दो दिग्गज एक साथ: आनंद कुमार और आरके श्रीवास्तव, असाधारण व्यक्तित्व के धनी
एक ही फ्रेम में नजर आये आनंद कुमार और आरके श्रीवास्तव, आरके श्रीवास्तव के कंधे पर दोस्ताना अंदाज में हाथ रखे दिखे आनंद कुमार । फोटो में ये दोनों बिहार के मशहूर शिक्षक एक दुसरे के साथ दोस्ताना अंदाज में नजर आ रहे हैं।
बिहार: दुनियाभर में कोरोना (corona) का असर अभी भी बना हुआ है। अभी भी लोग इस खतरनाक वायरस की चपेट में आ रहे हैं। हालांकि, भारत में सरकार ने लोगों की सुविधा के लिए पूरी तरह से अनलॉक की प्रक्रिया की शुरू कर दी है। सभी अपने-अपने काम पर लौट आए हैं। वहीं, सेलेब्स से जुड़े कई कहानी-किस्से, वीडियोज और फोटोज सोशल मीडिया पर वायरल हो रहे हैं। इसी बीच 'सुपर-30' फेम 'आनंद कुमार' और 'मैथेमैटिक्स गुरू' फेम 'आरके श्रीवास्तव' की ऐसी फोटोज सोशल मीडिया पर वायरल हो रही है, जो शायद ही किसी ने देखी होगी।
दो दिग्गज शिक्षक एक साथ आये नजर
इस फोटो में एक ही फ्रेम में नजर आये आनंद कुमार और आरके श्रीवास्तव, आरके श्रीवास्तव के कंधे पर दोस्ताना अंदाज में हाथ रखे दिखे आनंद कुमार । फोटो में ये दोनों बिहार के मशहूर शिक्षक एक दुसरे के साथ दोस्ताना अंदाज में नजर आ रहे हैं। आनंद कुमार की तरह ही गरीब परिवार में जन्में बिक्रमगंज रोहतास के आरके श्रीवास्तव का जीवन काफी संघर्ष से भरा रहा। जिससे लड़ते हुए उन्होंने अपनी पढ़ाई पूरी की। लेकिन, टीबी की बीमारी के कारण आईआईटी की प्रवेश परक्षा नहीं दे पाए। बाद में ऑटो चलने से होने वाले इनकम से परिवार का भरण-पोषण होने लगा।
आरके श्रीवास्तव के शैक्षणिक कार्यशैली की प्रशंसा राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद भी कर चुके हैं। आरके श्रीवास्तव को उनके उज्वलल भविष्य के लिए आशीर्वाद भी दे चुके हैं। आरके श्रीवास्तव का जन्म बिहार के रोहतास जिले के बिक्रमगंज में एक गरीब परिवार में हुआ था । उनके पिता एक किसान थे, जब आरके श्रीवास्तव पांच वर्ष के थे तभी उनके पिता पारस नाथ लाल इस दुनिया को छोड़ कर चले गए। पिता के गुजरने के बाद आरके श्रीवास्तव की माँ ने इन्हें काफी गरीबी को झेलते हुए पाला।
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आरके श्रीवास्तव का संघर्ष एक मिसाल है
आरके श्रीवास्तव को हिंदी माध्यम के सरकारी स्कूल में भर्ती कराया। उन्होंने अपनी शिक्षा के उपरांत गणित में अपनी गहरी रुचि विकसित की। जब आरके श्रीवास्तव बड़े हुए तो फिर उनपर दुखों का पहाड़ टूट गया, पिता का फर्ज निभाने वाले एकलौते बड़े भाई शिवकुमार श्रीवास्तव भी इस दुनिया को छोड़ कर चले गए। अब इसी उम्र में आरके श्रीवास्तव पर अपने तीन भतीजियों की शादी और भतीजे को पढ़ाने लिखाने सहित सारे परिवार की जिम्मेदारी आ गयी।
