Reservation: देश का एक ऐसा राज्य जहां अभी लागू नहीं है आरक्षण की कोई व्यवस्था
Reservation: हाल ही में शीर्ष अदालत ने 103वें संविधान संशोधन की वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर अपना फैसला सुनाया था। सुप्रीम कोर्ट की 5 जजों की बेंच ने 3-2 से अपना फैसला सुनाया।
Reservation in Chhattisgarh : सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) द्वारा सरकारी नौकरियों और दाखिले में आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग (EWS) के लोगों को 10 फीसदी आरक्षण पर मुहर लगाए जाने के बाद ये मुद्दा एक बार फिर गरमा गया है। आरक्षण को लेकर सबकी अपनी दलीलें, अपना पक्ष है। छत्तीसगढ़ भी इससे अछूता नहीं है। गुनगुनी ठंड के बीच आदिवासी बहुल राज्य छत्तीसगढ़ में आरक्षण पर बहस ने सियासत गरमा दी है।
हाल ही में शीर्ष अदालत ने 103वें संविधान संशोधन की वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर अपना फैसला सुनाया था। सुप्रीम कोर्ट की 5 जजों की बेंच ने 3-2 से अपना फैसला सुनाया। सर्वोच्च न्यायालय के तीन जजों ने जहां आरक्षण के समर्थन में फैसला दिया, वहीं तत्कालीन चीफ जस्टिस यूयू ललित (UU Lalit) और जस्टिस रवींद्र भट्ट (Justice Ravindra Bhatt) इसके खिलाफ दिखे। छत्तीसगढ़ के आदिवासी इलाकों में आरक्षण की मांग तेज हो चली है। यहां प्रतिदिन प्रदर्शन हो रहे हैं। मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के पुतले तक फूंके जा रहे हैं।
एकमात्र राज्य जहां कोई आरक्षण नहीं
दरअसल, छत्तीसगढ़ में आरक्षण की बहस पुरानी है। इस राज्य में जनजातीय आबादी की बहुलता है। बावजूद इसके यहां आरक्षण पर एक अजीब सी स्थिति है।आपको बता दें, छत्तीसगढ़ देश का एकमात्र ऐसा राज्य है जहां बीते दो महीने से लोक सेवाओं तथा शैक्षणिक संस्थाओं में आरक्षण का कोई नियम व रोस्टर लागू नहीं है। आरक्षण की इसी मांग की वजह से राज्य के आदिवासी इलाकों में आए दिन प्रदर्शन हो रहे हैं। कहीं चक्का जाम तो कहीं पुतला दहन। कई बार तो गुस्साए लोग नेशनल हाईवे तक जाम कर दे रहे हैं। कई जगहों पर रेल आवागमन भी रोकने की कोशिश हुई। इससे राज्य के हालात बदतर होते जा रहे हैं।
क्यों नहीं मिल रहा आरक्षण ?
आरक्षण की इसी स्थिति के बाबत सूचना का अधिकार के तहत सवाल पूछा गया। इसका जवाब भी आया। राज्य के सामान्य प्रशासन विभाग ने RTI के जवाब में कहा, कि हाई कोर्ट द्वारा आरक्षण की व्यवस्था को असंवैधानिक बताए जाने के बाद से राज्य में आरक्षण से संबंधित नियम और रोस्टर सक्रिय नहीं है।
राज्य में क्या थी आरक्षण व्यवस्था?
छत्तीसगढ़ में आरक्षण को लेकर हालात ऐसे नहीं थे। तीन साल पहले छत्तीसगढ़ की गिनती देश के सर्वाधिक आरक्षण देने वाले राज्य में होती थी। तब राज्य सरकार ने देश में सर्वाधिक यानी 82 प्रतिशत आरक्षण की व्यवस्था लागू की थी। मगर, छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने उस व्यवस्था पर रोक लगा दी। इसी साल 19 सितंबर को हाई कोर्ट ने आरक्षण की पुरानी व्यवस्था को भी 'असंवैधानिक' करार देते हुए रद्द कर दिया।
आरक्षण नहीं होने से क्या पड़ रहा प्रभाव?
