Abortion in India: कानून कठोर पर फिर भी जारी, क्यों कम नहीं हो रहीं घटनाएं
गर्भपात: गर्भपात (Abortion In India) को अपराध की श्रेणी में गिनने के बावजूद भी यहां गर्भपात की घटनाएं दिन प्रतिदिन बढ़ने लगीं। सख्त कानून (strict laws for abortion) होने के बावजूद लोग इसका गलत इस्तेमाल करते हैं।
Abortion in India: गर्भपात (Abortion)एक ऐसा शब्द जो सुनने और समझने में काफी जटिल है । कभी कभी यह आवश्यक होता है । तो कभी इसे गलत इरादे के साथ किया जाता है। कभी कभी मां के स्वास्थ्य को ध्यान में रखते हुए गर्भपात करना आवश्यक (Abortion procedure) होता है । लेकिन वहीं दूसरी ओर लोग इस प्रक्रिया की जटिलता को समझे बिना ही इसे अपने गलत मंसूबों को अंजाम देने लिए करते हैं।
भारत देश में गर्भपात (Abortion Case in India) करना या कराना एक अपराध है । लेकिन कुछ कारणों में गर्भपात (Abortion) लीगल भी है। लेकिन इसके लिए कुछ नियम और शर्तें हैं । जैसे की गर्भपात माँ या बच्चे के स्वास्थ्य से जुडी किसी समस्या को ध्यान में रखकर किया जा सकता है। इसके साथ ही ऐसी अवस्था में गर्भावस्था के 24 हफ़्तों के अंदर ही गर्भपात कराना अनिवार्य होता है। अगर इस समय के बाद यह किया जाता है तो वो अपराध की श्रेणी में आ जाता है। वही इससे पहले सिर्फ 20 हफ़्तों का वक़्त ही मान्य होता है । लेकिन फिर 2021 में MTP Amendment Act 2021 के आने के बाद से इसकी समय सीमा को बढ़ा दिया गया।
इतना ही नहीं, गर्भपात से जुड़े मामलों को सरकार के पब्लिक नेशनल हेल्थ इंश्योरेंस फंड्स द्वारा भी कवर किया जाता है , जिसमे करीब 15 ,000 तक का फण्ड दिया जाता है। और इस फण्ड में कंसल्टेशन ,थेरेपी ,hospitalization , मेडिकेशन और कई तरह के ट्रीटमेंट शामिल होते हैं।
Miscarriages की घटनाएं भी ज्यादा
1971 से पहले गर्भपात IPC की धारा 1860 के सेक्शन 312 के अनुसार अपराध के तहत आता था और इसे Miscarriages का कारण माना जाता था । लेकिन सिर्फ उन मामलों को छोड़ कर जिनमे महिला की जान बचने के लिए गर्भपात करना आवश्यक होता था। इसके अलावा किसी भी परिस्थिति में गर्भपात की घटना को अंजाम देना अपराध की श्रेणी में आता था और इसके लिए दोषी को सजा भी सुनाई जाती थी। जिसमे 3 से 7 साल तक की जेल और फाइन भी लगाया जाता था। वहीँ 1960 तक दुनिया के करीब 15 देशों में गर्भपात लीगल था।
भारत देश में गर्भपात (Abortion In India) को अपराध की श्रेणी में गिनने के बावजूद भी यहाँ गर्भपात की घटनाएं दिन प्रतिदिन बढ़ने लगीं। जिसके बाद स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय अलर्ट हो गया और फिर भारत सरकार ने 1964 में एक कमेटी का गठन किया । जिसका अध्यक्ष शांतिलाल शाह को बनाया गया। कमेटी ने भारत सरकार के सामने देश में गर्भपात के लिए लॉ लाने का प्रस्ताव रखा, जिसके बाद कमेटी के इस प्रस्ताव को 1970 में सरकार द्वारा मान्य किया गया और फिर इसे पार्लियामेंट में मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ़ प्रेग्नेंसी बिल के नाम से पेश किया गया। सन 1971 में इसे मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ़ प्रेगनेंसी एक्ट के नाम से पारित किया गया।
भारत में 15 मिलियन से ज्यादा गर्भपात (Abortion In India) हर साल
भारत देश में हर साल 15 मिलियन से ज्यादा गर्भपात होते हैं , जिनमे 6 मिलियन से ज्यादा केस नेचुरल होते हैं तो वहीँ 3 मिलियन से ज्यादा केस किसी कारण से किये जाते हैं। जिसमें लोगों की मनचाही इच्छाएं भी शामिल हैं। इनमे से ज्यादातर असुरक्षित होते हैं। असुरक्षित गर्भपात ही प्रतिदिन करीब 10 महिलाओं की मौत और 1000 से ज्यादा महिलाओं की अस्वस्थता का तीसरा सबसे बड़ा कारण है।
देश में गर्भपात के विषय पर आखरी सबसे बड़ा अध्ययन 2002 में किया गया था जो कि Abortion Assessment Project का एक हिस्सा था।जिसमे ये बात सामने आयी की भारत में हर साल 6 मिलियन से ज्यादा गर्भपात होते हैं, जिनमे सभी के कारण अलग अलग होते हैं।
सख्त कानून होने के बाद भी गर्भपात का गलत इस्तेमाल
देश में गर्भपात के लिए सख्त कानून (strict laws for abortion) होने के बावजूद लोग इसका गलत इस्तेमाल करते हैं। आवश्यकता ना होने पर भी अपनी इच्छाएं पूरी करने के लिए महिला का गर्भपात कराते हैं। जैसे की बेटे की चाह में बेटी होने पर माँ का गर्भपात करा देना। अनावश्यक तरीके से गर्भपात कराना। कभी कभी माँ क्ले लिए भी खतरनाक होता है । जिससे कभी कभी गर्भवती महिला की जान जाने का भी खतरा रहता है।
लोगों को इन समस्याओं से रूबरू होना अति आवश्यक है ताकि लोग इस तरह की घटनाओं को अंजाम देने से पहले इस पर विचार करें और देश में गर्भपात की घटनाएं ना हों।