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मिसाइलों की बरसात: अब परमाणु हमले को तैयार रूस, हिल उठी पूरी दुनिया
रूस ने शक्तिप्रदर्शन कर डाला है। ऐसे में सबसे खास बात ये है कि रूस ने न केवल सैन्य अभ्यास किया है बल्कि परमाणु हमला करने की अपनी पूरी ताकत दुनिया को दिखाई है। वहीं पनडुब्बियों, जमीन के नीचे बने अड्डों और एयरक्राफ्ट से मिसाइलों की मानों बारिश जैसे कर डाली है।
नई दिल्ली। पूरी दुनिया की कोरोना महामारी से एक तरफ जंग अभी भी जारी है। खतरे के बादल मंडरा रहे हैं। दूसरी तरफ सबसे बड़ा महाशक्तिशाली अमेरिका में सत्तापरिवर्तन होने वाला है साथ ही चीन अपना प्रभुत्व कायम करने में लगा हुआ है और रूस ने भी शक्तिप्रदर्शन कर डाला है। ऐसे में सबसे खास बात ये है कि रूस ने न केवल सैन्य अभ्यास किया है बल्कि परमाणु हमला करने की अपनी पूरी ताकत दुनिया को दिखाई है। वहीं पनडुब्बियों, जमीन के नीचे बने अड्डों और एयरक्राफ्ट से मिसाइलों की मानों बारिश जैसे कर डाली है।
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सैन्य शक्तिप्रदर्शन की कमान संभाली
ऐसे में रूस ने जल्द के कुछ सालों में पश्चिम के साथ बढ़ते टकराव के बीच अपने सैन्य अभ्यासों को पहले से काफी तेज कर दिया हैं। इस बीच देश के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने जिस सैन्य शक्तिप्रदर्शन की कमान संभाली, उसके वीडियो अब शेयर किए जा रहे हैं।
इस बीच शक्तिप्रदर्शन के दौरान रूस ने परमाणु क्षमता वाली मिसाइलें दागी हैं। जानकारी देते हुए देश के रक्षा मंत्रालय का कहना है कि इसमें बैरंट्स सी में परमाणु पनडुब्बी करेलिया से इंटरकॉन्टिनेंटल बैलिस्टिक मिसाइल का टेस्ट लॉन्च भी किया गया।
सैन्य शक्तिप्रदर्शन में कई लंबी दूरी की क्रूज मिसाइलें भी लॉन्च की गईं। ऐसे में यूक्रेनका और एंजेल्स एयरफील्ड से बमवर्षक विमानों Tu-160 और Tu-95 से ये मिसाइलें दागी गईं।
फोटो-सोशल मीडिया
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वैश्विक स्थिरता भी खतरे में
साथ ही बताया गया है कि इन्होंने सफलतापूर्वक पेमबॉय ट्रेनिंग ग्राउंड में अपने निशानों को मार गिराया। TASS के अनुसार, ये लॉन्च पुतिन की कमांड में किए गए।
बता दें, रूस ने यह अभ्यास ऐसे समय किया है जब अमेरिका-रूस आर्म्स कंट्रोल ट्रीटी के समाप्त होने में कुछ ही महीने शेष हैं। ऐसे में मॉस्को और वॉशिंगटन ने इस समझौते के विस्तार पर चर्चा की है हालाकिं अभी मतभेद बना हुआ हैं। वहीं New START समझौता 2010 में तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा और तत्कालानी रूसी राष्ट्रपति दिमित्री मेदवेदव के बीच किया गया था।
इस समझौते से विशेषज्ञों को इस बात की चिंता है कि अगर यह भी खत्म हो गया तो न केवल दोनों देशों की सेनाओं के अनियंत्रित होने का खतरा होगा, बल्कि वैश्विक स्थिरता भी खतरे में आ जाएगी। जोकि सबसे बड़ी समस्या बनती नजर आ रही है।
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