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आखिर क्या है डिटेंशन सेंटर और अमेरिका में क्यों है सबसे अधिक
नागरिकता संशोधन कानून के बाद देश के विभिन्न इलाकों में भडक़ी हिंसा के बीच अफवाह फैली कि अल्पसंख्यकों को डिटेंशन सेंटर में डालने की तैयारी है। पीएम मोदी ने डिटेंशन सेंटर की बात को पूरी तरह झूठ बताया तो विपक्ष ने उन पर हमला बोल दिया। विपक्ष ने पीएम पर झूठ बोलने का आरोप लगाया।
नई दिल्ली: देश में इन दिनों डिटेंशन सेंटर पर बड़ा विवाद छिड़ा हुआ है। नागरिकता संशोधन कानून के बाद देश के विभिन्न इलाकों में भडक़ी हिंसा के बीच अफवाह फैली कि अल्पसंख्यकों को डिटेंशन सेंटर में डालने की तैयारी है। पीएम मोदी ने डिटेंशन सेंटर की बात को पूरी तरह झूठ बताया तो विपक्ष ने उन पर हमला बोल दिया। विपक्ष ने पीएम पर झूठ बोलने का आरोप लगाया।
देश में डिटेंशन सेंटर को लेकर कई तरह की बातें कही जा रही हैं। कुछ मीडिया रिपोट्र्स के मुताबिक सिर्फ असम में एक डिटेंशन सेंटर है तो कई मीडिया रिपोट्र्स में बताया जा रहा है कि देश में कई डिटेंशन सेंटर हैं और कई बनाए जा रहे हैं। आज हम आपके लिए यह जानकारी लेकर आए हैं कि दुनिया के किस देश में सबसे ज्यादा डिटेंशन सेंटर हैं और वहां कैसे लोगों को रखा जाता है और उनके साथ कैसा व्यवहार किया जाता है।
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आखिर क्या है डिटेंशन सेंटर
डिटेंशन सेंटर में किसी देश में अवैध तरीके से दाखिल होने वाले लोगों को रखा जाता है। अगर कोई व्यक्ति किसी देश में बिना किसी वैध दस्तावेज के प्रवेश करता है और वहां की पुलिस उसे पकड़ लेती है तो उसे डिटेंशन सेंटर में रखा जाता है। चूंकि अवैध घुसपैठियों को जेल में नहीं रखा जा सकता। इसलिए उनके लिए डिटेंशन सेंटर बनाए जाते हैं और उन्हें वहीं रखने की व्यवस्था की जाती है। वहां ऐसे लोगों को नजरबंद करके उनके देश से बातचीत की जाती है और उनकी सुरक्षित वापसी की व्यवस्था होती है। दुनिया के कई देशों ने अपने यहां घुसपैठियों को रोकने के लिए डिटेंशन सेंटर बना रखा है।
घुसपैठियों पर अमेरिका सख्त
अब बात अमेरिका की। आपको यह जानकर हैरानी होगी दुनिया में सबसे ज्यादा डिटेंशन सेंटर अमेरिका में है। गार्जियन की एक रिपोर्ट में भी इस तथ्य की पुष्टि की गई है। इस रिपोर्ट के मुताबिक अमेरिकी डिटेंशन सेंटरों में बिना वैध दस्तावेज के दूसरे देशों से आए नागरिकों को रखा जाता है। घुसपैठियों को लेकर अमेरिकी प्रशासन काफी सख्त हैं और इन डिटेंशन सेंटरों में बच्चे, बूढ़े और औरतों सभी को रखा जाता है। गार्जियन की रिपोर्ट के मुताबिक इन डिटेंशन सेंटर में इनकी हालत खराब होती है।
अमेरिका के प्रति आकर्षण का कारण
