Bihar Hooch Deaths: आखिर बिहार में बार-बार क्यों होती है जहरीली शराब से मौतें, जानिए बड़ी वजह

Bihar Hooch Deaths: शराबंबदी के बावजूद राज्य के 15 प्रतिशत लोग मदिरा का सेवन कर रहे हैं। तो ऐसे में सवाल खड़ा होता है कि लोगों के पास शराब पहुंच कहां से रही है।

Update:2023-04-17 13:04 IST
जहरीली शराब से मौतें (photo: social media )

Bihar Hooch Deaths: बिहार में शराबबंदी कानून के लागू हुए सात साल हो चुके हैं। अप्रैल 2016 में सीएम नीतीश कुमार ने राज्य को ड्राइ स्टेट घोषित कर दिया था। जिसके बाद से बिहार में शराब बेचना, पीना और भंडार करना अपराध की श्रेणी में आ गया। शराबबंदी के सख्त कानून के कारण बिहार की जेलें कैदियों से भर चुकी हैं और अदालतों में मुकदमों का अंबार लगा हुआ है। जिसे लेकर कोर्ट भी तल्ख टिप्पणी कर चुका है। लेकिन इसके बावजूद राज्य में जमकर शराब का अवैध कारोबार हो रहा है।

नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे की पिछले दिनों आई रिपोर्ट में बिहार में शराबबंदी पर बड़ा खुलासा हुआ था। रिपोर्ट में बताया गया था कि शराबंबदी के बावजूद राज्य के 15 प्रतिशत लोग मदिरा का सेवन कर रहे हैं। तो ऐसे में सवाल खड़ा होता है कि लोगों के पास शराब पहुंच कहां से रही है। कई मीडिया रिपोर्ट्स बिहार में शराबबंदी की पोल खोल चुके हैं। राज्य में धड़ल्ले से शराब बनाई जा रही है और बेची जा रही है।

शराबबंदी के कारण ब्लैक में शराब बेचने वालों की तादाद काफी अधिक हो गई है। कई बार ये लोग असली शराब के नाम पर नकली दारू सप्लाई कर लोगों की जिंदगी तक से खेल जाते हैं। राज्य में पुलिस और शराब तस्करों का एक पूरा नेटवर्क काम कर रहा है, जिसके कारण इस खेल में शामिल बड़ी मछलियों पर कोई कार्रवाई नहीं हो पाती है, जिसका कारण शराब का धंधा बीते साल सालों से बदस्तूर जारी है।

जहरीली शराब से क्यों होती हैं मौतें

शराबबंदी के बाद से बिहार में शराब ब्लैक में मिलने लगी है। जिसकी कीमत काफी ज्यादा होती है। गरीब और पिछड़े तबके के लोग उस कीमत पर शराब खरीदने की हैसियत नहीं रखते हैं। लिहाजा वो देसी तरीके से बनाई गई शराब का सेवन करते हैं और यहीं से उनके जीवन पर खतरा मंडराना शुरू हो जाता है। क्योंकि ऐसी शराब बनाने वाले अधिकांश लोग अपरिपक्व होते हैं, उनके पास इसका कोई ज्ञान या अनुभव नहीं होता। जिसके कारण वे शराब को और नशीला बनाने के चक्कर में उसमें तय मात्रा से अधिक केमिकल का इस्तेमाल कर लेते हैं।

कच्ची शराब को नशीला बनाने के लिए इसमें यूरिया, ऑक्सीटॉसिन और मेथेनॉल को मिलाया जाता है। इस दौरान इसकी मात्रा कम ज्यादा होने से यह एथिल एल्कोहल से मेथिल एल्कोहल में तब्दील हो जाती है। लेकिन अज्ञानता के कारण उन्हें इसकी भनक तक नहीं लगती। मेथिल एल्कोहल का रूप लेते ही शराब एक जहरीली शराब का रूप ले लेती है। इसके सेवन से शरीर के अंदर फार्मिक एसिड बनता है। जो सीधा लोगों के दिमाग पर असर डालता है। जिसके कारण लोगों को कई बार दिखना बंद हो जाता है। अधिक सेवन की स्थिति में उनकी जान तक चली जाती है।

बिहार सरकार पर आंकड़े छिपाने के आरोप

बिहार में 2016 से लेकर अब तक जहरीली शराब से होने वाली मौत की कई बड़ी घटनाएं हो चुकी हैं। जिसमें सैंकड़ों लोगों ने जान गंवाई है। लेकिन पिछले साल दिसंबर में लोकसभा में केंद्रीय गृह राज्य मंत्री नित्यानंद राय ने बीएसपी सांसद दानिश अली के प्रश्न के जवाब में जहरीली शराब से होने वाली मौतों का आंकड़ा पेश किया, तो लोग चौंक गए। सूची में बिहार टॉप 5 में भी शामिल नहीं था। एनआरसीबी के आंकड़ों के मुताबिक, बिहार में साल 2016 में जहरीली शराब से केवल 6 मौतें हुई थीं। लेकिन रिपोर्ट्स गवाह हैं कि उसी साल गोपलागंज के खजूरबानी में इसके कारण 19 लोगों की जान चली गई थी। एनसीआरबी के आंकड़े के मुताबिक, 2016 से 2022 के बीच बिहार में जहरीली शराब से केवल 23 मौतें हुईं।

मगर हकीकत इसके ठीक उलट है। इस दौरान बिहार में जहरीली शराब से मौत के कम से कम 20 मामले सामने आ चुके हैं और इनमें लगभगग 200 लोग अपनी जान गंवा चुके हैं। अकेले साल 2021 में 106 मौतें बिहार में जहरीली शराब के कारण हुई थी। जबकि एनसीआरबी के आंकड़े के मुताबिक, केवल दो मौतें हुई थीं। पिछले साल यानी सारण में 70 से अधिक मौतें जहरीली शराब के कारण हुईं। दरअसल, नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो राज्यों से आंकड़े मंगवाता है और फिर उसे जारी करता है। यही वजह है कि बिहार सरकार पर आरोप लगते रहे हैं कि उसने असल आंकड़े कभी एनसीआरबी को दिए ही नहीं।

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