70 साल के बुरे दौर से गुजर रही इकॉनमी: नीति आयोग

राजीव कुमार ने अर्थव्यवस्था को लेकर एक बयान दिया है। उन्होंने कहा कि साल 2009-14 के बीच बिना सोचे-समझे कर्ज दिया। ये इसका ही नतीजा है कि नॉन परफॉर्मिंग एसेट (एनपीए) 2014 के बाद बढ़ गए, जिसकी वजह से बैंक अब नया कर्ज नहीं दे पा रहे हैं।

Update: 2019-08-23 05:55 GMT
नीति आयोग के VC का बयान, 70 साल के बुरे दौर से गुजर रही इकॉनमी

नई दिल्ली: नोटबंदी और जीएसटी को लेकर नीति आयोग के वाइस चेयरमैन राजीव कुमार ने बयान जारी किया है। कुमार ने कहा नोटबंदी और जीएसटी की वजह से देश में कैश संकट काफी बढ़ गया है। ऐसे में राजीव कुमार ने केंद्र की मोदी सरकार को सलाह दी है कि वह निजी कंपनियों को भरोसे में लेने की कोशिश करे। कुमार का ये भी कहना है कि पिछले 70 साल से अब तक पूरी वित्तीय प्रणाली सबसे जोखिम भरे दौर से गुजर रही है।

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राजीव कुमार ने आगे कहा कि आज के इस दौर में कोई किसी पर भरोसा नहीं करना चाह रहा है। पब्लिक तो छोड़िए अब कोई प्राइवेट सैक्टर में कर्ज देने के लिए तैयार नहीं है, जबकि हर किसी के पास नगदी है। मगर कैश संकट की वजह से कोई नगदी खर्च नहीं करना चाहता है।

राजीव कुमार ने दी सलाह

राजीव कुमार ने सरकार को ये भी सलाह दी है कि वह लीक से हटकर कुछ कदम उठाए। राजीव का मानना है कि नोटबंदी, जीएसटी और आईबीसी (दीवालिया कानून) के बाद देश के हालात काफी बादल गए हैं। पहले करीब 35 फीसदी कैश उपलब्ध होती थी, वो अब काफी कम हो गया है. इन सभी कारणों से स्थिति काफी जटिल हो गई है।

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मुख्य आर्थिक सलाहकार के. सुब्रमण्यम ने भी दी सलाह

मालूम हो, अभी हाल ही में मुख्य आर्थिक सलाहकार के. सुब्रमण्यम ने प्राइवेट सेक्‍टर की कंपनियों को एक नसीहत दी थी। सुब्रमण्यम ने कहा था कि कंपनियों को अपना माइंडसेट बदलने की जरूरत है। उन्होंने कहा कि प्राइवेट कंपनियों को कि एक बालिग व्यक्ति की तरह अपनी मदद खुद करनी होगी। साथ ही, ये सोचना होगा की बदलाव कैसे करना है। यह सोचना बेहद गलत है कि मुनाफा आप खुद रख लें और घाटा हो तो सब पर उसका बोझ दाल दें।

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अर्थव्यवस्था को लेकर राजीव कुमार ने दिया बयान

राजीव कुमार ने अर्थव्यवस्था को लेकर एक बयान दिया है। उन्होंने कहा कि साल 2009-14 के बीच बिना सोचे-समझे कर्ज दिया। ये इसका ही नतीजा है कि नॉन परफॉर्मिंग एसेट (एनपीए) 2014 के बाद बढ़ गए, जिसकी वजह से बैंक अब नया कर्ज नहीं दे पा रहे हैं। एनपीए बढ़ने का सीधा असर बैंकों के कर्ज देने की क्षमता पर पड़ा। अब गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों (एनबीएफसी) ने इस कमी की भरपाई की।

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