सेंट्रल विस्टा प्रोजेक्ट को चुनौती देने वाली याचिका सुप्रीम कोर्ट में खारिज, कहा- 'कोई प्राइवेट प्रॉपर्टी नहीं बन रही'

सर्वोच्च न्यायालय (Supreme Court) की तरफ से आज मंगलवार को एक बार फिर सेंट्रल विस्टा प्रोजेक्ट (को हरी झंडी मिल गई। सुप्रीम अदालत ने प्लॉट के लैंड यूज में बदलाव को चुनौती देने वाली याचिका को खारिज कर दिया।

Update: 2021-11-23 11:16 GMT

सर्वोच्च न्यायालय (Supreme Court) की तरफ से आज मंगलवार को एक बार फिर सेंट्रल विस्टा प्रोजेक्ट (Central Vista Redevelopment Project) को हरी झंडी मिल गई। सुप्रीम अदालत ने प्लॉट के लैंड यूज (Land use) में बदलाव को चुनौती देने वाली याचिका को खारिज कर दिया। सेंट्रल विस्टा प्रोजेक्ट के तहत उप राष्ट्रपति ((Vice President) के लिए नया आवास बनाया जाएगा। कोर्ट ने याचिका खारिज करते हुए कहा, कि 'हां कोई प्राइवेट प्रॉपर्टी नहीं बनाई जा रही है। उस जमीन का इस्तेमाल हमेशा से सरकारी काम के लिए ही किया जाता रहा है।'

बता दें, कि इस प्रोजेक्ट के खिलाफ दायर याचिका में कहा गया था, कि 'वहां उपराष्ट्रपति (Vice President) का आवास बनाया जाएगा। इससे चिल्ड्रन पार्क और हरियाली खत्म हो जाएगी।' इस पर सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने कहा, 'वहां उपराष्ट्रपति का आवास बनाया जा रहा है, जिससे हरियाली होना तय है। इस प्रोजेक्ट को प्राधिकरण की तरफ से पहले ही मंजूरी मिल चुकी है। 

क्या कहा जस्टिस ने?

इस मामले की सुनवाई जस्टिस एएम खानविलकर कर रहे थे। सुनवाई के दौरान उन्होंने कहा, कि ये नीतिगत मामला है। हर चीज की आलोचना की जा सकती है। लेकिन, 'रचनात्मक आलोचना' होनी चाहिए। उप राष्ट्रपति का आवास कहीं और कैसे हो सकता है? उस जमीन का इस्तेमाल हमेशा से सरकारी काम के लिए किया जाता रहा है। 

तीन सदस्यीय बेंच ने याचिकाकर्ता को फटकारा 

दरअसल, याचिकाकर्ता (Petitioner) के वकील ने कहा, कि लैंड यूज में बदलाव करना जनहित में नहीं है। इस दलील पर सुप्रीम कोर्ट ने जबरदस्त फटकार लगाई। कोर्ट ने कहा, 'अब हमें आदमी से पूछना पड़ेगा, कि उपराष्ट्रपति का आवास कहां बनाना चाहिए?' इस मामले की सुनवाई जस्टिस खानविलकर, जस्टिस दिनेश माहेश्वरी और जस्टिस सीटी रवि कुमार की बेंच कर रही थी। बेंच ने कहा, 'उपराष्ट्रपति का आवास किसी और जगह कैसे शिफ्ट किया जा सकता है?'

क्या कहा याचिकाकर्ता ने?

इस मामले में याचिकाकर्ता ने प्लॉट नंबर- 1 के लैंड यूज (Land use) बदले जाने के नोटिफिकेशन को चुनौती दी। याचिकाकर्ता राजीव सूरी की तरफ कहा गया कि इस नोटिफिकेशन के जरिए रिक्रिएशनल (पार्क जैसी खुली जगह) को रेजिडेंशियल (आवासीय) में बदला जा रहा है।

जमीन 90 सालों से रक्षा मंत्रालय की

याचिकाकर्ता के जवाब में केंद्र सरकार की ओर से पेश हुए सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा, कि वो जगह कभी आम जनता के लिए थी ही नहीं। वो जमीन 90 सालों से रक्षा मंत्रालय की है। और वहां रक्षा मंत्रालय के दफ्तर ही हैं। 

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