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ये भारत-पाकिस्तानी महिलाएं: अमेरिका ने भी माना इनका लोहा, चुनाव में जलवा
अमेरिका विश्व का सबसे पुराना लोकतंत्र है। यहां हर 4 साल में चुनाव होते हैं। ऐसे में इस साल यानी 2020 में 3 नवंबर को होने वाले अमरीकी राष्ट्रपति चुनाव को कई लोग अमरीका के इतिहास का अब तक का सबसे महत्वपूर्ण चुनाव बता रहे हैं।
नई दिल्ली: अमेरिका विश्व का सबसे पुराना लोकतंत्र है। यहां हर 4 साल में चुनाव होते हैं। ऐसे में इस साल यानी 2020 में 3 नवंबर को होने वाले अमरीकी राष्ट्रपति चुनाव को कई लोग अमरीका के इतिहास का अब तक का सबसे महत्वपूर्ण चुनाव बता रहे हैं। गौरतलब है कि कोरोना महामारी का सबसे ज्यादा बुरा असर अमेरिका में हुआ है। यहां 2 लाख लोगों की मौत हो चुकी है। साथ ही लाखों लोगों की नौकरियां चली गई। जिसके चलते इन बुरे हालातों में अमरीका राजनीतिक और सामाजिक रूप से बँटा रहा। इस बीच ब्लैक अमेरिकन्स को लेकर भी काफी विरोध-प्रदर्शन और दंगे हुए।
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ऐसे में अमेरिका में 3 नवंबर को ही कई राज्यों के चुनाव भी होने हैं। इन चुनावों में कुछ पाकिस्तानी और भारतीय महिलाओं इस बार अपनी किस्मत आजमां रही हैं। चलिए आपको बताते हैं इन महिलाओं केे बारें में। सबसे पहले बताते हैं फराह ख़ान के बारे में।
फराह ख़ान
फोटो-सोशल मीडिया
तो फराह खान पाकिस्तानी अमरीकी महिला है। फराह 3 साल की उम्र में अमरिका आईं थीं। इनकी मां लाहौर से और पिता कराची से हैं। ये कैलिफोर्निया के अरवाइन शहर में मेयर की चुनावी दौड़ में है। फराह 2016 में मैदान में उतरीं और हार गईं। लेकिन इससे उन्हें खूब अनुभव मिला।
अपने बारे में फ़राह कहती हैं, "जब आप चुनाव लड़ रहे होते हैं, लोगों को लगता है कि यह बेहत प्रतिष्ठा की बात है लेकिन यह वाकई कठोर होता है। आपको कई तरह की बातें सुनने को मिलती हैं, जैसे हो सकता है यह शहर इतनी विविधता के लिए तैयार ही न हो। और आप पूछते हैं कि इसका क्या मतलब है? फिर आप सुनते हैं कि आपके जैसे नाम के लोग शायद न चुने जाएं।"
आगे फराह कहती हैं "तो आप सवाल करते हैं, हमारे पीछे आ रहे लड़के लड़कियों से कि वो क्या सोच रहे हैं। जब राजनीति में अपना प्रतिनिधित्व नहीं देखते हैं तो उन्हें क्या लगता है। यही मेरे लिए प्रेरणा बन गई और मैं एक बार फिर 2018 में मैदान में उतरी और जीत गई। "मेरा मक़सद लोगों को आपस में जोड़ना और एक साथ लाने का है।"
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सबीना ज़फ़र
सबीना जफर एक पाकिस्तानी अमरीकी महिला हैं। ये अमेरिका में सैन रैमन के मेयर पद के लिए मैदान में हैं। बता दें, सैन रैमन पश्चिम कैलिफोर्निया राज्य में सैन फ्रांसिस्को से क़रीब 35 मील पूरब में स्थित एक बेहद ख़ूबसूरत शहर है।