छत्तीसगढ़ में आरक्षण व्यवस्था लागू नहीं होने से शैक्षणिक संस्थाओं में दाखिले आदि में दिक्कतें आ रही हैं। राज्य के इंजीनियरिंग, बीएड, पॉलीटेक्निक, एग्रीकल्चर, हार्टीकल्चर सहित अन्य पाठ्यक्रमों में काउंसलिंग और दाखिले का काम अटका पड़ा है। आपको पता हो कि, राज्य में इंजीनियरिंग, पॉलिटेक्निक सहित अन्य टेक्निकल कोर्सेज की करीब 23 हजार, B.Ed की 14 हजार तथा डीएलएड (DElEd) की तकरीबन 7 हजार, कृषि और उद्यानिकी की लगभग 2500 सीटें हैं। आरक्षण के अभाव में इन हजारों सीटों के लिए काउंसलिंग और प्रवेश अटका पड़ा है।
आयोग की भर्तियां और रिजल्ट भी अटके
इसी तरह, छत्तीसगढ़ लोक सेवा आयोग की भर्तियां और उनके रिजल्ट भी रोक दिए गए हैं। जिससे 12 हजार शिक्षकों की भर्ती सहित कई पदों की अधिसूचना (Notification) भी रुक गई है। करीब 1000 खाली पदों के लिए 6 नवंबर को होने वाली सब इंस्पेक्टर भर्ती परीक्षा (Sub Inspector Recruitment Exam) को भी स्थगित कर दिया गया है। इसी तरह, चपरासी पद के लिए ढाई लाख उम्मीदवारों की परीक्षा का रिजल्ट भी टाल दिया गया है। इनके अलावा कई प्रवेश परीक्षाएं भी स्थगित कर दी गई है। आरक्षण लागू नहीं होने के कारण मेडिकल कोर्सेज से जुड़े प्रवेश परीक्षाओं का मामला भी कोर्ट की शरण में है।
शीर्ष अदालत में मामला लंबित
इस संबंध में छत्तीसगढ़ के महाधिवक्ता सतीश चंद्र वर्मा (Advocate General Satish Chandra Verma) ने समाचार संस्था बीबीसी को बताया कि, 'छत्तीसगढ़ में रिजर्वेशन का मामला सुप्रीम कोर्ट में लंबित है। मुझे उम्मीद है कि अगले हफ्ते या 10 दिनों के भीतर इस मामले की सुनवाई हो जाएगी।'
कांग्रेस-बीजेपी कर रही खेल !
आरक्षण की बात हो और राजनीतिक दलों की प्रतिक्रिया, आरोप-प्रत्यारोप न हो। राज्य की सत्ताधारी पार्टी कांग्रेस और बीजेपी इस मसले पर एक-दूसरे को घेरने में जुटे हैं। राज्य की भूपेश बघेल सरकार ने इस संकट से निपटने के लिए दिसंबर के पहले हफ्ते में आरक्षण के मुद्दे पर विधानसभा का विशेष सत्र बुलाया है। वहीं, विपक्षी दल बीजेपी का कहना है कि राज्य सरकार को एक अध्यादेश लाकर आरक्षण को लागू कर देना चाहिए। सीएम बघेल इस पूरी स्थिति के लिए बीजेपी को ही जिम्मेदार ठहरा रहे हैं।
क्या था 82 प्रतिशत आरक्षण का फैसला?
आरक्षण के इस पूरे मसले को समझने के लिए आपको बीजेपी के कार्यकाल पर नजर देना होगा। बीजेपी शासित रमन सिंह की सरकार ने 18 जनवरी 2012 को एक अधिसूचना जारी की थी। इस नोटिफिकेशन में आरक्षण अधिनियम 1994 (Reservation Act 1994) की धारा- 4 में संशोधन करते हुए छत्तीसगढ़ गठन के समय से लागू रिजर्वेशन का दायरा 50 प्रतिशत से बढ़ाकर 58 फीसद कर दिया था। रमन सिंह सरकार ने अनुसूचित जनजाति (Scheduled Tribe) को मिलने वाले 20 प्रतिशत आरक्षण को बढ़ाकर 32 फीसद और अनुसूचित जाति (Scheduled Caste) को मिलने वाला 16 प्रतिशत आरक्षण घटाकर 12 प्रतिशत कर दिया था। साथ ही, अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) को दिए जा रहे 14 फीसदी आरक्षण को बरकरार रखा था।
आरक्षण की इस व्यवस्था के खिलाफ कांग्रेस के नेताओं सहित अन्य ने हाईकोर्ट का रुख किया। साल 2018 में सत्ता में आई भूपेश बघेल सरकार ने 15 अगस्त 2019 को नई आरक्षण व्यवस्था लागू करने की घोषणा की। इस नई व्यवस्था में अनुसूचित जाति के आरक्षण को 12 प्रतिशत से बढ़ाकर 13 फीसद तथा ओबीसी का आरक्षण 14 फीसदी से बढ़ाकर 27 फीसदी कर दिया गया। आर्थिक रूप से कमजोर सामान्य वर्ग (EWS) के लोगों के 10 प्रतिशत आरक्षण को जोड़ने के बाद राज्य में आरक्षण का दायरा बढ़कर 82 प्रतिशत तक पहुंच गया। बघेल सरकार के इसी फैसले को हाईकोर्ट में चुनौती दी गई। हाईकोर्ट ने इस आरक्षण व्यवस्था पर रोक लगा दी है। सामान्य शब्दों में कहें तो छत्तीसगढ़ में साल 2012 में रमन सिंह सरकार द्वारा लाई गई आरक्षण व्यवस्था ही लागू रही।
लेकिन, पेंच यहीं ख़त्म नहीं हुआ। इसी साल 19 सितंबर को छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट (Chhattisgarh High Court) ने रमन सिंह सरकार द्वारा लागू आरक्षण व्यवस्था को बिना ठोस आधार के लागू करने तथा 50 प्रतिशत आरक्षण के दायरे से अधिक रिजर्वेशन को आधार बताते हुए रद्द कर दिया। इस प्रकार 2012 की आरक्षण की व्यवस्था को रद्द कर दिया गया। इस तरह छत्तीसगढ़ में अभी कोई आरक्षण व्यवस्था लागु नहीं है।