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यूपी का ये परिवार: 50 सदस्य रहते हैं एक साथ, ऐसे करते हैं सोशल डिस्टेंस का पालन
सदर तहसील क्षेत्र के एक गांव के गरीबी और अल्प संसाधन में भी चुन्नीलाल रैदास के परिवार में एक ही छत के नीचे पुत्र, पौत्रियों से भरेपुरे चार पीढ़ियों के 50 लोग एक साथ खुशी-खुशी रहते हैं।सदर तहसील क्षेत्र के एक गांव के गरीबी और अल्प संसाधन में भी चुन्नीलाल रैदास के परिवार में एक ही छत के नीचे पुत्र, पौत्रियों से भरेपुरे चार पीढ़ियों के 50 लोग एक साथ खुशी-खुशी रहते हैं।
गोंडा: घोर भौतिकवादी इस युग ने जहां पति-पत्नी और उनके बच्चों के एकल परिवार ने संयुक्त परिवारों की पुरातन परम्परा को नष्ट कर दिया है। वहीं जिले में सदर तहसील क्षेत्र के एक गांव के गरीबी और अल्प संसाधन में भी चुन्नीलाल रैदास के परिवार में एक ही छत के नीचे पुत्र, पौत्रियों से भरेपुरे चार पीढ़ियों के 50 लोग एक साथ खुशी-खुशी रहते हैं।
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आज जब बेइमानी और बेशर्मी के दौर में स्वाभिमान और समझदारी के लिए प्रसिद्ध इस परिवार का जीवन दर्शन बेमिसाल है। लॉक डाउन में काम धंघा बंद होने से उपजे भारी आर्थिक संकटों की बीच भी इस परिवार की खुशियां कम नहीं हुईं है।
हालांकि ये परिवार लॉक डाउन से पहले भी यूं ही रहता था, मगर सभी लोग एक साथ एकत्रित नहीं हो पाते थे, बच्चे स्कूल चले जाते थे। परिवार के मुखिया सबसे बुजुर्ग 90 वर्षीय चुन्नीलाल रैदास भी शहर के स्टेशन रोड पर स्थित दुर्गामाता मंदिर पर बधाई बजाने निकल जाते थे। तो चुन्नीलाल के लड़के रामनाथ, नंदलाल, मेहीलाल और नंद कुमार अपने पल्लेदारी के काम पर। लॉक डाउन में इस परिवार की जीवनशैली में परिवर्तन आया है। इनका कब बातों और काम में दिन गुजर जाता है पता ही नहीं चलता क्योंकि जो सदस्य अपने काम पर निकल जाते थे वह भी घर पर ही रहते हैं।
लॉक डाउन में पूरी सर्तकता
संयुक्त परिवार की परंपरा को रैदास परिवार ने सार्थक किया है। घर में बंटवारा आज तक नहीं हुआ है। 90 वर्षीय चुन्नीलाल के छह बेटों में स्वामीनाथ और नानमून की मौत हो के बाद उनका परिवार भी चुन्नीलाल के ही साथ संयुक्त परिवार में रहता है। घर के सभी सदस्य फिजिकल डिस्टेंसिंग के साथ कोरोना से बचाव का पूरी तरह पालन कर रहे हैं। यह परिवार उन लोगों के लिए सबक है जो लाकडाउन का उल्लंघन कर बाजार में घूमकर स्वयं व परिवार की जान खतरे में डाल रहे हैं। डिस्टेंसिंग, साबुन से हाथ धोने तथा मास्क लगाकर रखने के सभी जागरूक रहते हैं।
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ऐसे बीतता है दिन
बुजुर्ग चुन्नीलाल और उनकी पत्नी बच्ची देवी बताती है कि सुबह-शाम भजन कीर्तन के साथ अपनी आने वाली पीढ़ियों को उनके समय के घटनाक्रम के साथ पुराने किस्से सुनाते है। छहों बहुएं सुनीता, शिवकला, रजकला, रमकला, ननका और मीना देवी खेती का काम संभालती हैं। जरुरत पड़ने पर चारों पुत्र भी उनका सहयोग करते हैं।
इस समय घर और बाहर का काम बंद होने से घर के पुरुष घरेलू काम में भी सहयोग कर रहे हैं। बच्चे गांव में ही खेल रहे हैं। तो बड़े बुजुर्ग एक जगह बैठकर पुराने समय की यादों को साझा कर रहे हैं। परिवार में अन्य छोटे बच्चों के साथ चौथी पीढ़ी में स्व. स्वामीनाथ के पौत्र दिनेश के दोनों बच्चे राजबाबू और देवा सबके दुलारे हैं।
दिन भर चलता रहता है भोजन उपक्रम
चुन्नीलाल के मरहूम पुत्र स्वामीनाथ की पौत्र वधू गुड़िया सुबह सवेरे एक बड़े से बर्तन में चाय उबालती हैं।
चुन्नीलाल के परिवार में रोज 15 किलो से अधिक राशन का खर्च है। सुबह और शाम को 10 दिन पौत्र बधू गुड़िया और 10 दिन माधुरी की अगुआई में सांझे चूल्हे पर खाना पकता है। तो परिवार की पौत्री ममता, वंदना व अन्य लडकियां उनका सहयोग करती हैं। नाश्ता अथवा भोजन तैयार होते ही घर के दो दर्जन बच्चे कतार बनाकर बैठ जाते हैं।
