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डूबते रियल एस्टेट को बजट से आस
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भले देश के हर नागरिक के सिर पर अपनी छत देने का इरादा रखते हो और इसके लिए उनकी सरकार आर्थिक मदद भी दे रही है लेकिन पिछले दिनों देश में मकानों की खरीद-बिक्री पर भारतीय रिजर्व बैंक की रिपोर्ट के मुताबिक देश में मकान खरीदने के लिए जहां वर्ष 2015 में अपनी मासिक आय का 56.1 प्रतिशत हिस्सा खर्च करना पड़ता था, वहीं वर्ष 2019 में उन्हें 61.5 प्रतिशत हिस्सा खर्च करना पड़ा।
मनीष श्रीवास्तव
लखनऊ: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भले देश के हर नागरिक के सिर पर अपनी छत देने का इरादा रखते हो और इसके लिए उनकी सरकार आर्थिक मदद भी दे रही है लेकिन पिछले दिनों देश में मकानों की खरीद-बिक्री पर भारतीय रिजर्व बैंक की रिपोर्ट के मुताबिक देश में मकान खरीदने के लिए जहां वर्ष 2015 में अपनी मासिक आय का 56.1 प्रतिशत हिस्सा खर्च करना पड़ता था, वहीं वर्ष 2019 में उन्हें 61.5 प्रतिशत हिस्सा खर्च करना पड़ा।
बजट हैं परेशान- रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया
रिजर्व बैंक की रिपोर्ट के मुताबिक केवल मकान खरीदने वाले ही नहीं बल्कि इसके निर्माण में जुटे बिल्डर भी परेशान है। रिपोर्ट के मुताबिक पूरी तरह से तैयार इमारतों में जो मकान या फ्लैट बिक नहीं पाए है उनमे पिछले एक साल में आठ फीसदी का इजाफा हुआ है। इसके साथ ही भवन निर्माण में प्रयोग होने वाली सामाग्री भी काफी महंगी हुई है। सीमेंट के दामों में 10 फीसदी, मौरंग के दामों में 30 फीसदी तक वृद्धि हुई है।
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रियल एस्टेट सेक्टर को बजट-2020 से उम्मीद
इतना ही नहीं भवन निर्माण में इस्तेमाल होने वाले मजदूरों और मिस्त्रियों की दिहाड़ी में भी इजाफा हुआ है। ऐसे में इन दुश्वारियों से जूझ रहा और बीते काफी समय से मंदी की मार झेल रहा रियल एस्टेट सेक्टर एक बार फिर मोदी सरकार के बजट-2020 की ओर उम्मीद भरी नजरों से देख रहा है। देश के प्रमुख उद्योग चैंबर सीआईआई ने मकान खरीदारों को बजट में अधिक कर लाभ देने की बात कही है। उद्योग चैंबर का कहना है कि नकदी संकट से जूझ रहे रियल एस्टेट सेक्टर में मांग बढ़ाने के लिए आने वाले बजट में मकान खरीदारों को मिलने वाले कर लाभ बढ़ाए जाने चाहिए।
हाउसिंग सेक्टर में मांग बढ़ाने की जरूरत- सीआईआई
सीआईआई का कहना है कि 6 से 7 फीसदी की आर्थिक विकास दर हासिल करने के लिए हाउसिंग सेक्टर में मांग बढ़ाने की जरूरत है। उद्योग संगठन ने प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत घर खरीदारों के लिए तय आय सीमा बढ़ाने का भी अनुरोध किया है।
कुछ सालों से दबाव झेल रहा सेक्टर