अपने जीवन के उतार चढ़ाव से आगे निकलते हुए आरके श्रीवास्तव ने 10 जून 2017 को अपनी बड़ी भतीजी की शादी एक शिक्षित सम्पन्न परिवार में करके एक पिता का दायित्व निभाया। आज पूरा देश आरके श्रीवास्तव के संघर्ष की मिसाल देता है। कभी हार न मानने वाला संघर्ष। आरके श्रीवास्तव हमेशा अपने स्टूडेंट्स को समझाते हैं कि "जीतने वाले छोड़ते नही, छोड़ने वाले जीतते नही। आज आरके श्रीवास्तव की माँ और भाभी उनके उपलब्धियों पर गर्व करती है।
बिहार का वो शख्स जिसने सैकड़ों गरीब बच्चों की बदली तकदीर, देशभर में हर कोई पहचानता है चेहरा
आनंद कुमार और आरके श्रीवास्तव अन्य लोगों की तरह ही एक सामान्य इंसान हैं। लेकिन उन्होंने बिल्कुल अलग और असाधारण काम किए हैं। आज उसी काम की वजह से न सिर्फ बिहार बल्कि दुनियाभर में तमाम लोग उन्हें बहुत सम्मान देते हैं। आनंद कुमार और आरके श्रीवास्तव पेशे से टीचर हैं जिन्होंने अब तक सैकड़ों गरीब बच्चों को पढ़ाकर बेहतर जिंदगी जीने लायक बनाया।
आनंद कुमार सुपर 30 प्रोग्राम और आरके श्रीवास्तव सिर्फ 1 रुपया गुरु दक्षिणा लेकर पढ़ाने के लिए जानें जाते हैं। ऐसा गुरु जिसने दर्जनों सामाजिक-आर्थिक रूप से कमजोर बच्चों को इतना काबिल बना दिया कि उन्होंने विपरीत परिस्थितियों में आईआईटी, एनआईटी ,बीसीईसीई जैसे संस्थानों में दाखिला पाया और आज बेहतर जिंदगी जी रहे हैं।
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आनंद कुमार की तरह आरके श्रीवास्तव गणितज्ञ हैं
आनंद कुमार की तरह आरके श्रीवास्तव गणितज्ञ हैं। उनके शैक्षणिक कार्यशैली के लिये उनका नाम वर्ल्ड बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड और इंडिया बुक ऑफ रिकॉर्ड में भी दर्ज हुआ है। देश के सारे प्रतिष्ठित अखबारो में सैकड़ों से अधिक बार उनके शैक्षणिक कार्यशैली की खबरें छप चुकी हैं। गूगल ब्वाय कौटिल्य पंडित के गुरु के रूप में भी देश इन्हें जानता है। आरके श्रीवास्तव को उनके काम की वजह से भी देश में तमाम तरह के सम्मान से नवाजा गया।
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आनंद मनचाही पढ़ाई नहीं कर पाए पूरी
हालांकि आरके श्रीवास्तव का ये मुकाम उनके अपने संघर्षों की वजह से है। इनका जीवन बेहद गरीबी में गुजरा। खराब आर्थिक हालात की वजह से आनंद मनचाही पढ़ाई भी पूरी नहीं कर पाए। घर की हालत इतनी खराब थी कि आँटो रिक्शा के चलने से जो इनकम आता उसी से परिवार का भरण पोषण होता। आरके श्रीवास्तव के पिता एक किसान थे। बचपन में ही पिता के खोने के बाद काफी संघर्ष कर माँ ने आरके श्रीवास्तव को पढाया लिखाया। निजी विद्यालयों के अधिक खर्चों के कारण उनके पढ़ाई हिंदी माध्यम के सरकारी स्कूलों में हुई। आरके श्रीवास्तव को बचपन से ही गणित से बेहद लगाव था। टीबी की बिमारी के कारण वे नही दे पाये थे ।
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