जानें उस शक्तिपीठ के बारें में, जिनके दर्शन को 71 साल बाद पाक सरकार ने दी मंजूरी

करतारपुर के बाद पाकिस्तान सरकार ने हिंदुओं के पवित्र धर्मस्थल शारदापीठ कॉरिडोर के लिए भी हरी झंडी दे दी है। पाकिस्तानी मीडिया ने इसकी पुष्टि कर दी है। जिसके बाद अब भारत के हिंदू तीर्थयात्री यहां दर्शन के लिए आ सकेंगे।

Aditya Mishra
Published on: 26 March 2019 8:11 AM GMT
जानें उस शक्तिपीठ के बारें में, जिनके दर्शन को 71 साल बाद पाक सरकार ने दी मंजूरी
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फ़ाइल फोटो

लखनऊ: करतारपुर के बाद पाकिस्तान सरकार ने हिंदुओं के पवित्र धर्मस्थल शारदापीठ कॉरिडोर के लिए भी हरी झंडी दे दी है। पाकिस्तानी मीडिया ने इसकी पुष्टि भी कर दी है। बताया जा रहा है कि इमरान सरकार ने शारदापीठ की यात्रा के लिए सोमवार को ही कॉरिडोर बनाने के प्रस्ताव को मंजूरी दे दी थी। जिसके बाद अब भारत के हिंदू तीर्थयात्री यहां दर्शन के लिए आ सकेंगे। तो आइये हम आपको बताते है शारदापीठ कॉरिडोर के बारें में:-

क्या है शारदा पीठ कॉरीडोर

शारदा पीठ, पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर (पीओके) के शारदा नामक गांव में स्थित है। यह एक प्राचीन हिन्दू मंदिर है। कश्मीरी पंडित शारदा पीठ को एक महत्तवपूर्ण धार्मिक स्थल मानते हैं।

उनका मानना है कि यहां भगवान शिव का निवास है। भारत-पाक बंटवारे के बाद यह मंदिर सीमा के उस पार पाकिस्तान क्षेत्र में चला गया जिससे भारतीय तीर्थयात्री इस मंदिर से दूर होते गए, आजादी से पहले भारतीय तीर्थयात्री इस मंदिर में दर्शन के लिए लगातार जाते थे।

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देवी के 18 महाशक्ति पीठों में से एक शारदा पीठ

शारदा पीठ श्रीनगर से 130 किलोमीटर की दूरी पर पीओके में स्थित है। जो कि देवी के 18 महाशक्ति पीठों में से एक है। शारदा पीठ कश्मीरी पंडितों के लिए एक बेहद पावन तीर्थस्थल तो हैं ही साथ ही यह हिंदू धर्मावलंबियों के लिए भी खासा महत्व रखता है। यह ना सिर्फ धार्मिक रीति रिवाजों के लिए अहम स्थल था बल्कि छठी सदी से लेकर 12वीं सदी के दौरान यहां एक विशाल शिक्षा केंद्र भी था।

पांच हजार साल पुराना है मंदिर का इतिहास

इस मंदिर का निर्माण अशोक के शासनकाल के दौरान 237 ईसा पूर्व किया गया था। करीब पांच हजार साल पुराना शारदापीठ मंदिर मां सरस्वती को समर्पित है। 6वीं से 12वीं शताब्दी के बीच शारदापीठ भारतीय उपमहाद्वीप के अग्रणी मंदिर विश्वविद्यालयों में से एक था। यह कश्मीरी पंडितों के लिए तीन प्रसिद्ध पवित्र स्थलों में से भी एक है। अन्य दो अनंतनाग में मार्तंड सूर्य मंदिर और अमरनाथ मंदिर हैं।

शारदा पीठ से जुड़ी प्रमुख मान्यताएं

हिंदू मान्यताओं के अनुसार यहां देवी सती का दायां हाथ गिरा था। इस मंदिर को ऋषि कश्यप के नाम पर कश्यपपुर के नाम से भी जाना जाता था।

शारदा पीठ में देवी सरस्वती की आराधना की जाती है। वैदिक काल में इसे शिक्षा का केंद्र भी कहा जाता था। मान्यता है कि ऋषि पाणीनि ने यहां अपने अष्टाध्यायी की रचना की थी। यह श्री विद्या साधना का महत्वपूर्ण केन्द्र था।

शैव संप्रदाय की शुरुआत करने वाले आदि शंकराचार्य और वैष्णव संप्रदाय के प्रवर्तक रामानुजाचार्य दोनों ने ही यहां महत्वपूर्ण उपलब्धियां हासिल की। शंकराचार्य यहीं सर्वज्ञपीठम पर बैठे तो रामानुजाचार्य ने यहां ब्रह्म सूत्रों पर अपनी समीक्षा लिखी।