पूरी दुनिया के लोगों में अमेरिका के प्रति अजीब सा आकर्षण होता है। अमेरिकी लोगों की जिंदगी का स्तर काफी ऊंचा होने और वहां पैसा कमाने की चाहत में पूरी दुनिया से लोग किसी तरह अमेरिका में दाखिल होना चाहते हैं। दक्षिणी अमेरिका के बॉर्डर इलाके से बड़े पैमाने पर लोग भागकर अमेरिका आ रहे हैं। हालत यह है कि इन इलाकों से गैंगवार, घरेलू हिंसा और गरीबी की वजह से हजारों लोग बिना वैध परिमट के अमेरिका में घुस जाते हैं।
अमेरिका ने ऐसे लोगों की घुसपैठ रोकने के लिए सख्त नीति बना रखी है। अमेरिका के इन इलाकों से करीब 52 हजार अवैध अप्रवासी जेलों, टेंटों और इस तरह के दूसरे डिटेंशन सेंटरों में रखे गए हैं। अमेरिकी प्रशासन इन घुसपैठियों की समस्या सुलझाने में जुटा हुआ है। वह इन लोगों को अमेरिका में खुला घूमने की छूट नहीं दे रहा क्योंकि उसे पता है कि एक बार यह छूट देने के बाद इन अवैध घुसपैठियों को निकालना मुश्किल हो जाएगा।
ट्रंप के आने के बाद बढ़े डिटेंशन सेंटर
वैसे अमेरिका में अवैध तौर पर घुसपैठ की समस्या नई नहीं है। काफी दिनों से लोग किसी तरह अमेरिका में घुसने की कोशिश में जुटे हुए हैं। इस गंभीर समस्या से निपटने के लिए ही यहां डिटेंशन सेंटर चलाए जा रहे हैं। घुसपैठ की समस्या अब अमेरिका के लिए ज्यादा गंभीर हो चुकी है। मेक्सिको से काफी संख्या में लोग अमेरिका में घुसपैठ कर रहे हैं और यही कारण है कि अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप ने चुनाव लड़ते समय ही इन घुसपैठियों को रोकने पर जोर दिया था।
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एक जानकारी के मुताबिक ट्रंप के राष्ट्रपति बनने के बाद देश में डिटेंशन सेंटरों की संख्या काफी बढ़ोतरी हुई है। ट्रंप ने इस मामले में सख्त रवैया अपना रखा है। उन्होंने कई बार कहा है कि अमेरिकी नागरिकता इतनी सस्ती नहीं है और हम देश के संसाधनों को घुसपैठियों के हाथ बर्बाद नहीं होने देंगे।
तमाम लोगों को बिताने पड़ते हैं बरसों
इन डिटेंशन सेंटरों में बंद लोग किसी गुनाह की सजा नहीं भुगत रहे होते हैं। उन्हें तो बस कानूनी कार्रवाई का इंतजार रहता है कि वो कानूनी तौर पर इस देश में रहने के लायक हैं या नहीं। ऐसी व्यवस्था को सिविल डिटेंशन कहा जाता है। वैसे उन अवैध घुसपैठियों के साथ ज्यादा सख्ती की जाती है जिनसे आम नागरिक को खतरा हो सकता है। कई बार ऐसा भी होता है कि इन डिटेंशन सेंटरों में रहने वाले लोगों को फैसले के इंतजार में बरसों तक बिताने पड़ जाते हैं।
नियम कायदों का नहीं होता पालन
डिटेंशन सेंटरों में रखे गए लोगों से मानवीय व्यवहार को लेकर तो बड़ी-बड़ी बातें की जाती हैं मगर सच्चाई यह है कि सही मायने में इनका पालन नहीं किया जाता। अमेरिकी डिटेंशन सेंटर में रहने वालों के लिए भी तमाम नियम कायदे बनाए गए हैं मगर यदि पड़ताल की जाए तो अधिकांश मामलों में इनका पालन नहीं किया जाता। डिटेंशन सेंटर में रहने वाले लोग प्रताडऩा के शिकार होते हैं और कई की हालत तक खराब हो जाती है। इनके रहने और खाने में हाईजीन और मेडिकल केयर का भी ध्यान नहीं दिया जाता। महिलाओं के साथ सेक्सुएल वॉयलेंस की खबरें भी आती रहती हैं।
