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बड़े-बड़े शहर तबाह: युद्ध लगातार जारी, चीन किसी और साजिश में जुटा
जंग से जूझ रहे आर्मेनिया और अजरबैजान(Armenia and Azerbaijan) के मामले को ध्यान से देखें तो पता चलता है कि ये देश कभी सोवियत संघ(Soviet Union) का हिस्सा थे। साथ ही नब्बे के दशक में सोवियत संघ(Soviet Union) के टूटने के बीच ये देश आजाद हो गए।
नई दिल्ली। आर्मेनिया और अजरबैजान(Armenia and Azerbaijan) का युद्ध अब और भी भयानक रूप लेता जा रहा है। ऐसे में नागोर्नो-काराबाख इलाके (Nagorno-Karabakh) पर कब्जे को लेकर दोनों एक-दूसरे के बीच ताबड़तोड़ गोलाबारी चल रही है। लेकिन इस युद्ध में रूस बुरी तरह से फंस गया है। दूसरी तरफ दुनिया के तमाम बड़े देश भी दोनों देशों(Armenia and Azerbaijan) में से एक देश का समर्थन करते हुए उसके साथ खड़े होने का एलान कर रहे हैं। हालाकिं इसके बाद भी अभी चीन इस पर किसी प्रकार की कोई प्रतिक्रिया नहीं दे रहा है।
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आर्मेनिया के लिए इस क्षेत्र की दिलचस्पी
जंग से जूझ रहे आर्मेनिया और अजरबैजान(Armenia and Azerbaijan) के मामले को ध्यान से देखें तो पता चलता है कि ये देश कभी सोवियत संघ(Soviet Union) का हिस्सा थे। साथ ही नब्बे के दशक में सोवियत संघ(Soviet Union) के टूटने के बीच ये देश आजाद हो गए।
उस वक्त सोवियत संघ (Soviet Union) ने ही बंटवारा करते हुए नागोर्नो-काराबाख इलाका अजरबैजान को दे दिया। हालाकिं ये बात और है कि खुद नागोर्नो-काराबाख की संसद ने आधिकारिक तौर पर अपने को आर्मेनिया का हिस्सा बनाने के लिए वोट किया था।
ऐसे में बड़ी बात ये है कि आर्मेनिया के लिए इस क्षेत्र की दिलचस्पी इसलिए है क्योंकि नागोर्नो-काराबाख क्षेत्र की ज्यादातर आबादी आर्मीनियाई मूल की ही है। यही कारण है कि इस क्षेत्र के लोगों ने लगातार खुद को आर्मेनिया से मिलाने की बात की। हालांकि उनकी कोई सुनवाई नहीं हुई।
फोटो-सोशल मीडिया
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संघर्ष में कई देशों की भूमिका
लेकिन इसके बाद से काराबाख इलाके के लोगों ने अजरबैजान के खिलाफ आंतरिक लड़ाई शुरू कर दी। और बाद फ्रांस, रूस और अमेरिका जैसे देशों की मध्यस्थता में दोनों देशों के बीच लंबी बातचीत चली और कई समझौते भी हुए लेकिन तब भी संघर्ष चलता रहा।
इसके साथ ही नया तनाव यानी हाल में चल रहा नब्बे की शुरुआत के बाद का सबसे बड़ा तनाव माना जा रहा है। बढ़ते खतरे को देखते हुए सभी देश अपने को किसी एक तरफ लगाने में लगे हैं। और जैसे अपने ही हिस्से होने के कारण रूस लगातार दोनों के बीच सुलह की कोशिश कर रहा है। लेकिन उसका झुकाव आर्मेनिया की तरफ ज्यादा है।
दूसरी तरफ अजरबैजान के इस्लाम-बहुल मुल्क होने की वजह से कई अरब देशों से लेकर पाकिस्तान तक उसके साथ खड़ा हुआ है। क्योंकि पिछले साल अजरबैजान ने कश्मीर मुद्दे पर पाकिस्तान का खुलकर समर्थन किया था, और तब से ही पाकिस्तान की दिलचस्पी अजरबैजान में है।
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