इस अफसर पर मेहरबानी पड़ी महंगी, दंतेवाड़ा की घटना के बाद भी बनाए गए IG

दंतेवाड़ा की तरह ही हुए हमले में 24 जवान शहीद हुए हैं मौजूदा समय में नलिन प्रभात आईजी नक्सल ऑपरेशन के पद पर तैनात हैं।

Written By :  Anshuman Tiwari
Published By :  Shashi kant gautam
Update: 2021-04-05 16:42 GMT

IG Nalin Prabhat:(Photo-social media)


नई दिल्ली: छत्तीसगढ़ के बीजापुर में सुरक्षाबलों और नक्सलियों के बीच हुई मुठभेड़ में 24 जवानों के शहीद होने के बाद कई सवाल खड़े होने लगे हैं। नक्सलियों की ओर से की गई अंधाधुंध फायरिंग में 25 जवान गंभीर रूप से घायल भी हुए हैं।

इस मामले में एक उल्लेखनीय बात यह है कि छत्तीसगढ़ के दंतेवाड़ा में करीब 11 साल पहले सीआरपीएफ के 76 जवान नक्सली हमले में शहीद हुए थे और उस समय सीआरपीएफ के डीआईजी नलिन प्रभात थे। अब शनिवार को दंतेवाड़ा की तरह ही हुए हमले में 24 जवान शहीद हुए हैं और मौजूदा समय में नलिन प्रभात आईजी नक्सल ऑपरेशन के पद पर तैनात हैं।

दोषी होने पर भी बड़े पद की जिम्मेदारी

दंतेवाड़ा में बड़े नक्सली हमले के बाद घटना की जांच पड़ताल भी की गई थी और जांच में जिन अफसरों को दोषी ठहराया गया था उनमें तत्कालीन डीआईजी नलिन प्रभात भी शामिल थे। मामले की कोर्ट ऑफ इंक्वायरी में भी नलिन को दोषी पाया गया था। फिर भी उन्हें और प्रमोशन देकर आईजी नक्सल ऑपरेशन जैसे बड़े पद की जिम्मेदारी सौंप दी गई।


बड़े अफसरों की लापरवाही

छत्तीसगढ़ के बीजापुर इलाके में नक्सलियों की ओर से किए गए बड़े हमले के बाद तमाम तरह के सवाल उठने लगे हैं। यह सवाल भी उठ रहा है कि सीआरपीएफ और दूसरे सुरक्षा बलों का इंटेलिजेंस क्या इतना कमजोर था कि उन्हें कि उसे ढाई सौ से ज्यादा नक्सलियों की बड़ी तैयारी की सूचना समय से नहीं मिल सकी। बस्तर में नक्सलियों के हमले की घटनाएं प्रायः होती रहती हैं और इसके पीछे सुरक्षाबलों के बड़े अफसरों की लापरवाही को जिम्मेदार माना जा रहा है।

दंतेवाड़ा की घटना में शहीद हुए थे 76 जवान

करीब 11 साल पहले छह अप्रैल 2010 को दंतेवाड़ा जिले के ताड़मेटला में नक्सली हमले की बड़ी वारदात हुई थी। उस समय नक्सलियों ने सीआरपीएफ के जवानों को घेरकर अंधाधुंध फायरिंग की थी जिसमें 76 जवान शहीद हो गए थे। बाद में खुलासा हुआ था कि चिंतलनार कैंप के 150 जवानों को तत्कालीन डीआईजी नलिन प्रभात ने 72 घंटे के एरिया सैनिटाइजेशन के लिए भेजा था।

अपना अभियान पूरा करने के बाद जब तीसरे दिन जवानों की एक टुकड़ी वापस लौट रही थी तो रास्ते में घात लगाकर बैठे नक्सलियों ने विस्फोट करके एक पुलिया उड़ाने के बाद ताबड़तोड़ फायरिंग शुरू कर दी थी और इसमें 76 जवान शहीद हुए थे।

नलिन प्रभात भी ठहराए गए थे दोषी

दंतेवाड़ा हमले में 76 जवानों की शहादत से पूरे देश में तहलका मच गया था और इस मामले की कोर्ट ऑफ इंक्वायरी के साथ ही गृह मंत्रालय की ओर से भी जांच की गई थी। राम मोहन कमेटी की ओर से की गई इस जांच में सीआरपीएफ के तत्कालीन आईजी रमेश चंद्र, डीआईजी नलिन प्रभात, 62 बटालियन के कमांडर ए के बिष्ट और इंस्पेक्टर संजीव बांगड़े को दोषी ठहराया गया था।

इन सभी पर आरोप था कि इन्होंने बिना पर्याप्त सुरक्षा के सुरक्षाबलों को एरिया सैनिटाइजेशन के लिए भेज दिया था। इसके साथ ही क्षेत्र के जानकार कमांडेंट और डिप्टी कमांडेंट को भी जवानों के साथ नहीं भेजा गया था। बाद में इन चारों अफसरों का तबादला कर दिया गया था।

तब प्रभात ने पेश की थी यह सफाई

दंतेवाड़ा कांड के बाद नलिन प्रभात की ओर से सफाई पेश की गई थी कि उन्होंने आईजी को जानकारी देने के बाद ही जवानों को भेजा था। उनका यह भी कहना था कि फोर्स के साथ भेजे गए डिप्टी कमांडेंट को लोकल रूट और स्थानीय नक्शे की पूरी जानकारी थी मगर वह अपनी जिम्मेदारी सही ढंग से नहीं निभा सका।


अब प्रभात के लिए जवाब देना मुश्किल

बीजापुर की घटना के समय नलिन प्रभात खुद नक्सल ऑपरेशन के आईजी पद पर तैनात हैं और इंटेलिजेंस समेत सारी जिम्मेदारियां उन्हीं के पास हैं। उनकी इजाजत के बिना कोई भी महत्वपूर्ण ऑपरेशन नहीं किया जा सकता। ऐसे में नलिन प्रभात को लेकर तमाम तरह के सवाल उठने लगे हैं जिनका जवाब देना उनके लिए काफी मुश्किल साबित होगा।

विस्तृत जांच से ही तय होगी लापरवाही

वैसे इस मामले में एक रिटायर्ड डीजी का कहना है कि किसी भी मुठभेड़ के बाद घटना की विस्तृत जांच के बाद ही बताया जा सकता है कि लापरवाही किस स्तर पर हुई। इलाके में नक्सल ऑपरेशन सहित कई महत्वपूर्ण जिम्मेदारी निभा चुके इस अफसर का कहना है कि मुठभेड़ में सुरक्षाबलों की विफलता के कई कारण कारण होते हैं और विस्तृत जांच पड़ताल के बाद ही इस बात का खुलासा किया जा सकता है कि चूक किस स्तर पर हुई।

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