसम्बर को पूर्वांचल के उद्यमी चन्द्र प्रकाश अग्रवाल द्वारा जिसप्रकार पूरे सिस्टम पर सवाल उठाए गए उसे सुनकर हर कोई हतप्रभ था। मंच पर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ मौजूद थे। गैलेंट समूह के प्रमुख चन्द्र प्रकाश अग्रवाल का दर्द 1100 करोड़ रुपये के निवेश में आ रही अड़चनों को लेकर था।

उन्होंने भाषण के शुरुआती मिनटों में मुख्यमंत्री की तारीफ में खूब कसीदे पढ़े लेकिन चंद मिनटों बाद ही सरकार की खिंचाई शुरू कर दी। चन्द्र प्रकाश अग्रवाल ने सिस्टम पर सवाल उठाते हुए कहा कि वर्तमान समय में मेरी मुलाकात किसी ऐसे प्रोत्साहित उद्यमियों से नहीं हो रही है, जो सरकार की नीतियों से संतुष्ट हो। रिटायर्ड लोगों के भरोसे चल रहा लखनऊ का पिकप भवन खुद को नहीं संभाल पा रहा है। मेरी 1000 करोड़ रुपये की योजना सिर्फ अफसरों के निर्णय के अभाव में लंबित है। अधिकारी इस बात को लेकर परेशान हैं कि फाइल आगे बढ़ गई तो कहीं जांच न बैठ जाए। उद्योग जगत से जुड़े विभिन्न अंगों में समन्वय का अभाव दिख रहा है।

बाद में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ बोलने उठे तो सभी को उम्मीद थी वह अफसरों की कार्यशैली को लेकर कुछ बोलेंगे। पर उन्होंने उद्यमियों को नसीहत देते हुए कहा कि शासन की योजनाओं से मिलने वाला लाभ नियम के अनुरूप होना चाहिए। ‘पिक एंड चूज’ की पुरानी परंपरा में पडक़र की गई एक छोटी सी गलती जीवनभर की पूंजी को डुबो देती है। उद्यमी शार्टकट के चक्कर में पडक़र कोई ऐसा काम न करें, जिससे उन्हें भविष्य में मुंह चुराना पड़े। गलत काम न खुद करें, न ही दूसरों को करने के लिए बाध्य करें। नियम कायदे से काम करने वालों की सरकार पूरी मदद करेगी।

जाहिर है, मुख्यमंत्री का इशारा उद्यमी चन्द्र प्रकाश अग्रवाल के अलावा उन उद्यमियों की तरफ था जो मुख्यमंत्री के जिले के होने के चलते कुछ अलग अपेक्षा रखते हैं। अब सवाल उठ रहा है कि उद्यमी कौन सा काम नियमों की अनदेखी कर कराना चाहते हैं। जिसे लेकर मुख्यमंत्री को नसीहत देने की जरूरत पड़ी। बहरहाल, मुख्यमंत्री ने गैलेंट स्टील से जुड़े मामलों की फाइल तलब कर ली है। अब देखना दिलचस्प होगा कि उद्यमी और अधिकारी में से किसकी गलती उजागर होती है।

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उद्यमी चन्द्र प्रकाश अग्रवाल की सरिया बनाने वाली फैक्ट्री पूर्वांचल की इकलौती कंपनी है, जो शेयर मार्केट में लिस्टेड है। पूर्व मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव, अखिलेश यादव से लेकर बसपा सुप्रीमो मयावती की सरकारों में भी चन्द्र प्रकाश अग्रवाल की कंपनी को अतिरिक्त माइलेज मिलता रहा है। पिछले दिनों खुद मुख्यमंत्री गैलेंट इस्पात के विस्तार को लेकर आयोजित शिलान्यास कार्यक्रम में पहुंचे थे।

