Union Budget 2022: इस्लामिक देशों और रूस-यूक्रेन टकराव से ऐसे प्रभावित होगा भारत का आम बजट, सरकार कैसे करेगी नियंत्रण?

दुनियाभर में जारी टकराव की स्थिति के बीच कच्चे तेल के दाम आने वाले दिनों में 100 से 110 डॉलर प्रति बैरल (barrel) तक पहुंच जाएंगे। इसकी मुख्य वजह तनाव के बीच कई देशों से तेल के निर्यात में कमी आना है।

Update: 2022-02-01 03:35 GMT

union budget 2022 crude oil

Union Budget 2022 : पूरे विश्व के लिए यह साल काफी चुनौतियों भरा साबित हो रहा है। साल के पहले महीने में ही जिस तरह रूस (Russia) और यूक्रेन (Ukraine) के बीच टकराव की खबरें सामने आईं। दूसरी तरफ, पश्चिम एशिया (West Asia) के इस्लामिक राष्ट्रों (Islamic Countries) के आपसी तनाव ने एक बार फिर इन देशों सहित अन्य की आर्थिक स्थिरता को असंतुलित किया है। इस तनाव का असर आज देश में पेश होने वाले आम बजट (Union Budget 2022) पर भी दिख सकता है।

दरअसल, इन दिनों वैश्विक शक्तियों (Global Powers) के बीच टकराव की स्थिति पैदा हो रही है। इसका सीधा असर तेल की कीमतों पर पड़ने लगा है। कच्चे तेल (Crude oil) की कीमतों की बात करें तो यह पिछले हफ्ते 90 डॉलर प्रति बैरल के पार चला गया था। साल 2014 के बाद यह पहली बार था, जब कच्चे तेल की कीमतें इस स्तर तक पहुंच गई। 

दो महीने में एक-तिहाई बढ़े कच्चे तेल के भाव दाम

इस क्षेत्र के विशेषज्ञों की बात करें तो उनका मानना है कि दुनियाभर में जारी टकराव की स्थिति के बीच कच्चे तेल के दाम आने वाले दिनों में 100 से 110 डॉलर प्रति बैरल (barrel) तक पहुंच जाएंगे। इसकी मुख्य वजह तनाव के बीच कई देशों से तेल के निर्यात में कमी आना है। वहीं, कोरोना की तीसरी लहर (Third Wave of Corona) से उबरने के बीच अब अधिकतर देशों में फिर से कच्चे तेल की मांग में वृद्धि देखी जा रही है।

तनाव आपूर्ति और मांग की खाई को बढ़ाएगा

कहने का मतलब अलग-अलग देशों के बीच तनाव का सीधा असर कच्चे तेल की इस आपूर्ति और मांग की खाई को बढ़ाएगा। इसका असर 2022 में दिखना शुरू हो चुका है। जहां दो दिसंबर 2021 को कच्चे तेल के दाम 65.88 डॉलर प्रति बैरल पर थे, वहीं अब कच्चे तेल की कीमतें 90 डॉलर प्रति बैरल के पास है। यानी, पिछले दो महीने में ही कच्चे तेल की कीमतों में तकरीबन 36 प्रतिशत का इजाफा देखने को मिल रहा है। वह भी तब जब टकराव की जद में आए देशों के बीच तनाव अभी लगातार बढ़ता ही जा रहा है।

तेल कीमतों में इजाफा करने का दबाव

ऐसे में यह अनुमान लगाया जा सकता है, कि कच्चे तेल की बढ़ती कीमतों की वजह से केंद्र और राज्य सरकार पर भी पेट्रोल-डीजल की कीमतों में इजाफा करने का दबाव बन रहा है। इसी तरह केंद्र की मोदी सरकार पर भी बजट के अंतर्गत टैक्स छूट देने को लेकर बड़ा दबाव बनने की संभावना जताई जा रही है।

इन वजहों से बढ़ रहे हैं कच्चे तेल के दाम?

