Bihar Politics: नीतीश पर बढ़ रहा भाजपा का दबाव, सीएम खुलकर नहीं ले पा रहे फैसले
Bihar Politics: मुकेश सहनी प्रकरण में भी नीतीश बीजेपी के दबाव में दिखे। जदयू के कई नेता सहनी के प्रति नरम रवैया दिखा रहे थे, मगर भाजपा की मांग पर सहनी को बर्खास्त कर दिया गया।;
Bihar Politics Nitish Kumar: बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ((CM Nitish Kumar) का सियासी अंदाज इन दिनों बदला-बदला नजर आ रहा है। उन पर भाजपा (BJP) का दबाव बढ़ता दिख रहा है। इसी कारण वे खुलकर फैसले नहीं ले पा रहे हैं। पिछले दिनों लखनऊ में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ (CM Yogi Adityanath) के शपथ ग्रहण समारोह में पीएम मोदी (PM Narendra Modi) से उनकी मुलाकात की तस्वीर भी बिहार की सियासत में चर्चा का विषय बनी थी।
अब वीआईपी के मुखिया मुकेश सहनी (Mukesh Sahni) प्रकरण में भी नीतीश कुमार भाजपा के जबरदस्त दबाव में दिखे हैं। जदयू के कई नेता सहनी के प्रति नरम रवैया दिखा रहे थे, मगर भाजपा की मांग पर राज्यपाल ने मंत्री पद से सहनी की बर्खास्तगी का फरमान सुना दिया। यह कदम नीतीश की ओर से राजभवन को भेजी गई सिफारिश के आधार पर ही उठाया गया। यही कारण है कि इन दिनों बिहार की सियासत में नीतीश कुमार के भाजपा के दबाव में काम करने की सियासी चर्चाएं खूब सुनी जा रही हैं।
सहनी प्रकरण में भाजपा ने बनाया दबाव
भाजपा के साथ नीतीश कुमार पहले भी गठबंधन सरकार चला चुके हैं मगर इस बार मुख्यमंत्री के रूप में अपनी पारी के दौरान वे भाजपा के दबाव में आते दिख रहे हैं। पिछले दिनों सहनी की पार्टी वीआईपी के तीन विधायकों ने भाजपा का दामन थाम लिया था और इसके बाद साहनी पूरी तरह अलग-थलग पड़ चुके हैं। कई मुद्दों को लेकर सहनी से नाराज चल रही भाजपा ने नीतीश कुमार को पत्र लिखकर सहनी को मंत्री पद से हटाने की मांग की थी।
इस मांग पर कदम उठाते हुए नीतीश ने राजभवन को सहनी को मंत्री पद से हटाने की सिफारिश भेज दी। भाजपा ने सहनी से पुराना हिसाब चुकाते हुए अब उन्हें पूरी तरह पैदल कर दिया है। जुलाई में उनकी विधान परिषद सदस्यता भी समाप्त होने वाली है। अब उनके विधायक और एमएलसी बनने की भी संभावना खत्म हो गई है।
भाजपा का आक्रामक रवैया
सियासी जानकारों का कहना है कि वीआईपी के तीन विधायकों के शामिल होने के बाद भाजपा राज्य की सबसे बड़ी सियासी पार्टी बन चुकी है। भाजपा के विधायकों की संख्या बढ़कर 77 हो गई है और अब भाजपा ने आक्रामक रवैया अपना लिया है। इसी कारण मुख्यमंत्री नीतीश कुमार खुलकर बैटिंग नहीं कर पा रहे हैं। वे पहले ही भाजपा के एहसान तले दबे हुए हैं क्योंकि भाजपा ने अपना चुनावी वादा निभाते हुए बड़ी पार्टी होने के बावजूद नीतीश को ही मुख्यमंत्री बनाया है। सहनी प्रकरण में नीतीश के दबाव में होने का सबूत इस बात से भी मिलता है कि जदयू के कई नेता सहनी के प्रति नरम रवैया अपनाए जाने के पक्ष में थे मगर नीतीश को भाजपा के दबाव में बड़ा फैसला लेना पड़ा।
भाजपा का दबाव बताने की कोशिश
मजे की बात यह है कि नीतीश की अनुशंसा पर सहनी की मंत्री पद की कुर्सी तो छिन गई, मगर जदयू इस फैसले से खुद को दूर दिखाने की कोशिश में जुटी हुई है। जदयू की ओर से मीडिया में इस खबर को प्रमुखता से प्रसारित किया गया कि भाजपा के दबाव में ही नीतीश कुमार ने यह कदम उठाया है। रविवार को मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के राजभवन को अनुशंसा भेजने के बाद बाकायदा विज्ञप्ति जारी कर यह बताया गया कि भाजपा की मांग पर ही मुख्यमंत्री ने यह बड़ा फैसला लिया है।
हालांकि जदयू के प्रवक्ता नीरज कुमार इस बात को खारिज करते हैं कि नीतीश कुमार किसी प्रकार के दबाव में काम कर रहे हैं। उनका कहना है कि नीतीश कुमार ने दबाव की राजनीति को कभी बर्दाश्त नहीं किया। उनका यह भी तर्क है कि सहनी भाजपा के कोटे से ही मंत्री बने थे और इसी कारण भाजपा की मांग पर उन्हें मंत्रिमंडल से हटाया गया है।
सियासी चर्चा का विषय बनी तस्वीर
दूसरी ओर, सियासी जानकार नीतीश के फैसले को दबाव की राजनीति का नतीजा बता रहे हैं। पिछले दिनों उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के शपथ ग्रहण समारोह में नीतीश और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की तस्वीर के भी बड़े सियासी मायने निकाले जा रहे हैं। हालांकि पीएम से झुक कर मिलने को मुख्यमंत्री नीतीश की विनम्रता जरूर माना जा सकता है मगर इस तस्वीर में विपक्ष और नीतीश विरोधियों को तंज कसने का मौका जरूर मुहैया करा दिया।
राजद ने इस तस्वीर को सोशल मीडिया पर शेयर करते हुए नीतीश कुमार पर करारा तंज कसा है। सियासी जानकारों का कहना है कि गठबंधन सरकारों में नीतीश कुमार लंबे समय तक मुख्यमंत्री रहे हैं मगर यह पहला मौका है जब वे भाजपा के दबाव में दिख रहे हैं।