उद्योग चैंबर ने इस बारे में एक बयान जारी किया है, इसमें उसने कहा है कि रियल एस्टेट सेक्टर को सरकार की ओर से नकदी समर्थन उपलब्ध कराने के उपाय करने की जरूरत है। इसके साथ ही सेक्टर में मांग बढ़ाने के लिए पहल होनी चाहिए। बयान के अनुसार, सेक्टर पिछले कुछ सालों से दबाव झेल रहा है। इसके साथ ही क्षेत्र नकदी की समस्या से जूझ रहा है। ऐसे में सीआईआई ने सरकार से मांग बढ़ाने के लिए घर खरीदारों के लिए कर लाभ और प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत आय सीमा बढ़ाने का आग्रह किया है।
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सेक्टर को गति देने के लिए कार्य योजना बनाने की जरूरत
उद्योग मंडल ने बजट से पहले दिए अपने सुझावों में कहा है कि रियल एस्टेट सेक्टर को गति देने के लिए कार्य योजना बनाने की जरूरत है। सीआईआई के बयान में कहा गया है, होम लोन पर देय ब्याज पर अधिकतम टैक्स छूट दो लाख रुपये से बढ़ाकर पांच लाख रुपये की जानी चाहिए। इसके साथ ही सरकार को प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत एमआईजी-एक और एमआईजी- दो कैटेगरी के लिए पात्रता मानदंड मौजूदा 12 और 18 लाख रुपये से बढ़ाकर 18 और 25 लाख रुपये करने पर विचार करना चाहिए।
देश की अर्थव्यवस्था को बजट-2020 से काफी उम्मीदें- सीआईआई
सीआईआई ने कहा, इस योजना से समाज का बड़ा तबका लाभान्वित होगा और मांग बढ़ेगी। इसके अलावा उद्योग मंडल ने इंटीग्रेटेड टाउनशिप और हाउसिंग सेक्टर को इंफ्रास्ट्रक्चर का दर्जा दिए जाने की भी मांग की। इससे कंपनियों को कम लागत पर प्राथमिकता के आधार पर कर्ज मिल सकेगा। बीते काफी समय से गोता लगा रही देश की अर्थव्यवस्था को बजट-2020 से काफी उम्मीदें है और सभी का यही सवाल है कि क्या आने वाला बजट अर्थव्यवस्था को उबारने में प्रभावी भूमिका निभा पायेगा।
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जीएसटी के बाद उद्योग-व्यापार को नहीं रही बजट में दिलचस्पी
दरअसल, जीएसटी लागू होने और इसकी दरे तय होने के बाद अब उद्योग-व्यापार के एक बहुत बड़े वर्ग का बजट में कोई खास दिलचस्पी नहीं रह गई है। उपभोक्ता सामाग्रियों के बजट में स्लैब बदलने का दौर भी जीएसटी कौंसिल बनने के साथ ही समाप्त हो गया है। फिर भी उद्योग जगत इस बात पर नजर लगाये हुए है कि बजट में देश के मध्यम वर्ग और उच्च मध्यम वर्ग को कर में कितनी राहत दी जाती है।
उद्योग जगत का मानना है कि कर राहत से मध्यम व उच्च मध्यम वर्ग का जो धन बचेगा वह बाजार में आयेगा और इससे सुस्त पड़ी अर्थव्यवस्था की रौनक एक बार फिर से लौट सकेगी। यही कारण है कि विभिन्न उद्योग संगठनों ने वित्त मंत्रालय को अपनी मांगों की सूची सौंप दी है। उनकी सूची में भी आयकर में छूट सबसे पहले है। जिसके तहत मांग की गई है कि अब पांच लाख रुपये तक की सालाना कमाई को कर मुक्त कर दिया जाए।
उद्योग संगठन, कॉरपोरेट टैक्स में और कटौती, लॉन्ग टर्म कैपिटल गेन्स टैक्स में कमी, कंपनियों के लाभांश पर टैक्स खत्म या कम करने, कस्टम ड्यूटी का ढांचा सरल करने, एसईजेड पर टैक्स छूट की समय सीमा वृद्धि की मांगों के साथ ही ‘डायरेक्ट टैक्स कोड’ को देश में लागू करने की इच्छा जताई हैै। इसके साथ ही उद्योग संगठनों की सरकार से खर्च बढ़ाने की भी उम्मीद की गई है।
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