लोजपा ने मुकाबले को बनाया दिलचस्प, एक तीर से दो निशाने साधने की कोशिश
मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के खिलाफ ताल ठोक कर एक ओर चिराग सरकार विरोधी मतों को लोजपा के पक्ष में गोलबंद करना चाहते हैं तो दूसरी ओर वे इन सीटों पर भाजपा समर्थकों का मत लोजपा के पक्ष में गिराने की कोशिश में भी जुटे हुए हैं। अब देखने वाली बात यह होगी कि लोजपा को इस मुहिम में कहां तक कामयाबी हासिल होती है।
नई दिल्ली: बिहार के विधानसभा चुनाव में इस बार लोक जनशक्ति पार्टी (लोजपा) ने दिलचस्प स्थिति पैदा कर दी है। पार्टी पहली बार अकेले अपने दम पर चुनाव लड़ने के लिए मैदान में उतरी है। वह केंद्र में एनडीए का हिस्सा भी है मगर बिहार में एनडीए के दूसरे घटक जदयू के खिलाफ ताल ठोकती दिख रही है। सियासी जानकारों का कहना है कि लोजपा एक तीर से दो निशाने साधने की कोशिश में जुटी हुई है।
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मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के खिलाफ ताल ठोक कर एक ओर चिराग सरकार विरोधी मतों को लोजपा के पक्ष में गोलबंद करना चाहते हैं तो दूसरी ओर वे इन सीटों पर भाजपा समर्थकों का मत लोजपा के पक्ष में गिराने की कोशिश में भी जुटे हुए हैं। अब देखने वाली बात यह होगी कि लोजपा को इस मुहिम में कहां तक कामयाबी हासिल होती है।
भाजपा मतों की गोलबंदी की कोशिश
जदयू ने 2015 में पिछला विधानसभा चुनाव राजद के साथ गठबंधन करके लड़ा था। उस चुनाव के दौरान कई सीटें ऐसी थीं जहां पर भाजपा ने काफी मजबूती से चुनाव लड़ा था मगर उसे जदयू से पराजय का मुंह देखना पड़ा। इसका मतलब साफ है कि ऐसी सीटों पर भी भाजपा का समर्थन करने वाले वोटों की अच्छी खासी संख्या है।
लोजपा मुखिया चिराग पासवान ऐसे मतों को लोजपा के पक्ष में हासिल करने की कोशिश में जुटे हुए हैं। उन्होंने जदयू की सीटों पर लोजपा प्रत्याशियों को उतारने की घोषणा पहले ही कर रखी है। अगर चिराग भाजपा समर्थक मतों को लोजपा के पक्ष में गोलबंद करने में कामयाब रहे तो जदयू के लिए मुश्किलें खड़ी हो सकती हैं।
जदयू के लिए पैदा हो सकती है मुश्किल
सियासी जानकारों का मानना है कि लोजपा की इस रणनीति से जदयू के कोटे वाली सीटों पर मुकाबला त्रिकोणीय होने के आसार दिख रहे हैं। यदि विपक्षी महागठबंधन के अलावा चुनाव मैदान में कोई और दमदार प्रत्याशी भी हुआ तो मुकाबला चतुष्कोणीय भी हो सकता है।
भाजपा समर्थक मतदाताओं का समर्थन हासिल करके चिराग नीतीश के लिए मुश्किलें पेश कर सकते हैं। वे नीतीश की सरकार पर लगातार हमलावर रुख अपनाते रहे हैं और ऐसे में सरकार विरोधी मतों का ध्रुवीकरण भी लोजपा के पक्ष में हो सकता है। ऐसी स्थिति बनने पर लोजपा कड़ी चुनौती पेश करती हुई नजर आएगी।
भाजपा की रोक के बावजूद मोदी का बखान
हालांकि भाजपा की ओर से लोजपा को पीएम मोदी के नाम के इस्तेमाल से रोका गया है, लेकिन लोजपा लगातार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उनकी सरकार की उपलब्धियों का बखान करने में जुटी हुई है। लोजपा चुनावी माहौल को इस तरह का बनाने में जुटी हुई है ताकि वह खुद को भाजपा के साथ खड़ा दिखा सके। इसीलिए लोजपा मुखिया चिराग पासवान ने बयान दिया है कि चुनाव के बाद वे भाजपा के साथ मिलकर सरकार बनाएंगे। लोजपा के दूसरे नेता भी लगातार इस बात पर जोर दे रहे हैं कि उनका भाजपा के साथ कोई मतभेद नहीं है। लेजपा नेता इस बात की कोशिश में जुटे हुए हैं कि भाजपा के साथ रिश्तो में किसी प्रकार की भी खटास न आए।
नीतीश पर पहले ही हमलावर थे चिराग
चुनाव से काफी पहले से ही लोजपा प्रमुख चिराग पासवान ने जिस तरह मुख्यमंत्री नीतीश कुमार पर हमला करना शुरू कर दिया था, उसे देखकर लगता है कि उन्होंने चुनाव को लेकर अपनी रणनीति पहले ही तय कर ली थी।
चुनाव के संबंध में अंतिम फैसला लेने से काफी पहले ही उन्होंने इस बात की घोषणा कर दी थी कि यदि सम्मानजनक समझौता नहीं हुआ तो लोजपा 143 विधानसभा सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारेगी।
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इससे साफ है कि उन्होंने पहले ही जदयू कोटे की सीटों पर उम्मीदवार उतारने का फैसला कर लिया था।
अब उन्होंने इस फैसले पर अमल किया है। देखने वाली बात यह होगी कि वह जदयू को चुनौती पेश करने में कहां तक कामयाब हो पाते हैं।
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