इस वक्त सबीना ज़ाफ़र वाइस मेयर हैं और इस बार मेयर के लिए चुनाव लड़ रही हैं। साबिना के पिता राजा शाहिद ज़फ़र बेनज़ीर भुट्टो सरकार में पाकिस्तान के केंद्रीय मंत्री रह चुके हैं। सबीना कहती हैं कि "मैं अपने पिता के कामों की प्रशंसा होते देखते पली बढ़ी हूं।"
सबीना कहती हैं, "कोई भी आवाज़ उठाने से पहले मुझे सीखना और सुनना पसंद है... जब कुछ बहुत महत्वपूर्ण हो और आपके दिल के क़रीब भी तो आपका आवाज़ उठाना भी उतना ही ज़रूरी है। हम सभी इस देश में प्रवासी हैं। चाहे आप 11 पीढ़ियां पहले आए हों या एक पीढ़ी पहले। सामूहिक रूप से यह धरती हम सब की है।"
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पद्मा कुप्पा
फोटो-सोशल मीडिया
जीं हां पद्मा कुप्पा एक भारतीय अमरीकी हैं। बात है 70 के दशक की, जब पद्मा अपनी मां के साथ अमरिका गई, तो उनके पिता पहले से ही वहां रह रहे थे। बचपन से ही पद्मा किताबें पढ़ने की शौकीन, लेखिका और गणित बहुत पसंद करती है।
परिचय देती हुए पद्मा कहती हैं, "जब मैं मिशिगन आई तो यहां के लोग अन्य संस्कृतियों के लोगों से परिचित नहीं थे। हम अन्य हैं क्योंकि हम अप्रवासी के रूप में अलग रहते हैं। पद्मा 2018 में जीती थीं और फिर से चुनावी मैदान में हैं।"
आगे पद्मा कहती हैं, "मैंने मंदिर में स्वेच्छा से काम किया क्योंकि मैं चाहती थी कि बच्चे अपनापन महसूस करें। क्योंकि आप ऐसी जगह पर हैं जहां सभी ब्राउन हैं, आप उनके बीच आराम से गुम हो जाते हैं। यहां आपको आराम और अपनापन मिलता है। मैं चाहती थी कि वो हिंदू धर्म को अपने संपूर्ण रूप में समझें, न कि जैसा कि हम अपने घरों में करते हैं और उस पर बातें भी नहीं करते।"
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राधिका कुन्नेल
राधिका कुन्नेल भी एक भारतीय अमरीकी हैं। बता दें, राधिका एक वैज्ञानिक हैं। राधिका बताती हैं, "मैं किसी को टेक्स्ट कर रही थी। वो मंगलवार का दिन था... मैं एक प्रयोग पर काम कर रही थी। तभी मैंने लैब में काम कर रहे सहयोगियों को ज़ोर ज़ोर से 'ओह माइ गॉड, ओह माइ गॉड...' कहते सुना। दुनिया भर के टीवी नेटवर्क ट्विन टावर्स से निकलते भयावह लहराते धुंए की तस्वीरें दिखा रहे थे।"
राधिका कहती हैं "उसके बाद, मैंने ऐसी भी बातें सुनी कि अपने देश वापस जाओ। वो पड़ोसी जो पहले बहुत ज़्यादा फ़्रेंडली थे, अब फ़्रेंडली नहीं रह गए, यहां तक कि उन्होंने हमसे बातचीत तक बंद कर दी थी। उसका मुझ पर इतना प्रभाव पड़ा कि बाद के समय में मैं और अधिक संवेदनशील हो गई और साथ ही इस बात की हिमायती भी कि हमारा प्रतिनिधित्व होना चाहिए।"
राधिका कहती हैं, "अगर निर्णय लेने की भूमिका में वैज्ञानिक नहीं होंगे तो जो विज्ञान प्रयोगशाला में तैयार की जाती है उसे कैसे ट्रांसलेट किया जाएगा क्योंकि आपके पास फ़ैसला लेने वाले लोग नहीं हैं जो इसके महत्व को समझ सकें।" बता दें, राधिका स्वास्थ्य और शिक्षा के क्षेत्र में काम करने के साथ ही राज्य में विविधता को और बेहतर बनाना चाहती हैं।
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