Bhisham Sahni: बड़े भाई का सम्मान और मां की समय गणना का तरीका
Bhisham Sahni: हिन्दी साहित्य के प्रमुख स्तंभों में से एक भीष्म साहनी को लोग एक कहानीकार, उपन्यासकार, नाटककार के रूप में जानते हैं।
Bhisham Sahni: हिन्दी साहित्य के प्रमुख स्तंभों में से एक भीष्म साहनी को लोग एक कहानीकार, उपन्यासकार, नाटककार (Bhisham Sahni was an Story Writer, Novelist, Playwright) के रूप में जानते हैं। उन्हें प्रेमचंद (Premchand) की परंपरा का अग्रणी लेखक माना जाता है। लेकिन इस सबसे इतर वह एक ऐसे इंसान थे जो मानवीय मूल्यों से हमेशा जुड़े रहे, कभी आंखों से ओझल नहीं होने दिया। अपनी विचारधारा को कभी हावी नहीं होने दिया। एक वामपंथी विचार धारा के लेखक का ये रूप थोड़ा अलग रहा। आपाधापी और उठापटक की संकीर्णताओं के बीच उनका व्यक्तित्व कीचड़ में कमल की तरह रहा।
ये बात शायद कम लोगों को ही पता होगी कि वह बॉलीवुड के प्रसिद्ध अभिनेता बलराज साहनी के छोटे भाई थे। भीष्म साहनी को लेखक के रूप में तो याद किया ही जाएगा इसके इतर वह एक सरल, सहज इंसान भी थे।
भीष्म साहनी का जीवन परिचय (Bhisham Sahni Ka Jivan Parichay)
भीष्म साहनी का जन्म 8 अगस्त 1915 को रावलपिंडी में हुआ था। इनके पिता अपने समय के प्रसिद्ध समाजसेवी थे। इनकी प्रारंभिक शिक्षा हिन्दी व संस्कृत में घर पर ही हुई थी। 1937 में लाहौर गवर्नमेंट कॉलेज से उन्होंने अंग्रेजी में एम.ए. किया और पंजाब विश्वविद्यालय से पीएचडी। उन्होंने विभाजन के दर्द को बहुत नजदीक से महसूस किया था। उनकी कहानियां सामाजिक यथार्थ के नजरिये से महत्वपूर्ण मानी जाती हैं। वह थियेटर से भी जुड़े रहे। जहां उन्हें अपने बड़े भाई बलराज साहनी का मार्गनिर्देशन मिला। इसके बाद वह दिल्ली कॉलेज में अंग्रेजी के लेक्चरर रहे। कुछ समय मास्को में रहकर रूसी साहित्य का अनुवाद किया।
एक साहित्यकार होने के अलावा वह एक क्रांतिकारी भी रहे। 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन में जेल भी गए। भीष्म साहनी के उपन्यास तमस (Bhisham Sahni Tamas) में विभाजन का द्रद महसूस किया जा सकता है। जो कि सांप्रदायिक दंगों की पृष्ठभूमि पर आधारित है। इस पर धारावाहिक भी बना था जिसमें ओमपुरी और अमरीश पुरी जैसे अभिनेताओं ने काम किया था। इसके अलावा मेरी प्रिय कहानियां, झरोखे, बसंती, मायादास की माड़ी जैसी रचनाएं उल्लेखनीय हैं। इन्हें पद्मभूषण और साहित्य अकादमी जैसे सम्मान से सम्मानित किया गया।
'हानूश' नाटक
एक दिलचस्प प्रसंग 'हानूश' (Haanoosh) नाटक से जुड़ा हुआ है, जो हिंदी के सबसे कामयाब नाटकों में से एक है। भीष्म साहनी इस नाटक के लिखने के पहले तक कहानी लेखक के रूप में मशहूर थे। जब उन्होंने इस नाटक को लिखा तो बड़े भाई बलराज साहनी के पास उनकी मंजूरी के लिए भागे-भागे गए। बलराज ने नाटक को पास नहीं किया। बेचारे भीष्म ने कोई बहस नहीं की, उदास लौट आए। कुछ वक़्त बाद नाटक पर मेहनत करके फिर से बड़े भाई की मंजूरी के लिए उनके पास जा पहुंचे। इस बार भी बलराज ने सिर हिला दिया, मानो कह रहे हों, यह काम तुम्हारे बस का नहीं। छोटे भाई ने फिर कोई तर्क नहीं किया, बस अपना सा मुंह लेकर लौट आए। लेकिन तीसरी बार उस नाटक को सुधार कर वह बड़े निर्देशक इब्राहीम अल्काजी के पास गए, जिन्होंने कई दिनों तक नाटक अपने पास रखा और बिना देखे वापस कर दिया। बाद में जब राजिंदर नाथ ने 'हानूश' को मंच पर उतारा तो वह इतना कामयाब हुआ कि नाटक करने वालों ने उसे हाथों हाथ लिया।
'मां, मैं अगस्त के महीने में तो पैदा नहीं हुआ था'
एक बात और हालांकि हम उनकी जन्मतिथि आठ अगस्त मनाते हैं। लेकिन वह खुद इसे सही नहीं मानते थे। अपनी आत्मकथा (Bhisham Sahni Autobiography) के आखिरी अध्याय में अपनी मां के समय बोध के बारे में बात करते हुए वे लिखते हैं:
जब मैं कहता: "मां, मैं अगस्त के महीने में तो पैदा नहीं हुआ था। पिताजी ने मेरी जन्म तिथि अगस्त में कैसे लिखवा दी?' तो मां सर झटककर कहती: "यह वह जानें या तुम जानो। मैं तो इतना जानती हूँ कि तुम बलराज से एक महीना कम दो साल छोटे हो। अब हिसाब लगा लो।" ये एक मां का समय बोध था जिससे भीष्म साहनी को कभी कोई दिक्कत नहीं हुई।