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ये आतंकियों के हमदर्द! यहां देखें मीडिया का गंदा खेल, आपका भी खून खौल उठेगा

बगदादी ने लोगों के बेरहमी से सिर तो कलम किए ही, उन्हें जलाकर, लोहे के पिंजरे में कैद करने के बाद पानी में डुबोकर, ऊंची इमारतों से फेंककर और बूचड़खानों में काट-काट कर भी मारा।

Vidushi Mishra
Published on: 30 Oct 2019 11:28 AM IST
ये आतंकियों के हमदर्द! यहां देखें मीडिया का गंदा खेल, आपका भी खून खौल उठेगा
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नई दिल्ली : खूूंखार आतंकी अबू बकर अल बगदादी के मारे जाने पर पूरी दुनिया ने राहत की सांस ली कि न तो इस्लामिक स्टेट का खात्मा होने जा रहा है और न ही अन्य अनेक जिहादी संगठनों का। अब इसमें दो बात नहीं हो सकती कि इस्लामिक स्टेट का सरगना अल बगदादी आधुनिक काल का सबसे घिनौना और खूंखार आतंकी था।

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बगदादी की करतूते...

बगदादी ने लोगों के बेरहमी से सिर तो कलम किए ही, उन्हें जलाकर, लोहे के पिंजरे में कैद करने के बाद पानी में डुबोकर, ऊंची इमारतों से फेंककर और बूचड़खानों में काट-काट कर भी मारा।

फिर इसी तरह उसने महिलाओं को यौन दासियों में तो तब्दील किया ही, उनकी नीलामी भी की और उनसे खुलेआम दुष्कर्म भी। उसकी बर्बरता के किस्से रोंगटे खड़े करने वाले थे, फिर भी दुनिया भर के तमाम देशों के युवक उसके संगठन में शामिल होने के लिए इराक-सीरिया चले आए। इनमें अच्छी-खासी संख्या उनकी थी जो पढ़े-लिखे और यूरोप-अमेरिका में सुविधा संपन्न जीवन जीने वाले थे।

इस्लामिक स्टेट में शामिल होने वालों में युवतियां

ऐसा माना जाता है कि इसकी एक वजह उन्हें यौन दासियां उपलब्ध कराना और साथ ही खिलाफत को फिर से कायम करने का सपना दिखाना था। आश्चर्यजनक रूप से इस्लामिक स्टेट में शामिल होने वालों में युवतियां भी थीं।

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आतंकी बगदादी की बर्बर विचारधारा से आकर्षित जो युवा इराक-सीरिया नहीं जा सके वे अपने देश में आतंकी गतिविधियों को अंजाम देने लगे। इसके चलते यूरोप, अमेरिका के साथ-साथ अन्य अनेक देशों में आतंकी हमले कर डर पैदा किया गया। बगदादी के उन्मादी आतंकियों की नृशंसता का शिकार इराक गए 39 भारतीय भी बने।

अब ये तो पता नहीं इस स्पष्टीकरण के जरिये क्या बताने की कोशिश की गई, लेकिन बगदादी के मारे जाने पर उसे खूंखार आतंकी बताने में अन्य अनेक पश्चिमी मीडिया संस्थानों ने भी परहेज किया। यह परहेज उन मीडिया संस्थानों की ओर से किया गया जो लिबरल या लेफ्ट लिबरल के तौर पर जाने जाते हैैं।

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बता दें कि लिबरल यानी उदारवादी, लेकिन आम जनता के लिए यह समझना कठिन है कि आखिर किसी बर्बर आतंकी को मजहबी विद्वान बताने वाले खुद को लिबरल या उदारवादी कैसे कह सकते हैैं?

असल में इन्हें कुदारवादी या ऐसे ही किसी अन्य शब्द से परिभाषित किया जाना बेहतर होगा। बेहतर यह भी होगा कि उस सोच-समझ की अंतिम सीढ़ी तक जाया जाए जिसके चलते बगदादी को मजहबी विद्वान बताया गया।

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बगदादी की मौत एक कायर की तरह हुई

बिना किसी संदेह के ऐसा नहीं हो सकता कि बगदादी को मजहबी विद्वान बताने वाले यह न जानते हों कि वह कितना घृणास्पद था। यह जानते हुए भी उन्होंने उसके प्रति नरमी दिखाई तो शायद अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप को नापसंद करने के कारण ही। संभवत: वे यह नहीं चाहते होंगे कि ट्रंप को बगदादी के मारे जाने का किसी तरह का राजनीतिक लाभ मिले।

यह तब और स्पष्ट हुआ जब विदेशी मीडिया में ही इस आशय का एक लेख आया कि ट्रंप का यह दावा सही नहीं कि बगदादी की मौत एक कायर की तरह हुई, क्योंकि उसने तो अमेरिकी सैनिकों की गिरफ्त में जाने के बजाय खुद को विस्फोट के जरिये उड़ाने का फैसला किया। इसके जरिये यही कहने की कोशिश की गई कि बगदादी ने बहादुरी दिखाई।

इस लेख की भी तीखी आलोचना

इसी में एक अमेरिकी थिंक टैैंक से जुड़े नीति विश्लेषक और स्तंभकार मैक्स बूट के इस लेख की भी तीखी आलोचना हुई। जब आलोचना ज्यादा तीखी हुई तब इस लेख की उस पंक्ति में हेरफेर किया गया और यह हास्यास्पद सफाई दी गई कि उससे यह प्रतीत हो रहा था कि बगदादी साहसी था।

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बगदादी के मरने से कोई फायदा नहीं

बता दें कि इन दिनों अमेरिकी मीडिया में ऐसे विचारों की भरमार है जिनके जरिये यह साबित करने की कोशिश की जा रही है कि ट्रंप को बगदादी के मरने से कोई फायदा नहीं मिलने वाला। यह आकलन एक बड़ी हद तक सही जान पड़ता है।

इसके साथ यह भी यह एक तथ्य है कि बगदादी मरा है, लेकिन उसकी विचारधारा नहीं। बावजूद इसके इसकी अनदेखी नहीं कर सकते कि ट्रंप के प्रति अपनी नापसंदगी प्रकट करने के लिए एक खूंखार आतंकी के प्रति नरमी बरती गई। उदारवादियों और वस्तुत: कुदारवादियों का यह व्यवहार अमेरिका तक ही सीमित नहीं है।

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