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बच गए ओली: प्रचंड के पिघलने से बची ओली की पार्टी और सत्ता
नेपाल में पिछले कई हफ्तों से चल रहा अनिश्चितता का माहौल फिलहाल थम गया है।नेपाल कम्यूनिस्ट पार्टी के सह अध्यक्ष पुष्प कुमार दहल प्रचंड ने नेपाल के पीएम के.पी.शर्मा ओली के इस्तीफे की मांग वापस ले ली है।
नई दिल्ली। नेपाल में पिछले कई हफ्तों से चल रहा अनिश्चितता का माहौल फिलहाल थम गया है।नेपाल कम्यूनिस्ट पार्टी के सह अध्यक्ष पुष्प कुमार दहल प्रचंड ने नेपाल के पीएम के.पी.शर्मा ओली के इस्तीफे की मांग वापस ले ली है। प्रचंड के इस रुख से ओली की सत्ता तो बच ही गई साथ ही सत्तारूढ़ नेपाल कम्यूनिस्ट पार्टी को भी जीवनदान मिला है। नेपाल की मीडिया के मुताबिक प्रचंड ने जहां के.पी.शर्मा ओली के इस्तीफे की मांग छोड़ी है वहीं पीएम ओली नवम्बर में पार्टी का महासम्मेलन बुलाने के राज़ी हो गए हैं।
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क्या था पूरा विवाद—
भारत विरोधी रुख और एक के बाद एक भारत से संबंध खराब करने वाले फैसलों को लेकर पीएम ओली अपने देश में ही घिर गए थे।
सरकार चलाने में उनको लगातार मुश्किलें आ रही थीं लेकिन स्थिति ने उनके तब खतरनाक मोड़ लिया जब नेपाल कम्यूनिस्ट पार्टी के सह अध्यक्ष पुष्प कुमार दहल प्रचंड ने पाएम के इस्तीफे की मांग रख दी।
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दहल को पूर्व प्रधानमंत्री माधव कुमार नेपाल और झालानाथ खनल का भी समर्थन मिला था जिससे ओली की मुश्किलें और बढ़ गई थीं।
चीन की गोद में खेल रहे हैं ओली-
नेपाल के बारे में जानकारी रखने वालों का मानना है कि ओली चीन की शह पर भारत विरोधी फैसले ले रहे हैं।पहले भारत के कुछ इलाकों को नेपाल का हिस्सा बनाकर नया मानचित्र पास कराया और फिर नेपाल और भारत की सीमा पर अभूतपूर्व रूप से नेपाली पुलिस को आक्रामक होने का आदेश दिया।
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ओली ने रोटी बेटी के रिश्ते वाले भारतवंशी बहुओं की नागरिकता के लेकर भी कानून में बदलाव कर दिया।हद तो यह है कि ओली ने नेपाल में राम का असली जन्मस्थान और अयोध्या होने की बात तक कर डाली।
इस बयान का उनके अपने ही देश में इतना विरोध हुआ कि उन्हें बयान वापस लेकर सफाई देनी पड़ी।जानकारों की मानें तो ओली के इन फैसलों में चीन की बड़ी भूमिका है।
ओली चीन की शह पर सदियों पुराने भारत नेपाल के रिश्ते को खत्म कर उसे कम्यूनिस्ट चीन की गोद में ले जाना चाहते हैं।
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पूरे विवाद में चीनी राजनयिक रहीं चर्चा में-
नेपाल में चीन की राजदूत हाउ यांकी की भूमिका को लेकर हमेशा चर्चाओं का बाज़र गर्म रहा।माना जा रहा है कि यांकी का प्रभाव ओली पर बहुत ज्यादा है ।यांकी इस हद तक नेपाली राजनीति में हस्तक्षेप करती हैं कि कई बार राजनयिक प्रोटोकॉल का भी उन्हें ख्याल नहीं रहता।
यांकी की भूमिका को लेकर नेपाल के कई बड़ा राजनीतिक दल भी अपना विरोध जता चुके हैं।इस विवाद में भी यांकी काफी सक्रिय रहीं औऱ उन्होंने राष्ट्रपति विद्या देवी भंडारी से भी बात की।
यह भी कहा जा रहा था कि वह ओली और प्रचंड के बीच मध्यस्थता कराने को लेकर भी काफी सक्रिय थीं।अब खबरें निकल कर आ रही हैं कि राष्ट्रपति विद्या देवी भंडारी की कोशिशों के चलते ही प्रचंड और ओली का विवाद सुलझ गया है।
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अड़े थे ओली ,मिल गई राहत—
नेपाल के पीएम के.पी.शर्मा ओली इस विवाद की शुरुआत से ही कुर्सी ना छोड़ने की ज़िद पर अड़े थे। इसके लिए अपनी पार्टी की स्टैंडिंग कमेटी की सात बैठकों के स्थगित होने के बाद भी ओली ने अपनी कुर्सी बचाने का प्लान बी भी तैयार कर लिया था।
उन्होंने कुर्सी बचाने के लिए आर्डिनेंस लाने,संसद सत्र खत्म करने और विपक्षी नेपाली कांग्रेस पार्टी से हाथ मिलाने की तैयारी कर ली थी।लेकिन बदलते घटनाक्रम में प्रचंड के पिघलने से नेपाल सरकार को भले ही कुछ दिनों की सही ,पर जीवनदान तो मिल ही गया है।
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