Koyla Sankat: कोयला संकट से चरमरा सकता है एल्युमीनियम उद्योग, होगा बहुत बड़ा नुकसान

Koyla Sankat: भारत में कोयला संकट का असर लोगों की दैनिक जरूरतों पर भारी पड़ सकता है। कोयले की सप्लाई के संकट से जूझ रहे एल्युमीनियम उद्योग के चरमरा के बैठ जाने का ख़तरा बन गया है।

Written By :  Neel Mani Lal
Published By :  Shreya
Update: 2021-10-20 06:04 GMT

एल्युमीनियम उद्योग (कॉन्सेप्ट फोटो साभार- सोशल मीडिया) 

Koyla Sankat: भारत में कोयला संकट (Bharat Me Koyla Sankat) का असर लोगों की दैनिक जरूरतों पर भारी पड़ सकता है। इसमें एल्युमीनियम से बने सामान शामिल हैं। इसकी वजह देश के एल्युमीनियम उत्पादकों के सामने बना भरी बिजली संकट (Bijali Sankat) है। कोयले की सप्लाई (Koyle Ki Supply) के संकट से जूझ रहे एल्युमीनियम उद्योग (Aluminum Industry) के चरमरा के बैठ जाने का ख़तरा बन गया है।

दरअसल, कोयले का संकट इतना दबाव बना रहा है कि बिजली बनाने वाले प्लांट्स के अलावा अन्य सेक्टर्स को कोयले की सप्लाई लगभग बंद ही कर दी गयी है। इसका नतीजा यह हुआ है कि अन्य सेक्टर्स के उद्योग नेशनल ग्रिड (National Grid) से ऊंची कीमत पर बिजली खरीदने को मजबूर हुए हैं।

एल्युमीनियम एसोसिएशन ऑफ़ इंडिया (Aluminum Association Of India) का कहना है कि कोयले के कम स्टॉक (Koyle Ka Stock) से परेशान संयंत्रों को महंगी बिजली खरीदने के कारण प्रोडक्शन पर दबाव झेलना पड़ रहा है। कोयले की कमी के चलते कोल इंडिया लिमिटेड (Coal India Limited) ने बिजली सेक्टर के अलावा अन्य उपभोक्ताओं पर सप्लाई की अस्थाई पाबन्दी (Temporary Ban) लगा दी है, जिसमें एल्युमीनियम इंडस्ट्री (Aluminum Industry) भी शामिल है। जिसे प्लांट चलाने के लिए बिजली (Electricity) की भारी जरूरत होती है।  

(कॉन्सेप्ट फोटो साभार- सोशल मीडिया) 

ये उत्पादक खुद बनाते हैं बिजली

भारत में एल्युमीनियम उत्पादकों में हिंडाल्को इंडस्ट्रीज लिमिटेड और वेदांता लिमिटेड शामिल हैं, जो अपनी जरूरत की बिजली खुद बनाते हैं। ऐसे कैप्टिव प्लांट नेशनल ग्रिड से जुड़े नहीं होते हैं क्योंकि इनसे पैदा हुई बिजली उसी प्लांट में खप जाती है। एल्युमीनियम एसोसिएशन ऑफ़ इंडिया का अनुमान है कि एल्युमीनियम इंडस्ट्री को नेशनल ग्रिड के जरिये भारत की कुल बिजली डिमांड का 5 से 6 फीसदी मिलता है।

एल्युमीनियम उत्पादकों का कहना है कि एक तो कोयले की सप्लाई का संकट पहले से ही था। उसके ऊपर कोल इंडिया ने कोयले की नीलामी और दीर्घकालीन सप्लाई अनुबंध रद करने का फैसला ले लिए है। दीर्घकालीन सप्लाई अग्रीमेंट के तहत उत्पादकों को जून महीने में फुल सप्लाई मिली थी, जो सितम्बर में साठ फीसदी रह गयी और अक्टूबर में 50 फीसदी रह गयी है।

कोल इंडिया कोयले की सप्लाई के लिए हमेशा से एलुमिनियम उद्योग के साथ दीर्घकालीन अनुबंध करता रहा है। इसी से उत्पादकों को सप्लाई का बड़ा हिस्सा मिलता है जबकि बाकी का हिस्सा नीलामी के जरिये पूरा होता है। अब कोल इंडिया इस साल समाप्त हो रहे पांच साल के अनुबंधों का नवीकरण नहीं कर रहा है। ऐसे में कुछ उत्पादक नीलामी के जरिये कोयला खरीद पर निर्भर हो गए थे।

भारत में खनिज से एल्युमीनियम बनाने का पचास फीसदी से ज्यादा काम ओडिशा में होता है। ओडीशा में बिजली का उपभोग अक्टूबर के पहले पखवारे में 25 फीसदी बढ़ा है जो राष्ट्रीय औसत से पांच गुना तेज है। 

एल्युमीनियम उद्योग (सांकेतिक फोटो साभार- सोशल मीडिया) 

बड़े नुकसान का अंदेशा

एक्सपर्ट्स का कहना है कि अगर एल्युमीनियम प्लांट (Aluminum Plant) एक बार पूरी तरह बैठ गया तो उसे रिकवरी में कम से कम 12 महीने का समय लगेगा। यही नहीं, इससे आठ लाख लोगों के रोजगार पर इम्पैक्ट पड़ेगा, बैंकों की उधारी पर एक लाख करोड़ की चपत लग सकती है और 90 हजार करोड़ की विदेशी मुद्रा (Foreign Currency) का नुकसान हो सकता है।

- एल्युमीनियम इंडस्ट्री में 1.4 लाख करोड़ का निवेश है।

- प्रतिवर्ष 4.1 मीट्रिक टन उत्पादन के सतह भारत इस सेक्टर में दुनिया में दूसरे नंबर पर है।

- इस इंडस्ट्री से 8 लाख लोगों को रोजगार मिला हुआ है और चार हजार लघु व मध्यम उद्योग इससे जुड़े हुए हैं।

- एल्युमीनियम प्रोडक्शन साल भर चौबीसों घंटे चलने वाली प्रक्रिया है, इसका प्लांट कभी बंद नहीं किया जाता है। प्लांट को स्विच ऑफ या स्विच ऑन करने का कोई सिस्टम ही नहीं होता है।

- एक टन एल्युमीनियम प्रोडक्शन में 14 हजार यूनिट की निर्बाध बिजली सप्लाई की जरूरत होती है। ये स्टील इंडस्ट्री से 15 गुना और सीमेंट इंडस्ट्री से 145 गुना ज्यादा है।

- निर्बाध बिजली सप्लाई के लिए एल्युमीनियम उद्योग ने अपने बिजली प्लांट लगा रखे हैं जिनपर 50 हजार करोड़ का निवेश है। 

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