टिकैत ने भरी हुंकारः खुले दूध की बिक्री बंद करने जा रही सरकार, किसानों पर बड़ा संकट
खुले में दूध बेचने पर पाबंदी लगेगी, पहले दूध फैक्ट्री में जाएगा फिर वहां से पैकिंग होकर बाजार में बिकने के लिए आएगा।
नई दिल्ली: किसान नेता राकेश सिंह टिकैत (Rakesh Tikait) ने आरोप लगाया है कि केंद्र में पूंजीपतियों की सरकार है जो किसानों(Farmers) को बेकार कर उनकी जमीन पर पूंजीपतियों का कब्जा कराना चाहती है, यह सिर्फ तीन नए कृषि कानूनों का मामला नहीं है, किसानों के खिलाफ और भी बहुत से कानून बनाए जा रहे हैं।
बिजली का भी एक नया कानून आने जा रहा है। इसके तहत जिस किसान के पास दो पशु होंगे उन्हें कमर्शियल विद्युत कनेक्शन लेना पड़ेगा। दूध के व्यापार पर भी बड़ी कंपनियों का कब्जा होना है, आने वाले नए दूध कानून में आप अपना दूध खुले में नहीं भेज सकते।
नए कानून से बड़ा संकट
खुले में दूध बेचने पर पाबंदी लगेगी, पहले दूध फैक्ट्री में जाएगा फिर वहां से पैकिंग होकर बाजार में बिकने के लिए आएगा। आज जो किसान एक दो भैंस पालकर दूध बेचकर अपना घर चला रहे हैं, उन पर आने वाले इस नए कानून से बड़ा संकट आ रहा है। उनके सामने आर्थिक परेशानियां होंगी।
इसके अलावा नए कृषि कानून में मंडियों को खत्म कर बड़ी-बड़ी कंपनियों को गोदाम बनाने के लिए देने की तैयारी है।
दिल्ली में यमुना एक्सप्रेस वे के सबोता अंडरपास के नीचे तेज बारिश के बीच भारतीय किसान यूनियन की नए कृषि कानूनों को लेकर हुई महापंचायत को यूनियन के राष्ट्रीय प्रवक्ता राकेश टिकैत संबोधित कर रहे थे।
5 सितंबर
महापंचायत में बारिश के बावजूद हजारों की संख्या में किसान जमे रहे। यहां नए तीनों कृषि कानून वापस किए जाने, एमएसपी पर कानून बनाए जाने आदि मुद्दों पर विचार विमर्श हुआ। साथ ही 5 सितंबर को संयुक्त मोर्चे की मुजफ्फरनगर में होने वाली महापंचायत में अधिक से अधिक किसानों से पहुंचने की अपील की गई।
महापंचायत में केंद्र व प्रदेश सरकार पर जमकर भड़ास निकाली गई। टिकैत ने कहा कि जिस लड़ाई में 40 योद्धा और करीब 550 किसान संगठन हों, केंद्र उसे सरकार कमजोर ना समझे। 16 राज्यों में आंदोलन चल रहा है।
उन्होंने कहा 5 सितंबर को संयुक्त मोर्चे की महापंचायत इन्हीं कानूनों खिलाफ रखी गई है। इसमें उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश, राजस्थान, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश आदि राज्यों से किसान पहुंचेगा, जहां आगे की रणनीति तय की जाएगी।
किसान नेता ने कहा अगर ये आंदोलन मजबूती से नहीं लड़ा गया तो किसानों के पास जमीन नहीं बचेगी। गुजरात में खेती के लिए भी जमीन अधिग्रहीत हो रही है। 60 गांव की जमीन जहां आम की खेती होती थी रिलायंस ने खरीद ली है। किसानों कर्जा नहीं, उसकी खेती का सही भाव चाहिए।