नीतीश के सामने इन चुनौतियों का अंबार, नई सरकार में भाजपा पूरी तरह हावी
भाजपा इस बार बड़े भाई की भूमिका में है और नीतीश के मंत्रिमंडल में इसकी छाप भी दिखी है। भाजपा के कोटे से पहली बार तारकेश्वर प्रसाद और रेणु देवी दो उपमुख्यमंत्री होंगे।
नई दिल्ली: बिहार की कमान ने एक बार फिर संभालने वाले मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के सामने इस बार चुनौतियों का अंबार होगा। हालांकि नीतीश कुमार को सियासत का माहिर खिलाड़ी माना जाता है मगर इस बार उनकी नकेल भाजपा के हाथों में है क्योंकि बिहार विधानसभा चुनाव के नतीजों में भाजपा जदयू से काफी मजबूत बनकर उभरी है।
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भाजपा इस बार बड़े भाई की भूमिका में है और नीतीश के मंत्रिमंडल में इसकी छाप भी दिखी है। भाजपा के कोटे से पहली बार तारकेश्वर प्रसाद और रेणु देवी दो उपमुख्यमंत्री होंगे। इसके साथ ही विधानसभा अध्यक्ष की कुर्सी भी भाजपा के हाथों में ही होगी।
नीतीश मंत्रिमंडल में भी दिखी झलक
सोमवार को हुए शपथग्रहण समारोह में मुख्यमंत्री के रूप में नीतीश कुमार को शपथ दिलाने के साथ ही 14 मंत्रियों को भी शपथ दिलाई गई। नई कैबिनेट में जदयू के पांच, भाजपा के सात, हिंदुस्तानी अवाम मोर्चा (हम) व विकासशील इंसान पार्टी (वीआईपी) के एक-एक सदस्य को मंत्री के तौर पर शामिल किया गया है।
नीतीश मंत्रिमंडल में भाजपा के बढ़ते कद का नजारा देखने के लिए पार्टी के अध्यक्ष जगत प्रकाश नड्डा और पार्टी के चाणक्य माने जाने वाले केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह भी मौजूद थे। नीतीश कैबिनेट के स्वरूप से ही स्पष्ट है कि इस बार बिहार सरकार को चलाना नीतीश के लिए काफी चुनौतीपूर्ण होगा।
मिलकर सरकार चलाने का नीतीश का वादा
दो दशक से बिहार की राजनीति में छाए रहने वाले नीतीश ने मुख्यमंत्री के रूप में शपथ लेने के बाद एनडीए को बहुमत देने के लिए राज्य की जनता के प्रति एक बार फिर आभार जताया है।
उन्होंने कहा कि जनादेश के बल पर एनडीए एक बार फिर राज्य में सरकार बनाने में कामयाब हुआ है। हम मिलकर काम करेंगे और बिहार में विकास कार्यक्रमों के जरिए लोगों की सेवा करेंगे।
दो दशक से बिहार में छाए हुए हैं नीतीश
20 साल पहले नीतीश कुमार ने पहली बार मुख्यमंत्री पद की शपथ ली थी मगर उस समय वे केवल 7 दिनों तक ही मुख्यमंत्री रह सके थे।
उस समय नीतीश कुमार को सात दिनों का सीएम बताकर खूब मजाक भी उड़ाया गया था मगर वही नीतीश कुमार दो दशक से बिहार की राजनीति के चाणक्य बने हुए हैं और वह जिसके खेमे में होते हैं, जीत उसी को हासिल होती है।
2015 के विधानसभा चुनाव के दौरान नीतीश कुमार ने राजद और कांग्रेस के साथ गठबंधन किया था और चुनाव जीतने में कामयाब रहे थे। हालांकि बाद में उन्होंने यह गठबंधन तोड़ कर एक बार फिर एनडीए में लौटने का फैसला किया और अपनी मुख्यमंत्री की कुर्सी बचाने में भी कामयाबी हासिल की।
चाहकर भी सुशील को साथ नहीं ले सके नीतीश
नीतीश की कैबिनेट से साफ है कि भाजपा इस बार अपना आधार और मजबूत बनाने में जुटी हुई है। बिहार भाजपा में सुशील मोदी को नीतीश कुमार का सबसे करीबी माना जाता रहा है मगर नीतीश इस बार चाह कर भी डिप्टी सीएम के रूप में सुशील मोदी की ताजपोशी नहीं करा सके।