उद्यमियों के एक वर्ग का मानना है कि चन्द्र प्रकाश अग्रवाल पूर्ववर्ती सरकारों की तरह ही योगी सरकार में भी विभिन्न सब्सिडी का लाभ चाहते हैं। चन्द्र प्रकाश अग्रवाल की राह पर चलते हुए उनके करीबी उद्यमी ज्योति मस्करा ने भी बिजली निगम के अधिकारियों पर फाइल लटकाने के साथ ही गम्भीर आरोप लगाए। आरोप लगाने के दूसरे ही दिन उनका काम हो गया। चंद घंटों में काम का होना भी सवाल उठा रहा है।

चर्चा यह है कि या तो उद्यमी ने बेवजह का आरोप लगाया या फिर सवालों में घिरने के बाद अफसरों ने चंद घंटों में लटका हुआ काम पूरा कर दिया। वैसे तमाम ऐसे उद्यमी हैं, जो अफसरों की मनमानी से परेशान है। गोरखपुर विकास प्राधिकरण के उपाध्यक्ष ने बीते दिनों अनिमियता के आरोप में पूर्वांचल के इकलौते वाटर पार्क को सील कर 10 साल पुराने एग्रीमेंट को खत्म कर दिया। वॉटर पार्क के साझेदारों ने हाइकोर्ट में शरण ली। हाईकोर्ट ने जीडीए उपाध्यक्ष को नए सिरे सुनवाई के आदेश दिया है। वहीं प्रमुख बिल्डर शोभित मोहन दास गोरखपुर में फाइव स्टार होटल खोलना चाह रहे हैं। उन्होंने नियमों की अनदेखी कर होटल की जमीन की रजिस्ट्री तो करा ली लेकिन प्राधिकरण ने पेच फंसा दिया। जमीन को लेकर मामला शासन में लंबित है। शोभित कहते हैं कि वह शहर को ताज होटल का गौरव देना चाहते हैं, लेकिन अफसर कुछ और ही चाह रहे हैं।

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विवादों से है चंदू बाबू का पुराना नाता

उद्यमी चन्द्र प्रकाश अग्रवाल का विवादों से पुराना नाता है। कभी वह राजनीतिक क्षत्रपों से संबंधों को लेकर सुर्खियों में रहते हैं तो कभी नियम विपरीत कार्यों को लेकर। चन्द्र प्रकाश अग्रवाल पर उद्योग की जमीन पर आवासीय भवन बनाने का आरोप है। लैंड यूज बदलने को लेकर मामला जीडीए में लंबित हैं। इस प्रकरण में जीडीए ने कई बार उद्यमी को नोटिस थमाया है। चन्द्र प्रकाश गोरखनाथ इंडस्ट्रियल एरिया में पांच सितारा होटल खोलना चाहते हैं। जिसे लेकर दर्जन भर फैक्ट्रियों पर तलवार लटक रही है।

दरअसल, होटल खुलने के लिए जरूरी है कि उसके 1200 मीटर दायरे में प्रदूषण फैलाने वाली किसी फैक्ट्री का वजूद न होगा। चंदू बाबू की इस कवायद का विरोध भी होने लगा है। यहां पूर्व महापौर और उद्यमी पवन बर्थवाल की भी फैक्ट्री है। वह कहते है कि सरकार मेरी फैक्ट्री का भी लैंड यूज बदल दे। मैं भी फाइव स्टार होटल खोल दूंगा। मैंने तो इन्वेस्टर्स समिट में होटल को लेकर 1000 करोड़ का प्रस्ताव दिया था, लेकिन सरकार जमीन ही नहीं मुहैया करा पा रही है। नियमों में एकरूपता हो यह सरकार को सुनिश्चित करना होगा।

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चन्द्र प्रकाश अग्रवाल के हैं गम्भीर आरोप

प्रमुख उद्योगपति चंद्र प्रकाश अग्रवाल उर्फ चंदू बाबू प्रदेश सरकार की उद्योग नीति और निवेश को लेकर हो रहे दावों को झूठा बताते हुए कहते हैं कि यूपी में लाखों करोड़ का निवेश हुआ तो उसकी झलक गोरखपुर में क्यों नहीं दिख रही? मुझे गोरखपुर में 1100 करोड़ रुपये का निवेश करना है। पांच और चार सितारा होटल बनाने के साथ ही गैलेंट इस्पात का विस्तार करना है। प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से करीब 5000 लोगों को रोजगार मिलेगा।