-इसकी पहली वजह,  कोरोना वायरस के ओमिक्रॉन वेरिएंट के संक्रमण बढ़ने के बाद दिसंबर 2021 से ही कई देशों में तेल की खपत कम हो गई है। ब्रिटेन सहित यूरोप के देशों में कोरोना की पीक भी जल्द आ गई। इस वजह से इन देशों में जनवरी से ही तेल की खपत फिर बढ़ने लगी।

-दूसरी वजह, इस साल की शुरुआत से ही पश्चिमी एशिया में बड़ी हलचल को माना जा रहा है। यमन के हूती विद्रोहियों (Houthi rebels) के संयुक्त अरब अमीरात-सऊदी अरब (United Arab Emirates-Saudi Arabia) से बढ़े टकराव की वजह से इन देशों से कच्चे तेल की आपूर्ति बाधित रही है।

-तीसरी, इसके अलावा, रूस तथा यूक्रेन के बीच जारी तनाव ने भी कच्चे तेल की आपूर्ति में रुकावट पैदा की है। 

-चौथी वजह, उपरोक्त कारणों से साफ है कि जनवरी की शुरुआत में ही अलग-अलग देशों में तेल की खपत में वृद्धि हुई। जबकि इसकी आपूर्ति करने वाले देशों को टकराव और तनाव के चलते कच्चे तेल के उत्पादन में दिक्कतें आ रही हैं। इसका असर यह हुआ है कि कच्चे तेल की कीमतें अंतरराष्ट्रीय बाजार में लगातार बढ़ती जा रही हैं।

भारत के बजट और महंगाई पर कैसे असर डालेंगी तेल की बढ़ती कीमतें?

अब ऐसे में विशेषज्ञों का मानना है कि अगर रूस और यूक्रेन तथा अरब देशों के बीच जारी तनाव आने वाले समय में नहीं रुका, तो कच्चे तेल की कीमतों में भारी इजाफा होगा। इसका असर सीधे तौर पर भारत के बजट पर भी दिखने के आसार हैं। दरअसल, भारत में वित्त मंत्रालय जब बजट तैयारियों में जुटा था, उस वक्त तेल के दाम 65 डॉलर प्रति बैरल के करीब थे। जो अब बढ़ते ही जा रहे हैं। 

सरकार के लिए ये है मुख्य समस्या 

भारत में बजट की तैयारी के लिए पीक समय नवंबर और दिसंबर का होता है। इस दौरान कच्चे तेल की कीमतें 65.86 डॉलर प्रति बैरल तक गिर गईं थी। फिर इसी कीमत के आसपास घूमती रहीं। यानी वित्त वर्ष 2022-23 का बजट कच्चे तेल की इन्हीं कीमतों को ध्यान में रखते हुए तैयार किया गया। मगर, कोरोना की तीसरी लहर के बाद कच्चे तेल की कीमतें बढ़ने की वजह से न सिर्फ पेट्रोल-डीजल के महंगे होने का खतरा पैदा हो गया, बल्कि इसके उपोत्पाद जैसे एलपीजी और केरोसिन के दाम भी बढ़ने के आसार हैं। यानी सरकार पर गैस और केरोसिन के लिए दी जाने वाली सब्सिडी का अतिरिक्त दबाव होगा। जबकि सरकार ने पिछले करीब तीन महीनों से तेल के दाम स्थिर रखने की कोशिश की है।

85 दिन से नहीं बढ़े पेट्रोल-डीजल के दाम

भारत में जिन पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव होने हैं उसी के मद्देनजर इस साल पेट्रोल-डीजल की कीमतों में बीते 85 दिनों से कोई बदलाव नहीं किया गया है। यानी, कच्चे तेल के महंगे होने के बावजूद भारत सरकार ने अतिरिक्त टैक्स का बोझ जनता पर डालने के बजाय खुद अपने ऊपर ले लिया। इसका असर आज पेश होने वाले बजट पर दिख सकता है। क्योंकि, या तो कच्चे तेल के दामों की बढ़ोतरी को देखते हुए सरकार को घाटा कम करने के लिए पेट्रोल-डीजल, एलपीजी के दामों में बढ़ोतरी का ऐलान करना पड़ेगा या फिर इनके दाम स्थिर रखने के लिए केंद्र को जनता से वसूली जाने वाली एक्साइज ड्यूटी को घटाना जरूरी होगा। अब सबकी नजर आज पेश होने वाली बजट पर टिक गई है। 

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