Basant Ritu Par Kavita: जब बसन्त भी पगलाया, पढ़ें ये खूबसूरत कविता
Basant Ritu Par Kavita: हो जाने दो ना... । चित्त को उद्वेलित आज। देखो ! वसन्त, निकुञ्ज में पगलाया है। जगत को पागल बनाता है ये ऋतुराज। पर यहाँ युगल की छवि देखकर सखियों का आनन्द देखकर बसन्त भी मोहित हो गया।
Basant Ritu Par Kavita: रंग दो ना बसन्त में अपने "मन" को आज।
हो जाने दो ना... । चित्त को उद्वेलित आज। देखो ! वसन्त, निकुञ्ज में पगलाया है। जगत को पागल बनाता है ये ऋतुराज। पर यहाँ युगल की छवि देखकर सखियों का आनन्द देखकर बसन्त भी मोहित हो गया।
पर अभी ऋतु तो बसन्त नही है। आप पूछ सकते हैं मुझ से ।
करना ही है तो "शरद ऋतु" का वर्णन कीजिये महाराज !
ऐसा आप सोच रहे हैं., तो रुकिये !
निकुञ्ज में यहाँ की तरह ऋतुएँ नही आतीं। वहाँ तो सखियों की जब इच्छा हो। तब वही ऋतु उपस्थित है सेवा के लिये ।
पर सखियों का अपना मन तो है ही नही.। "मन" तो केवल युगल का है। इच्छा युगल की ही है। और युगल की इच्छा ही यहाँ सखियों की इच्छा होती हैं। फिर युगल की इच्छानुसार ही वो उत्सव का आयोजन करती रहती हैं। उद्देश्य - मात्र "युगल" को सुख पहुँचाना है ।
"युगल प्रेम" ही सखियों के प्रेम का आधार है। और इनका प्रेम, श्रृंगार रस से भरपूर है। इसलिये तो इस प्रेम का रसास्वादन करने के लिये "सखी भाव" की आवश्यकता बताई गयी है। सखी भाव यानि देहभाव से परे जाना।”मैं शरीर हूँ" इस बात को धीरे-धीरे कम करना और चिन्मय सखी भाव से भावित होकर इन लीलाओं का ध्यान करना। चिन्तन करना। उसी भाव राज्य में अपने आपको पहुँचाना। किसी कोने में खड़े होकर निकुञ्ज में। युगल की इन लीलाओं को देखना ।
बसन्त का अर्थ इतना ही है कि चित्त में उत्कण्ठा का उदय हो जाये।मन तड़फ़ उठे कि कोई रंग दे बसन्ती रंग में ।
"कोई" और नही। हमारे सनातन मीत युगल रंग दें ! आहा !
सारा खेल मन का ही तो है कि नही ? करो भावना युगल के नित्य निकुञ्ज की ।
चलिये चलिये। इन बेकार की बातों में मत उलझिये। चलिये निकुञ्ज में आज बहुत कुछ हो रहा है ।
देखो सखी ! आज बसन्त लुभाये
यमुना जी की सेवा स्वीकार करके युगल सरकार आगे वन की शोभा देखते हुए चल रहे हैं... सखियाँ सब आनन्दित हैं ।
चलते हुये "श्रीजी" की नुपुर बज रही है।उन नुपुर की ध्वनि श्रीधाम वृन्दावन में गूँज रही है। पक्षी कलरव कर रहे थे। वो शान्त हो गए हैं। नुपुर की ध्वनि ने उन्हें भी चकित कर दिया है। कोयल कितना बोल रही थी। पर नुपुर की ध्वनि सुनते ही वो भी चुप हो गयी और स्वयं शान्त होकर सुनने लगी थी। नुपुर की मधुर ध्वनि से वनराज श्रीधाम वृन्दावन एकाएक बदल रहा था ।
सखी ! कितना अच्छा हो कि इसी समय बसन्त ऋतु यहाँ छा जाए ।
रंगदेवी सखी ने ललिता जु से कहा ।
बस... "सखियन के उर ऐसी आई"कामना उठी सखियों के उर में - बसन्त तो सेवा के लिये तैयार ही था। छा गया पूरे श्रीधाम वृन्दावन में बसन्त ।
श्रीजी के अंग का रंग जहाँ सुवर्ण के समान है।पीला वही प्रभा पूरे वन में दिखाई देने लगा। पीत प्रभा से कुञ्ज निकुञ्ज जगमगा उठा। पक्षी चकित भाव से देखने लगे थे कि - ये क्या हुआ !
सखियों के मन में आनन्द की लहरें दौड़ पड़ीं। व्याकुलता सखियों के मन में बढ़ गयी थी "बसन्त कुञ्ज" में युगल के दर्शन की ।
पपीहा, तोता, मैना ये उड़-उड़ कर युगल के आगे आने लगे थे ।
सामने देखा युगल सरकार ने
दिव्य बसन्त कुञ्ज है।नाना प्रकार के फूल उनमें खिले हुए हैं। पीले फूलों की भरमार है।आमों में बौर आने लगे हैं। कोयल कूकने में मस्त हो रही है। युगल के मन में रस की सृष्टि प्रारम्भ हो गयी थी।
बसन्त कुञ्ज में एक "वासन्ती सिहांसन" है।वहीं युगल सरकार को विराजमान कराया सखियों ने और अति आनन्दित होती हुयी सेवा में जुट गयीं ।