लेकिन अफसरों के मकडज़ाल में फंसी फाइलों को देखकर लगता है कि प्रोजेक्ट को निरस्त करना होगा। नौकरशाही द्वारा औद्योगिक विकास, निवेश और रोजगार को लेकर प्रस्तुत किये जा रहे आंकड़े संदेह पैदा करते हैं। गोरखपुर में 5000 करोड़ रुपये का निवेश हुआ तो इसकी झलक दिखनी चाहिए। ‘पिकप’ औद्योगिक विकास और निवेश की नोडल एजेंसी है। बीमारू संस्था कुछ कर सकती है क्या? सेवानिवृत्त होने के बाद पिकप में अफसर काम कर रहे हैं। वहाँ विशेषज्ञता और प्रोफेशनलिज्म का अभाव है। अग्रवाल कहते हैं कि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का दृष्टिकोण सकारात्मक है। पर, कुछ ऐसे अधिकारी हैं, जिनकी सोच नकारात्मक है। चैंबर ऑफ इंडस्ट्रीज गोरखपुर के अध्यक्ष विष्णु अजित सरिया मंच पर उद्यमियों को लेकर बातें करते हैं लेकिन 150 करोड़ का निवेश उत्तराखंड में करते हैं।

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निवेश प्रस्तावों पर नहीं हुआ अमल

इन्वेस्टर्स समिट में गीडा में करीब 3000 करोड़ रुपये के निवेश प्रस्तावों पर सहमति बनी थी, लेकिन अभी तक 500 करोड़ रुपये का निवेश भी नहीं हुआ। कई उद्यमियों के प्रस्ताव जमीन की उपलब्धता के आभाव में लटके हुए हैं। चैंबर ऑफ इंडस्ट्रीज के अध्यक्ष विष्णु अजीत सरिया कहते हैं कि गीडा के विकास में सबसे बड़ी समस्या लैंड बैंक की है। गोरखपुर लिंक एक्सप्रेस-वे के दोनों तरफ जमीन का अधिग्रहण तेजी से हो तो पूर्वांचल में औद्योगिक विकास का माहौल बनेगा। प्रदेश सरकार बेहतरी के लिए काम कर रही है, पर दूसरे राज्यों से प्रतियोगिता को लेकर सरकार को बिजली दरें कम करनी होंगी। पंजाब की तर्ज पर उद्योगों को 5 रुपये प्रति यूनिट की दर से बिजली मुहैया होनी चाहिए। जमीन खरीदने में भी सब्सिडी देनी होगी।

चैंबर ऑफ इंडस्ट्रीज के पूर्व अध्यक्ष एसके अग्रवाल का कहना है कि निवेश प्रस्ताव को लेकर जबतक बुनियादी समस्याओं को दूर नहीं किया जाएगा, तबतक कुछ होगा नहीं। जमीन की उपलब्धता नहीं है। मंहगी बिजली सबसे बड़ी समस्या है। बकाये के चलते गीडा के 87 फैक्ट्रियों की बिजली काट दी गई। उन्हें पार्ट पेमेंट की सुविधा नहीं दी जा रही है। प्लास्टिक के उत्पाद पर रोक नहीं है। पैकेजिंग का काम करने वाली फैक्ट्रियों का उत्पीडऩ किया जा रहा है।

चैंबर ऑफ इंडस्ट्रीज के महासचिव प्रवीन मोदी का कहना है कि उद्यमी की लापरवाही से प्रदूषण होता है या फिर वह नियमों के विरुद्ध काम करता है तो अवश्य कार्रवाई होनी चाहिए। हकीकत यह है कि गीडा के उद्यमियों को सहूलियत के बजाए उत्पीडऩ का सामना करना पड़ रहा है। अधिकारी सुनते ही नहीं है। सरकार को करीब 70 करोड़ से सीईटीपी लगाना है। जमीन की उपलब्धता के बाद भी केन्द्र और प्रदेश सरकार के समन्वय के आभाव में प्रदूषण रोकने वाला सीईटीपी फाइलों में ही अटका हुआ है।

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