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फंसेगी योगी सरकार: हाथरस कांड पर इसका देना होगा जवाब, CBI कर सकती है जांच
हाथरस कांड में पीडि़ता का अंतिम संस्कार कराए जाने के मामले में योगी सरकार हाईकोर्ट में फंस सकती है। सोमवार को हाईकोर्ट में पीडि़ता के परिवारजनों के बयान के बाद अब सरकार की जिम्मेदारी है कि वह साबित करे कि अंतिम संस्कार जबरन नहीं कराया गया है।
लखनऊ। हाथरस कांड में पीडि़ता का अंतिम संस्कार कराए जाने के मामले में योगी सरकार हाईकोर्ट में फंस सकती है। सोमवार को हाईकोर्ट में पीडि़ता के परिवारजनों के बयान के बाद अब सरकार की जिम्मेदारी है कि वह साबित करे कि अंतिम संस्कार जबरन नहीं कराया गया है। अंतिम संस्कार को भी भारत के नागरिकों के सम्मानपूर्वक जीवन यापन के मौलिक अधिकार में माना गया है। हाईकोर्ट इस मामले में सीबीआई को यह निर्देश भी दे सकता है कि वह यह बताए कि बेटी का अंतिम संस्कार क्या परिवारजनों की मर्जी के बगैर कराया गया है?
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बेटी को जबरन जला दिया
हाथरस गैंगरेप मामले में इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ खंडपीठ ने तब स्वत: संज्ञान लिया है जब गैंगरेप पीडि़ता का अंतिम संस्कार जबरन कराए जाने को लेकर हंगामा मचा।
पीडि़त परिवार के लोगों ने चीख-चीखकर कहना शुरू कर दिया कि उनकी बेटी का अंतिम संस्कार जबरिया कराया गया है। पीडि़ता की मां को कहते सुना गया कि वह अपनी बेटी को अंतिम बार अपने घर से रस्मो-रिवाज निभा कर विदा करना चाहती थी।
फोटो(सोशल मीडिया)
वह बेटी को हल्दी लगाकर विदा करने के लिए हाथरस जिला प्रशासन के सामने गिड़गिड़ाती रही लेकिन किसी ने उसकी नहीं सुनी और बेटी को जबरन ले जाकर जला दिया।
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अंतिम संस्कार परिवारजनों की सहमति से
हाईकोर्ट में सोमवार को पीडि़त परिवार के पांच सदस्य हाजिर हुए और उन्होंने अदालत के सामने भी यही बात दोहराई। जबरन अंतिम संस्कार कराने का खुला आरोप उन्होंने जिलाधिकारी हाथरस पर लगाया।
इसके बाद अदालत ने जिलाधिकारी से भी सवाल-जवाब किए हैं। अदालत के रुख को देखते हुए माना जा रहा है कि अब हाथरस जिला प्रशासन और शासन में बैठे अधिकारियों को यह साबित करना होगा कि गैंगरेप पीडि़ता का अंतिम संस्कार परिवारजनों की सहमति से कराया गया है।
अपराध मामलों के विशेषज्ञ अधिवक्ता नीरज श्रीवास्तव बताते हैं कि जब कोर्ट में कोई आरोप सुनवाई के लिए आता है तो बचाव पक्ष की जिम्मेदारी होती है कि वह साबित करे कि उसने ऐसा नहीं किया है।
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फोटो(सोशल मीडिया)
अंतिम संस्कार जबरन कराए जाने की बात
जहां तक अंतिम संस्कार जबरन कराए जाने की बात है तो हाईकोर्ट अब मामले की जांच करने वाली एजेंसी सीबीआई को निर्देश दे सकता है कि वह यह पता भी लगाए कि क्या पीडि़ता का अंतिम संस्कार जबरन कराया गया है अथवा नहीं। ऐसा होने पर सीबीआई जांच रिपोर्ट की भूमिका इस मामले में अहम हो जाएगी।
विधि विशेषज्ञ व हाईकोर्ट दिल्ली की अधिवक्ता नंदिता झा का मानना है कि जिस तरह से हाईकोर्ट लखनऊ खंडपीठ ने मामले में गंभीर रुख दिखाया है इससे भविष्य में यह मामला भी नजीर बन सकता है। भारतीय संविधान में प्रत्येक नागरिक को गरिमामय जीवन का अधिकार प्रदान किया गया है।
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फोटो(सोशल मीडिया)
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मौलिक अधिकार के दर्जे में
जीवन जीने के साथ -साथ जीवन के अंत पर भी सर्वोच्च न्यायालय ने अपनी व्याख्या में मृत्यु के बाद सम्मानित ढंग से अंत्येष्टि को भी मौलिक अधिकार के दर्जे में रखा है।
जयललिता की मृत्यु के बाद उनके मृत शरीर को निकाल कर डीएनए जांच से मना करते हुए अदालत ने कहाकि मृतक को गरिमामय सम्मानित ढंग से मृत्योपरांत संस्कार का अधिकार है।
इस आधार पर अगर हाईकोर्ट में सिद्ध हो जाता है कि पीडि़ता के अंतिम संस्कार में मौलिक अधिकार का हनन किया गया है तो वह संबंधित लोगों के विरूद्ध जुर्माना व दंड का आदेश दे सकती है।
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रिपोर्ट: अखिलेश तिवारी