Naushad: लखनऊ में जन्मे संगीतकार नौशाद का तीन दशक तक रहा जलवा

Musician Naushad Death Anniversary: नौशाद ने हिंदी सिनेमा में भी संगीत दिया था।

Published By :  Ragini Sinha
Update:2022-05-05 10:54 IST

संगीतकार नौशाद (social media)

Musician Naushad: विश्व पटल पर जब कभी भी संगीत की बात होती है तो उसमें संगीतकार नौशाद का जिक्र जरूर आता है और जब उनके नाम की बात होती है तो लखनऊ की भी बात होती है। आज महान संगीतकार नौशाद  की पुण्य तिथि है। पुराने लखनऊ के खंदारी बाजार में जन्मे और पहले फिल्मफेयर विजेता संगीतकार नौशाद ने अपने पूरे जीवन में एक से एक हिट गीत दिए। लगभग 70 फिल्मों में अपने कर्णप्रिय संगीत से दुनिया को दीवाना बनाने वाले नौशाद को आज सभी संगीतप्रेमी याद कर रहे हैं। आज ही के दिन 5 मई 2006 को वह दुनिया से रुखसत कर गए थें।

बचपन से ही संगीत की बारीकियोें को समझते थे

नौशाद के बारे में कहा जाता है कि उन्हे बचपन से ही संगीत का षौक था। वह एक हारमोनियम की दुकान में काम किया करते थें यहीं से उन्हे वाद्य यंत्रों को बजाने की ललक पैदा हुई। वह बचपन से ही संगीत की बारीकियोें को समझने लगे थे। शुरुआती संघर्षपूर्ण दिनों में उन्हें उस्ताद मुश्ताक हुसैन खां, और उस्ताद झण्डे खां जैसे संगीत के बारीक जानकारों की संगति मिल गयी।


इसके बाद नौशाद अपने एक दोस्त से 25 रुपये उधार लेकर 1937 में मुंबई आ गये। यहां पहुंचने पर नौशाद को कई कठिनाइयों का सामना करना पड़ा। यहां तक कि उन्हे कई दिन तक फुटपाथ पर ही रात गुजारनी पड़ी । इस दौरान नौशाद की मुलाकात निर्माता कारदार से हुयी जिन की सिफारिश पर उन्हें संगीतकार हुसैन खान के यहां चालीस रूपये प्रति माह पर पियानो बजाने का काम मिला । इसके बाद संगीतकार खेमचंद्र प्रकाश के सहयोगी के रूप में नौशाद ने काम किया। बस यहीं से  नौशाद   की किस्मत चमक गयी और उन्हे पहली फिल्म प्रेमनगर मिल गयी।

उन्होंने कई फिल्मों में संगीत दिया

पद्मभूषण और दादा साहब फाल्के पुरस्कार से सम्मानित संगीतकार नौशाद अली की इस फिल्म के गीत संगीत प्रेमियों को खूब पसंद आए। इस बीच उन्होंने कई फिल्मों में संगीत दिया पर  मुगल-ए-आजम के गानों ने उस दौर में तहलका मचा दिया। नौषाद की गायक मो रफी से गजब की जुगलबंदी थी।मुगल-ए-आजम फिल्म में वह गुलाम अली साहब की आवाज चाहते थे लेकिन उन्होंने यह कहकर मना कर दिया कि वह फिल्मों के लिए गाना नहीं गाते हैं। उस समय में गुलाम अली साहब को गाने के लिए 25000 रुपए दिए गए थे। उस समय मो रफी और लता मंगेश्कर जैसे गायकों को 300-400 रुपए दिए जाते थे।


खास बात यह है कि अधिकतर फिल्मों में नौशाद साहब के साथ मो रफी ही रहे। नौशाद अली ने हिंदी सिनेमा की ऐतिहासिक फिल्म 'पाकीजा' में भी संगीत दिया था। हिंदी सिनेमा की अद्भुत फिल्म 'पाकीजा का संगीत गुलाम मोहम्मद साहब के निधन के बाद नौशाद ने ही पूरा किया था।

आज भी फेमस हैं नौशाद के गीत

इनके बनाए गीत आज भी गंगा-जमुनी तहजीब की बेमिसाल धरोहर हैं। नौशाद को मदर इंडिया के संगीत के लिए आस्कर अवार्ड के लिए नामिनेट किया गया था। दुनिया में हम आए हैं, तो जीना ही पड़ेगा, नैन लड़ जई हैं, मोहे पनघट पे नंदलाल जैसे एक से बढ़कर एक सुरीले गाने देने वाले संगीतकार नौशाद ने अपने लंबे फिल्मी करियर में भारतीयता को परोसने का काम किया।  

नौशाद की फिल्मों में अंदाज, आन, मदर इंडिया, अनमोल घड़ी, बैजू बावरा, अमर, स्टेशन मास्टर, शारदा, कोहिनूर, उड़न खटोला, दीवाना, दिल्लगी, दर्द, दास्तान, शबाब, बाबुल, मुग़ल-ए-आज़म, दुलारी, शाहजहां, लीडर, संघर्ष, मेरे महबूब, साज और आवाज, दिल दिया दर्द लिया, राम और श्याम, गंगा जमुना, आदमी, गंवार, साथी, तांगेवाला, पालकी, आईना, धर्म कांटा, पाक़ीज़ा (गुलाम मोहम्मद के साथ संयुक्त रूप से), सन आफ इंडिया, लव एंड गाड सहित अन्य कई फिल्मों में उन्होंने अपने संगीत से लोगों को झूमने पर मजबूर किया

नौशाद ने छोटे पर्दे के लिए भी काम किया। उन्होंने द सोर्ड ऑफ टीपू सुल्तान और 'अकबर द ग्रेट' जैसे धारावाहिक में संगीत दिया था। अपने करियर में हर रंग देखने वाले  नौशाद साहब को अपनी आखिरी फिल्म ताजमहल के सुपर फ्लाप होने का बेहद अफसोस रहा

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