एक डिप्टी सीएम की जगह भाजपा ने दो-दो डिप्टी सीएम बनवाकर नीतीश के हाथ और बांधने की कोशिश की है। दरअसल भाजपा अपना आधार बढ़ाने में जुटी हुई है और यही कारण है कि वैश्य और अति पिछड़ा वर्ग से जुड़े पार्टी के दो वरिष्ठ विधायकों को इस बार डिप्टी सीएम बनाया गया है।
अब विभागों के बंटवारे पर सबकी नजर
दो डिप्टी सीएम के साथ ही इस बार बिहार विधानसभा का अध्यक्ष भी भाजपा से ही होगा। सियासी जानकारों का कहना है कि पार्टी के वरिष्ठ नेता और पटना साहिब से विधायक नंदकिशोर यादव को विधानसभा अध्यक्ष बनाया जाएगा। अब हर किसी की नजर नीतीश मंत्रिमंडल में शामिल मंत्रियों के विभागों के बंटवारे पर टिकी हुई है।
माना जा रहा है कि नीतीश सरकार के अहम विभाग भी भाजपा के ही हाथों में होंगे। सियासी जानकारों का कहना है कि भाजपा ने बिहार में सियासी आत्मनिर्भरता की ओर मजबूती से कदम बढ़ा दिया है। भाजपा की नजर 2025 पर टिकी है। इसीलिए पार्टी खुद को मजबूत बनाने में जुट गई है।
ताजपोशी तो हुई मगर फैसले लेना आसान नहीं
बिहार विधानसभा के चुनाव के नतीजों में इस बार जेडीयू सिर्फ 43 सीटों पर चुनाव जीतने में कामयाब हो सकी है जबकि भाजपा ने 74 सीटों पर विजय हासिल करके जदयू को काफी पीछे छोड़ दिया है।
हालांकि ज्यादा विधायक होने के बावजूद भाजपा ने अपने वादे को निभाते हुए सीएम के रूप में नीतीश कुमार की ही ताजपोशी कराई है। जानकारों के मुताबिक महाराष्ट्र की घटना से सबक लेते हुए भाजपा किसी प्रकार का जोखिम नहीं मोल लेना चाहती थी। यही कारण है कि मुख्यमंत्री के रूप में नीतीश कुमार की ताजपोशी तो हो गई मगर इस बार नीतीश कुमार के लिए फैसले लेना इतना आसान नहीं होगा।
दो-दो डिप्टी सीएम बनाकर बांधे हाथ
जानकारों के मुताबिक इस बार भाजपा ने व्यापक बदलाव की पटकथा तैयार की है और इसके लिए केंद्रीय स्तर पर भी काफी मंथन किया गया। सुशील मोदी को मंत्रिमंडल से अलग रखने और पार्टी के दो-दो डिप्टी सीएम बनाने का फैसला भी इसी कारण लिया गया है।
पिछले डेढ़ दशक के दौरान बिहार में नीतीश सुशील मोदी की जोड़ी काम करती रही है और नीतीश इस बार भी सुशील मोदी को ही डिप्टी सीएम बनाना चाहते थे मगर भाजपा ने इस बार इस जोड़ी को तोड़ दिया है। दरअसल भाजपा इस बार खुद को जदयू की बी टीम के रूप में नहीं दिखाना चाहती। इसी कारण सुशील मोदी को राज्य की सियासत से बाहर कर केंद्र में जिम्मेदारी देने का फैसला किया गया है।
चिराग ने कसा नीतीश पर तंज
लोक जनशक्ति पार्टी के अध्यक्ष चिराग पासवान ने नीतीश कुमार को मुख्यमंत्री बनने पर बधाई तो दी है मगर उसके साथ ही वह तंज करने से भी नहीं चूके। उन्होंने ट्वीट करते हुए कहा कि मुझे उम्मीद है कि आप एनडीए के ही मुख्यमंत्री बने रहेंगे।
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दरअसल चिराग का इशारा 2015 की ओर था जब नीतीश ने राजद और कांग्रेस के साथ मिलकर चुनाव जीता था, लेकिन बाद में उन्होंने दोबारा भाजपा से हाथ मिला लिया था। चुनाव प्रचार के दौरान भी चिराग नीतीश पर लगातार हमले करते रहे हैं। उन्होंने यह भी कहा था कि चुनाव के बाद नीतीश किसी भी समय राजद के साथ हाथ मिलाकर भाजपा को धोखा दे सकते हैं।
रिपोर्ट- अंशुमान तिवारी
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