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शारदा पीठ के बारें में इतिहासकारों की राय

कुछ इतिहासकारों का कहना है कि यहां पर मूल मंदिर का निर्माण कुशान राज के दौरान किया गया था लेकिन मौजूदा मंदिर व शिक्षा केंद्र की स्थापना ललितादित्य के समय किया गया। समूचे दक्षिण एशिया में इस मंदिर का बहुत ही ज्यादा महत्व था और बंगाल तक से छात्र यहां शिक्षा के लिए आते थे।

आज भी दक्षिण भारत के सारस्वत ब्राह्मणों में शिक्षा शुरु करने से पहले सात कदम कश्मीर की तरफ चलने की परंपरा है जिसे शारदा पीठ से जोड़ कर देखा जाता है।

14वीं सदी के बाद कई बार बाहरी आक्रांताओं ने इस मंदिर पर हमला किया। बाद में डोगरा राजा ने 19वीं सदी में इसका नए सिरे से निर्माण करवाया। वर्ष 2005 में कश्मीर में आये भयंकर भूकंप में इसे भारी नुकसान पहुंचा।

1948 में भारतीय हिंदू के जाने पर लगी रोक

वर्ष 1948 के बाद से पाकिस्तान ने किसी भी भारतीय हिंदू को इस मंदिर में जाने की इजाजत नहीं दी है। वर्ष 2007 में कश्मीरी पंडितों को गुलाम कश्मीर जाने दिया गया लेकिन मंदिर जाने की इजाजत नहीं मिली। बाद में भारत और पाकिस्तान के बीच हुई कई वार्ताओं में शारदा पीठ का मुद्दा भी उठा। शारदा पीठ में भारतीय हिंदुओं और हजरतबल मस्जिद में पाकिस्तानी मुस्लिमों को जाने का मुद्दा भी उठा लेकिन किसी न किसी वजह से बात आगे नहीं बढ़ सकी।

कश्मीरी पंडितों ने उठाई थी मांग

1947 में भारत और पाक के अलग होने के बाद हिंदू श्रद्धालुओं को मंदिर के दर्शन में परेशानी आने लगी। 2007 में कश्मीरी अध्येता और भारतीय संस्कृति संबंध परिषद के क्षेत्रीय निदेशक प्रोफेसर अयाज रसूल नज्की ने इस मंदिर का दौरा किया था।

इसके बाद से ही भारतीय श्रद्धालुओं को दर्शन की अनुमति की मांग उठने लगी। कश्मीरी पंडितों को मंदिर के दर्शन की इजाजत दिलवाने के लिए बनी शारदा बचाओ कमेटी ने इसके लिए भारत सरकार के साथ-साथ पाकिस्तान के प्रधानमंत्री को भी पत्र लिखा। इसमें मांग की गई थी कि श्रद्धालुओं को मुजफ्फराबाद के रास्ते मंदिर के दर्शन की अनुमति दी जाए।

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दिसंबर में महबूबा मुफ्ती ने पीएम मोदी को लिखा था पत्र

कश्मीरी पंडितों के लिए शारदा पीठ कॉरीडोर को खोलने की मांग दिसंबर में भी हुई थी, तब महबूबा मुफ्ती ने पीएम मोदी को पत्र लिखकर इसे खोले जाने की मांग की थी। दिसंबर 2018 में भी भारत-पाकिस्तान के बीच करतारपुर कॉरीडोर के निर्माण का रास्ता खुल जाने के बाद जम्मू कश्मीर की पूर्व सीएम और पीडीपी प्रमुख महबूबा मुफ्ती ने शारदा कॉरीडोर का मुद्दा उठाया था।

इस संबंध में महबूबा मुफ्ती ने पीएम मोदी को चिट्ठी भी लिखी थी, जिसमें उन्होंने कश्मीरी पंडितों के लिए इसे खोले जाने की मांग की थी। वो चाहती थीं कि भारत करतार पुर कॉरीडोर के बाद शारदा कॉरीडोर को खोले जाने को लेकर पाकिस्तानी पीएम इमरान खान से बात करे।

उन्होंने उस समय मीडिया को यह भी बताया था कि शारदा पीठ के मुद्दे को लेकर उन्होंने कश्मीरी पंडितों से मुलाकात भी की थी। अगर शारदा कॉरिडोर पर भारत-पाकिस्तान में बात बन जाती है तो यह भी करतारपुर कॉरीडोर की तरह से एक ऐतिहासिक कदम होगा। इससे दोनों देश एक बार फिर से एक-दूसरे के करीब आ जाएंगे।

Aditya Mishra

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