कोरोना में भी अरबपति: संकट में भी इन 10 की बढ़ी दौलत, गरीब हुआ और गरीब

ऑक्सफेम, अमेरिका के वाईस प्रेसिडेंट पॉल ओ ब्रिएन के अनुसार रईसों ने महामारी के दौरान खूब दौलत बटोरी है जबकि दुनिया के ज्यादातर जनसंख्या जीवनयापन करने के लिए संघर्ष कर रही है। ‘अरबपति अल्पसंख्यक हैं, ये आर्थिक सेहत नहीं बल्कि आर्थिक बीमारी के संकेत हैं।

Update:2021-01-25 15:12 IST
कोरोना में भी अरबपति: संकट में भी इन 10 की बढ़ी दौलत, गरीब हुआ और गरीब

नीलमणि लाल

नई दिल्ली। अगर कोई दुनिया के अरबपतियों से कोरोना काल के आर्थिक संकट और मंदी के बारे में पूछे तो वे यही कहेंगे – कैसी मंदी? कैसा आर्थिक संकट? इस जवाब की वजह ऑक्सफेम की एक रिपोर्ट में निहित है जो बताती है कि पिछले साल मार्च में ग्लोबल अर्थव्यवस्थाओं के ठप पड़ जाने के बाद दुनिया के टॉप एक हजार अरबपतियों की सम्मिलित दौलत में 30 फीसदी की कमी हो गयी थी लेकिन नवम्बर के अंत तक ये घाटा पूरी तरह न कवर हो गया बल्कि दौलत में इजाफा भी हो गया। यानी दुनिया के सबे बड़े रईसों को कोरोना महामारी के कारण हुए नुकसान को पूरा करने में दस महीने से भी कम समय लगा। तस्वीर की दूसरी तरफ दुनिया के गरीब लोग हैं जिनको रिकवर होने में दस साल से ज्यादा का समय लग जाएगा।

आर्थिक बीमारी का संकेत

ऑक्सफेम, अमेरिका के वाइस प्रेसिडेंट पॉल ओ ब्रिएन के अनुसार रईसों ने महामारी के दौरान खूब दौलत बटोरी है जबकि दुनिया के ज्यादातर जनसंख्या जीवनयापन करने के लिए संघर्ष कर रही है। ‘अरबपति अल्पसंख्यक हैं, ये आर्थिक सेहत नहीं बल्कि आर्थिक बीमारी के संकेत हैं। वे खंडित अर्थव्यवस्था का संकेत हैं।‘

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गरीबी के दलदल में फंसे लोग

बीते दो दशकों से विश्व में गरीबी घटने का ट्रेंड था लेकिन कोरोना महामारी ने सब मटियामेट कर दिया है। वर्ल्ड बैंक का अनुमान है कि कोरोना महामारी के अर्थक प्रभाव के परिणामस्वरूप 20 करोड़ से ज्यादा लोग गरीबी के दलदल में धंस जायेंगे। ऑक्सफेम की रिपोर्ट के अनुसार लोगों को अगर साढ़े पांच डालर प्रतिदिन (सवा सौ रुपये) पर जीवनयापन करने की मजबूरी से बचाना है तो इसकी लागत दुनिया के रईसों द्वारा महामारी के दौरान कमाए गए मुनाफे से कहीं कम आयेगी।

540 अरब डालर की अतिरिक्त कमाई

ऑक्सफेम ने वर्ल्ड बैंक, फ़ोर्ब्स की सूची और क्रेडिट सुइस्से कंपनी के डेटा को कैलकुलेट करके निकाला है कि अमेज़न के सीईओ जेफ़ बेजोस और टेस्ला के संस्थापक एलोन मस्क समेत दुनिया के टॉप 10 रईसों ने वर्ष 2020 की अंतिम तिमाही में अपनी सम्मिलित दौलत में 540 अरब डालर का इजाफा किया है। अगर ये लोग सिर्फ 80 अरब डालर बाँट दें तो 20 करोड़ लोगों को एक साल तक गरीबी रेखा से ऊपर रख सकते हैं। यही नहीं, ये दस रईस वर्ष 2020 में कमाए गए मुनाफे से इस धरती के प्रत्येक व्यक्ति को कोरोना की वैक्सीन की दो डोज़ की कीमत चुका सकते हैं। इसके बाद भी इन लोगों के पास मुनाफे का काफी हिस्सा बचा रह जाएगा।

वर्ल्ड इकनोमिक फोरम रिपोर्ट

ऑक्सफेम ने अपनी रिपोर्ट वर्ल्ड इकनोमिक फोरम की दावोस में होने वाली वर्चुअल मीटिंग के पहले जारी की है। इस रिपोर्ट में टॉप पर बैठे सीईओ और सबसे निचले पायदान पर मजदूर के बीच की खाई का बयान किया गया है। ये एक जातीय व्यवस्था की तरह है जहाँ टॉप पर बढ़िया शिक्षा पाए लोग हैं जो मोटे वेतन, सुविधाएँ और अपने कंपनी का स्टॉक ऑप्शन पाते हैं और इनको मदद मिलती है उस वर्क फ़ोर्स से जिसे इस्तेमाल करके फेंक दिया जाता है, जो बहुत कम पैसे पर काम करते हैं, जिनको हेल्थ केयर, सवेतन छुट्टियाँ और रिटायरमेंट के बेनिफिट नसीब नहीं होते। बीते 40 सालों में कंपनियों के एक्ज़ेक्यूटिव की तनख्वाहें एक हजार फीसदी बढ़ी हैं जबकि कामगारों की वेतन वृद्धि 12 फीसदी से भी कम बढ़ी है।

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अमेज़न की रिकॉर्डतोड़ बिक्री

बतौर उदहारण देखें तो अमेज़न ने बीते एक साल में रिकॉर्ड बिक्री की है जबकि कंपनी के हजारों कामगार कोरोना से संक्रमित हुए। ऑक्सफेम के रिपोर्ट कहती है कि अगर जेफ़ बेज़ोज़ अमेज़न के 8 लाख 76 हजार कर्मचारियों को एक लाख डलर का बोनस दे देते तो उनकी आर्थिक सेहत पर रत्ती भर असर नहीं पड़ता और वे उतने ही रईस बने रहते।

चैरिटी से बात नहीं बनेगी

ऑक्सफेम का कहना है कि सिर्फ चैरिटी या धन बांटने से समस्या नहीं सुलझेगी। एक समानतापूर्ण आर्थिक सिस्टम बनाने के लिए अमीरों पर ज्यादा टैक्स लगाना होगा, जिन कंपनियों के मुनाफे बीते वर्षों में बहुत तेजी से बढे हैं उनको टैक्स करना होगा। बड़े कारपोरेशन और बड़े रईस अपनी दौलत और कनेक्शनों का इस्तेमाल करके सुनिश्चित करते हैं कि सरकारी नीतियां उनके अनुरूप चलें। रिपोर्ट में जो नीतिगत सुझाव दिए गए हैं उनमें सोशल सर्विसेज में अधिकाधिक निवेश, गारंटीड इनकम सुनिश्चित करने के अलावा आर्थिक वृद्धि नापने के लिए जीडीपी के प्रयोग को खत्म करना शामिल है।

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