भले ही नंबर देरी से आए मगर न नाराजगी है न गुस्सा क्योंकि आपस में प्यार इतना है। घर की अन्य लड़कियों सुबह के भोजन व्यवस्था में लगीं रहती हैं। कोई पशुओं को चारा डालता तो कोई घरों में साफ सफाई का जिम्मा संभालता है। लड़कियां अपनी दादी और परदादी बच्ची देई से घरेलू काम का तरीका सीखतीं हैं तो लड़के अपने दादा-परदादा से पुराने किस्से सुनकर ही मनोरंजन करते है। ये दिनचर्या है सदर तहसील क्षेत्र में तुर्काडीहा गांव के चुन्नी लाल रैदास के परिवार की। जहां एक ही छत के नीचे चार पीढ़ियों के 48 लोग एक साथ रहते हैं।
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बटाई की खेती और मजदूरी से चलता है परिवार
90 वर्षीय चुन्नीलाल रैदास बताते हैं कि बचपन में स्कूल गए थे लेकिन मास्टर ने उन्हें मार दिया। इसके बाद उन्होंने स्कूल का मुंह नहीं देखा और निरक्षर ही रह गए। उनके बाबा पास पांच एकड़ जमीन थी लेकिन कुछ लोगों ने साजिस कर अपने नाम करा लिया। चूंकि वे पढ़े लिखे नही थे इसलिए मुकदमा भी नहीं लड़ सके। अब कुछ पैसे जोड़कर उन्होंने बमुश्किल दो बीघा जमीन खरीदा है। इसके अलावा गांव के लोगों की जमीन बटाई पर लेकर खेती करते हैं।
हालांकि उनके चारों लड़के हाईस्कूल तक पढ़े हैं लेकिन कोई सरकारी नौकरी नहीं मिली। नतीजन वे परिवार का पेट भरने के लिए गोंडा रेलवे के माल गोदाम पर पल्लेदारी का काम करते हैं। जबकि उनके एक पौत्र कपिलदेव हरियाणा के पानीपत में मेहनत मजदूरी करते हैं। इस मशीनी युग में भी उनके यहां एक जोड़ी अच्छे किस्म के बैल हैं। दूध के लिए तीन भैंसे भी हैं, जिससे वर्ष भर दूध घर में उपलब्ध रहता है।
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सुबह झगड़ा और शाम तक हो जाती सुलह
जिले और क्षेत्र के लिए मिसाल बने चुन्नीलाल बताते हैं कि घर में पुरुषों में नहीं महिलाओं में अक्सर किसी न किसी बात को लेकर वाद-विवाद भी खूब होता है, लेकिन शाम को सब भोजन एक साथ ही करती हैं। कभी-कभी नाराजगी में अलग होने की बात पर घर में रोना पीटना मच जाता है। उनके चार बेटों राम नाथ, नंदलाल, मेहीलाल और नंद कुमार ने कहा कि जब तक हम जिंदा रहेंगे कभी अलग होने की बात सोच भी नहीं सकते।
आधुनिकता से दूर शाकाहारी परिवार
12 कमरों में रहने वाले इस परिवार में अब तक न तो टेलीविजन है और न हीं इण्टरनेट वाला स्मार्ट फोन। मोटर साइकिल भी नहीं है और ही कोई चार पहिया वाहन। काम पर जाने और बेटों और पढ़ाई के लिए शहर जाने वाले पौत्रों-पौत्रियों के लिए कुल आठ साइकिल है। एक समार्ट फोन है जो पानीपत में रहने वाले कपिलदेव के पास रहता है। आज के दौर में भी इन सबके के न होने का इस परिवार को कोई मलाल नहीं है।
चुन्नीलाल के पौत्र इण्टरमीडिएट के छात्र सूरज कहते हैं कि परिवार के सभी बच्चे बड़ों द्वारा की गई व्यवस्था से संतुष्ट हैं। हमलोग कभी किसी वस्ु के लिए जिद नहीं करते। इनके परिवार में लोग मांस और मदिरा का सेवन नहीं करते इसलिए घर में कभी मांस नही बनता। शुद्ध शाकाहारी भोजन का ही नतीजा है कि सबकी बुद्धि शुद्ध रहती है और घर का कोई सदस्य बीमार नहीं है। भौतिकता के नाम आधुनिक तौर तरीकों में सिमट रहे परिवारों के लिए चार पीढ़ियों का यह परिवार क्षेत्र के लिए मिसाल बन गया है।
हर साल शादी, अखण्ड रामायण पाठ
चुन्नीलाल की बड़ी बहू सुनीता बताती हैं कि परिवार बड़ा होने के कारण पिछले कई वर्षों से हर साल विवाह का आयोजन होता है। इसके अलावा अखण्ड रामचरित मानस का पाठ और भंडारा का भी कार्यक्रम होता है। इस साल भी दो बच्चों का विवाह होना था लेकिन लाक डाउन के कारण नहीं हो सका और टाल दिया गया।
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मदद में आगे है परिवार
चुन्नीलाल बताते है कि उनका परिवार गांव क्षेत्र में किसी भी गरीब अथवा जरुरतमंद की मदद अपने क्षमता के अनुसार तन-मन और धन से करता है। खेती किसानी का काम हो या फिर किसी कमजोर, बीमार की सहायता वह कभी पीछे नहीं हटते। अब जब गांव के लोग बैल नहीं रखते तब लोगों की जरुरत पर खेती के कई काम में वे स्वयं अपने बैलों के जरिए सहयोग करते हैं।
रिपोर्ट: तेज प्रताप
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