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इस चूहे को मिला वीरता पुरस्कार, ऐसे बचाई हजारों लोगों की जान
मालूम हो कि कंबोडिया 1970 से 1980 के दशक में भीषण गृह युद्ध झेल चुका है। कंबोडिया ने दुश्मनों को मारने के लिए बड़े पैमाने पर बारूदी सुरंगे बिछाई गईं थी।
नई दिल्ली: इंसानों की तरह ही कई जीव-जंतु और जानवर भी बहादुर होते हैं। इसका उदाहरण हमें पहले भी कई बार देखने को मिल चुका है।
ऐसा ही एक मामला कम्बोडिया में भी सामने आया है। जहां अफ्रीकी नस्ल के एक विशाल चूहे को ब्रिटेन की एक संस्था ने बहादुरी के लिए गोल्ड मेडल देकर सम्मानित किया है।
मीडिया रिपोर्ट के अनुसार इस चूहे का नाम मगावा है। वह एक विशालकाय चूहा है। उसने अपने सूंघने की क्षमता से 39 बारूदी सुरंगों का पता लगाया था।
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चूहे की फोटो(सोशल मीडिया)
28 जिंदा विस्फोटकों का पता लगाया था
अपने काम के दौरान इस चूहे ने 28 जिंदा विस्फोटकों का भी पता लगाकर हजारों लोगों की जान बचाई है। जिसके बाद से उसे ब्रिटेन की एक संस्था ने उसे उसकी बहादुरी के लिए गोल्ड मेडल से नवाजा है। इस पुरस्कार को जीतने वाला पहला चूहा है। मगावा नाम के इस चूहे की उम्र सात साल है।
प्राप्त जानकारी के अनुसार शुक्रवार को ब्रिटेन की एक चैरिटी संस्था पीडीएसए ने इस चूहे को गोल्ड मेडल दिया। मागावा ने दक्षिण पूर्व एशियाई देश कंबोडिया में 15 लाख वर्ग फीट के इलाके को बारूदी सुरंगों से बचाने में सहायता की।
यह बारूदी सुरंगें 1970 और 1980 के दशक की थीं जब कंबोडिया में खतरनाक गृह युद्ध छिड़ा था।
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दुश्मनों से बचने के लिए कम्बोडिया ने खुद ही बनवाई थी बारूदी सुरंग
मालूम हो कि कंबोडिया 1970 से 1980 के दशक में भीषण गृह युद्ध झेल चुका है। कंबोडिया ने दुश्मनों को मारने के लिए बड़े पैमाने पर बारूदी सुरंगे बिछाई गईं थी। लेकिन, गृहयुद्ध के खत्म होने के बाद ये सुरंगे अब यहां के आम लोगों की मौत का कारण बनी रही हैं।
अभी तक कि जो जानकारी निकलकर सामने आई है। उसके मुताबिक कम्बोडिया में चूहों को सिखाया जाता है कि विस्फोटकों में कैसे रासायनिक तत्वों को पता लगाना है और बेकार पड़ी धातु को अनदेखा करना है।
चूहों की फोटो(सोशल मीडिया)
चूहा को दी जाती है खास ट्रेनिंग
इसका मतलब है कि वे जल्दी से बारूदी सुरंगों का पता लगा सकते हैं। एक बार उन्हें विस्फोटक मिल जाए, तो फिर वे अपने इंसानी साथियों को उसके बारे में सचेत कर देते हैं।
पीडीएसए एक ऐसी संस्था है जो हर साल बेहतरीन काम करने वाले जानवरों को पुरस्कृत करती है। इस संस्था के 77 साल के लंबे इतिहास में पहली बार ऐसा हुआ है कि किसी चूहे ने इस तरह का पुरस्कार जीता है।
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