बिहार विस चुनावः युवा शक्ति मैदान में, कोई विरासत संभालने तो कोई बचाने को उतरा
बिहार में जहां ज्यादातर पुराने नेताओं का सियासी दौर खत्म हो गया है या ढलान पर आ गया है। रामविलास पासवान का निधन हो चुका है तो लालू यादव, शरद यादव जीतन राम मांझी, पप्पू यादव जैसे नेताओं के लिए युवा मतदाताओं में कोई खास आकर्षण नहीं रह गया है।
मनीष श्रीवास्तव
पटना: बिहार विधानसभा चुनावों में पहले चरण के लिए सियासी घमासान शुरू हो गया है। सियासी पारा दिन-ब-दिन चढ़ रहा है। बिहार का यह चुनाव जहां एक ओर यह तय करेगा कि अगले पांच साल बिहार में किसकी सरकार होगी तो वहीं यह चुनाव बिहार की भविष्य की राजनीति की नींव भी साबित होगा।
बिहार में जहां ज्यादातर पुराने नेताओं का सियासी दौर खत्म हो गया है या ढलान पर आ गया है। रामविलास पासवान का निधन हो चुका है तो लालू यादव, शरद यादव जीतन राम मांझी, पप्पू यादव जैसे नेताओं के लिए युवा मतदाताओं में कोई खास आकर्षण नहीं रह गया है। कुल मिला कर बिहार की राजनीति में युवा शक्ति अब दस्तक दे रही है। इसमे कुछ युवा विरासत संभालने आये है तो कुछ विरासत बनाने आये है।
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बिहार की राजनीति में नई पीढ़ी ने अपनी सियासी पारी का आगाज कर दिया है
बिहार विधानसभा चुनाव के जरिये बिहार की राजनीति में नई पीढ़ी ने अपनी सियासी पारी का आगाज कर दिया है। यह चुनाव इन नए चेहरों को तराशने वाला साबित होगा। राजद मुखिया लालू यादव के पुत्र तेजस्वी यादव, राम विलास पासवान की लोजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष चिराग पासवान और पूर्व जदयू नेता विनोद चैधरी की बेटी प्लूरल्स पार्टी की पुष्पम प्रिया चैधरी जहां विरासत की राजनीति कर रहे है तो वहीं वाम नेता कन्हैया कुमार और वीआईपी पार्टी के मुकेश साहनी, आरएलएसपी के उपेंद्र कुशवाहा एक नई पहचान के साथ मैदान में है।
विरासत की राजनीति कर रहे इन नई पीढ़ी के नेताओं में महागठबंधन का नेतृत्व कर रहे तेजस्वी
विरासत की राजनीति कर रहे इन नई पीढ़ी के नेताओं में महागठबंधन का नेतृत्व कर रहे लालू के पुत्र तेजस्वी के संबंध में यह आम धारणा है कि उनका पूरा रिमोट लालू के हाथ में ही रहना है। हालांकि तेजस्वी इस इमेज को तोड़ने की भरसक कोशिश कर रहे है और इसके लिए राजद के पोस्टरों में केवल वही ही नजर आ रहे है। इसी तरह राम विलास पासवान के पुत्र चिराग पासवान को उनके पिता के निधन से सहानुभूति मिल सकती है। लेकिन भाजपा का समर्थन और जदयू का विरोध उन्हे वोटकटवा की श्रेणी में खड़ा कर रहा है। इसी क्रम में एक नाम जदयू के नेता रहे विनोद चैधरी की बेटी पुष्पम प्रिया का है। पुष्पम प्रिया ने अपनी नई प्लूरल्स पार्टी का गठन किया है।
बीते साल नवंबर माह में उन्होंने हिंदी और अंग्रेजी अखबारों के पहले पन्ने पर फुल पेज विज्ञापन देकर खुद को मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित किया था। विदेशों में उच्चशिक्षा प्राप्त करने वाली पुष्पम प्रिया गांधीवादी विचारधारा को मानने और किसान हितों की बात करने वाली है। उनका दावा है कि वह अगले 05 वर्षों में बिहार को देश का सबसे विकासशील राज्य तथा 10 सालों में यूरोप के कई देशों के बराबर ला कर खड़ा कर देंगी।
बिहार की राजनीति में कुछ ऐसे युवाओं ने भी दस्तक दी है
बिहार की राजनीति में कुछ ऐसे युवाओं ने भी दस्तक दी है जिनके पास विरासत तो नहीं है लेकिन बावजूद इसके अपनी पहचान बनाने में कामयाब है। ऐसा ही एक नाम विकासशील इनसान पार्टी के मुकेश साहनी का है। निषाद समुदाय के वोटों पर नजर रखने वाले मुकेश वैसे तो मुंबई में कारोबार करते है लेकिन राजनीति में भी बराबर सक्रिय है। मुकेश पहले एनडीए के साथ थे लेकिन पिछला लोकसभा चुनाव महागठबंधन के साथ लड़ा था। मौजूदा बिहार चुनाव में वह फिर एनडीए के साथ है और भाजपा ने उनकी पार्टी को अपने कोटे में से 11 सीटें दी है।
CPI नेता कन्हैया कुमार ने पिछले लोकसभा चुनाव से अपनी चुनावी राजनीति की शुरूआत की थी
इसी क्रम में छात्र राजनीति तथा मोदी विरोध की राजनीति कर चर्चित हुए सीपीआई नेता कन्हैया कुमार ने पिछले लोकसभा चुनाव से अपनी चुनावी राजनीति की शुरूआत की थी और बेगुसराय से चुनाव लड़े थे लेकिन यहां सफलता नहीं मिल पाई थी। कन्हैया एक बहुत अच्छे वक्ता है लेकिन अभी सियासी तौर पर अनुभवी नहीं हो पाए है। उनकी पार्टी ने तेजस्वी यादव की राजद के साथ गठबंधन करके चुनाव से पहले ही कन्हैया का सियासी रूतबा तेजस्वी से कम कर दिया है।
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बिहार की राजनीति में उपेन्द्र कुशवाहा भी अपने सजातीय वोटों के कारण काफी असर वाले नेता माने जा रहे है। उपेन्द्र की पार्टी रालोसपा ने मायावती की बसपा, औवैसी की एआईएमआईएम और ओमप्रकाश राजभर की भासपा जैसी पार्टियों को साथ लेकर गठबंधन बनाया है। हालांकि इससे पहले वह महागठबंधन में थे लेकिन वहां खटपट होने पर अलग हो गए।
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