टेक्सास में बना पहला डिटेंशन सेंटर
अमेरिका में पहला डिटेंशन सेंटर बेव्यू नाम से टेक्सास में बनाया गया था। 1970 के दौर में एक अमेरिकी डिटेंशन सेंटर में 3 हजार लोगों के रहने की व्यवस्था थी। बाद में घुसपैठ की समस्या बढऩे के साथ ही अमेरिका में घुसपैठियों के साथ बुरा बर्ताव किया जाने लगा। अमेरिका में इन घुसपैठियों पर इमिग्रेशन के अधिकारी, कस्टम इंफोर्समेंट और बॉर्डर पेट्रोल के कर्मचारी नजर रखते हैं। अमेरिका में 1979 के बाद डिटेंशन सेंटर की संख्या बढ़ी है क्योंकि इस दौरान अमेरिका में घुसपैठ बढ़ी है। एक रिपोर्ट के मुताबिक 1979 के बाद अमेरिका में घुसपैठियों की संख्या बीस गुना बढ़ी है और इस कारण अमेरिका ने इस मामले में सख्त रुख अपनाना शुरू कर दिया है।
अवैध अप्रवासी एक करोड़ से ऊपर
अमेरिका में डिटेंशन सेंटरों की संख्या बढऩे के पीछे एक बड़ा कारण वहां घुसपैठियों की बढ़ती संख्या ही है। एक रिपोर्ट के मुताबिक अमेरिका में 1970 में बिना दस्तावेज वाले अप्रवासियों की संख्या करीब 10 लाख थी, वहीं अब यह संख्या एक करोड़ से ऊपर पहुंच चुकी है। इसलिए अमेरिका इसे लेकर गंभीर हो गया है क्योंकि यह संख्या अमेरिका की कुल आबादी का तीन फीसदी हैं। अमेरिका ने 2007 के बाद नियमों के काफी सख्त कर दिया है। यही कारण है कि नियम सख्त होने के बाद बिना दस्तावेज के अमेरिका आने वाले अप्रवासियों की संख्या पहले की तुलना में कम हुई है।
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प्राइवेट कंपनियों की ले रहे मदद
अमेरिका में अवैध अप्रवासियों की बड़ी संख्या को देखते हुए डिटेंशन सेंटरों में प्राइवेट कंपनियों की मदद ली जा रही है। सरकार ने इसके लिए बजट देना शुरू कर दिया है। यही कारण है कि अमेरिका में प्राइवेट जेल और डिटेंशन सेंटर चलाने वाली कंपनियां खूब फल-फूल रही हैं। अमेरिकी राष्ट्रपति के चुनाव से पहले डोनाल्ड ट्रंप ने अमेरिका से 1 करोड़ 10 लाख अवैध अप्रवासियों को निकाल बाहर करने का वादा किया था। ट्रंप की जीत के बाद प्राइवेट जेल और डिटेंशन सेंटर चलाने वाली कंपनियों के शेयरों में जबरदस्त उछाल आया। आज हालत यह है कि डिटेंशन सेंटर चलाने वाली प्राइवेट कंपनियां अरबों रुपए कमा रही हैं।
कंपनियां कमा रहीं जबर्दस्त फायदा
कई कंपनियों ने तो 2018 में 25 फीसदी तक मुनाफा कमाया। हालत यह है कि अमेरिका में अवैध घुसपैठ की संख्या बढऩे के साथ इस समस्या के निदान के लिए डिटेंशन सेंटर और दूसरी व्यवस्था प्रदान करने वाली कंपनियों का बिलियन डॉलर्स का उद्योग खड़ा हो गया है। ये प्राइवेट कंपनियां अवैध अप्रवासियों के इलेक्ट्रॉनिक सर्विलांस से लेकर उनके फोन की जानकारी और उनकी दिनचर्या तक का रिकॉर्ड रखती हैं। इलेक्ट्रॉनिक सर्विलांस रखने वाली एक कंपनी के मुताबिक फिलहाल 98,373 लोगों की इलेक्ट्रॉनिक मॉनिटरिंग हो रही है। इस मॉनिटरिंग के लिए अमेरिकी सरकार इन कंपनियों को पैसे देती है।