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भारत को खतरा: हमे बचना होगा इस देश से, नए-नए पैंतरे अपना रहा

अफगानिस्तान को अपनी हिंसा का शिकार बनाने वाले आतंकी संगठन तालिबान ने अब भारत की ओर मुख मोड़ा है। अफगानिस्तान के राष्ट्रपति अशरफ गनी की सरकार सेे वार्ता से पहले तालिबान भारत में नजरों में अच्छा बनने की कोशिश कर रहा है।

Vidushi Mishra
Published on: 25 May 2020 7:21 AM GMT
भारत को खतरा: हमे बचना होगा इस देश से, नए-नए पैंतरे अपना रहा
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नई दिल्ली। अफगानिस्तान को अपनी हिंसा का शिकार बनाने वाले आतंकी संगठन तालिबान ने अब भारत की ओर मुख मोड़ा है। अफगानिस्तान के राष्ट्रपति अशरफ गनी की सरकार सेे वार्ता से पहले तालिबान भारत में नजरों में अच्छा बनने की कोशिश कर रहा है। तालिबान भारत के साथ दो-तरफा खेल की रंजिश चल रहा है और कश्मीर पर अपनी ताक भिड़ाने की फिराक में है। ऐसे में भारतीय रक्षा सलाहकारों ने यह आशंका तब जताई है, जब हाल ही में तालिबान ने कश्मीर को भारत का आंतरिक मामला बताते हुए उसके खिलाफ छेड़े गए किसी भी तरह के जेहाद को समर्थन देने से मना किया था। भारतीय रक्षा सलाहकारों ने तालिबान के इस बयान को अफगान वार्ता से पहले की मुंह बोली बताया है।

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समर्थन के सारे रास्ते बंद

भारतीय सुरक्षा सलाहकार बोर्ड के सदस्य तिलक देवेश्वर के अनुसार, तालिबान अच्छे और बुरे पुलिसवाले का खेल खेल रहा है। तालिबान, अफगान वार्ता से पहले गनी सरकार को मिल रहे समर्थन के सारे रास्ते बंद करना चाहता है।

जिससे अशरफ गनी सरकार का विश्वास टूट जाए और भारत से बातचीत के दरवाजे खुल जाए, जो अभी तक तालिबान से दूरी बनाए हुए है। वहीं, ऑब्जर्वर रिसर्च फाउंडेशन के सीनियर फेलो सुशांत सरीन ने कहा, तालिबान अरसे से अंतरराष्ट्रीय समुदाय के साथ डबल गेम खेलता रहा है और अब कुछ ऐसा ही वह भारत के साथ करने की कोशिश में है।

वह भारत के सामने खुद को अफगानिस्तान का असली चेहरे की तरह पेश करना चाहता है, ताकि उससे बातचीत हो तो वह भारत के मामलों में दखल नहीं देने का भरोसा दे सके।

उदारवादी रुख

इसके साथ ही सोसाइटी ऑफ पॉलिसी स्टडीज के निदेशक सी उदय भास्कर के अनुसार, तालिबान भारत के साथ बात करना चाहेगा तो हैरानी नहीं होनी चाहिए। ऐसा लगता है कि उसका एक धड़ा उदारवादी रुख अपना रहा है।

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आगे उन्होंने कहा- यह धड़ा एक तरह का अस्थाई राजनीतिक जगह बनाने की फिराक में है, जिससे भारत से बातचीत शुरू हो सके। तालिबान कश्मीर पर भारत की चिंता को भुनाने की कोशिश में है।

निदेशक भास्कर ने कहा- इससे पाकिस्तान भी इस पूरे मसले में शामिल हो जाएगा। मुझे डर है कि तालिबान आतंक का पर्याय रहा है, इसलिए उस पर भरोसा नहीं किया जा सकता है।

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पाकिस्तान का ही दूसरा रूप

सरीन के मुताबिक तालिबान से बातचीत का मतलब है कि पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आईएसआई से बातचीत करना। वह पाकिस्तान का ही दूसरा रूप है। अगर आप तालिबान से बात करेंगे तो आप अपने दोस्त यानी गनी सरकार को खो देंगे।

वहीं, देवेश्वर ने कहा, तालिबान भारत से बातचीत बढ़ाकर अफगानिस्तान की अशरफ गनी सरकार को नीचा दिखाना चाहता है। अमेरिका के विशेष राजदूत जालमे खलिजाद ने हाल ही में भारत से अनुरोध किया था कि वह तालिबान से सीधे बात करे। अगर वाकई तालिबान बदल गया है, तो इसे अपने रवैये और गतिविधियों से दर्शाना होगा।

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अपने सभी संबंध तोड़ लिए

ऑब्जर्वर रिसर्च फाउंडेशन के सीनियर फेलो सुशांत सरीन के अनुसार, यह मानना एक भ्रम होगा कि तालिबान ने अल कायदा और इस्लामिक स्टेट के साथ अपने सभी संबंध तोड़ लिए हैं। उस पर कोई भी भरोसा करना जल्दबाजी होगी।

यह एक ऐसा गुट है, जो बीते 25 साल से स्कूलों, अस्पतालों, महिलाओं और बच्चों का खून बहाने का गुनहगार है। खासतौर पर इसने अफगान लोगों को निशाना बनाया है। इस पर यकीन तभी हो सकेगा, जब तालिबान आतंकी संगठन जैसा बर्ताव करना बंद कर दे। मासूमों का खून बहाना रोक दे।

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