दिल्ली बंगले पर कब्जे के लिए चिराग का बड़ा खेल, नोटिस के बाद लगा दी रामविलास पासवान की प्रतिमा
Chirag Paswan Bungalow 12 Janpath Delhi: शहरी विकास मंत्रालय के नोटिस के बाद चिराग ने बड़ा कदम उठाते हुए इस बंगले में रामविलास पासवान की प्रतिमा स्थापित कर दी है।
Chirag Paswan Bungalow 12 Janpath Delhi: लोजपा में अलग-थलग पड़ चुके रामविलास पासवान के बेटे चिराग पासवान ने नई दिल्ली स्थित 12 जनपथ के बंगले (Chirag Paswan Bungalow 12 Janpath Delhi) में बड़ा खेल कर दिया है। शहरी विकास मंत्रालय की ओर से पहले ही चिराग को इस बंगले को खाली करने का नोटिस दिया जा चुका है। यह बंगला मोदी सरकार में नए रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव (Ashwini Vaishnaw) को आवंटित किया जा चुका है। नोटिस मिलने के बाद चिराग ने राम विलास पासवान की पहली पुण्यतिथि (Ram Vilas Paswan Ki Pahli Punyatithi) 8 अक्टूबर तक इस बंगले में रहने की मोहलत मांगी है।
शहरी विकास मंत्रालय के नोटिस (Shahari Vikas Mantralaya Ka Notice) के बाद चिराग ने बड़ा कदम उठाते हुए इस बंगले में रामविलास पासवान की प्रतिमा (Ram Vilas Paswan Statue) स्थापित कर दी है। बंगले पर राम विलास पासवान स्मृति का बोर्ड भी लगवा दिया है। चिराग की ओर से उठाए गए इस कदम को बंगले पर कब्जा बनाए रखने की कवायद माना जा रहा है। परिवार की ओर से इस बंगले को राम विलास पासवान का मेमोरियल बनाने की मांग भी की जा रही है। माना जा रहा है कि इस बंगले को रामविलास पासवान का स्मारक बनवाने के लिए ही ये सब चालें चली जा रही हैं।
मजे की बात यह है कि एनडीए (NDA) के कई नेताओं का भी इस मांग को समर्थन मिलता दिख रहा है। जदयू के मुख्य प्रवक्ता नीरज कुमार का कहना है कि सियासी मैदान में रामविलास पासवान का बहुत बड़ा कद था। कोई भी इसकी अनदेखी नहीं कर सकता। दूसरी ओर लोजपा के पशुपति पारस गुट के सांसद सूरजभान सिंह ने भी मांग की है कि इस बंगले को रामविलास पासवान का मेमोरियल (Ram Vilas Paswan Memorial) बनाया जाना चाहिए। हालांकि अभी तक सरकार के स्तर पर इस बाबत कोई फैसला नहीं लिया गया है।
पारस गुट ने दिया चिराग को बड़ा झटका
लोजपा के संस्थापक रामविलास पासवान का पिछले साल 8 अक्टूबर को निधन हो गया था। इसके बाद हुए बिहार विधानसभा के चुनाव में लोजपा से सिर्फ एक सीट जीतने में कामयाब हुई थी। बाद मे इस विधायक ने भी नीतीश की अगुवाई में जदयू का दामन थाम लिया था। चिराग ने एनडीए गठबंधन तोड़ते हुए बिहार की सौ से ज्यादा सीटों पर अपने प्रत्याशी खड़े कर दिए थे।
विधानसभा में पार्टी की बुरी हार के बाद लोजपा दो फाड़ हो गई। एक गुट के नेता पशुपति कुमार पारस को मोदी मंत्रिमंडल में कैबिनेट मंत्री बना दिया गया है। पारस की अगुवाई में लोजपा के 6 में से 5 सांसदों ने अलग गुट बना लिया है। लोकसभा के स्पीकर ने इस गुट को मान्यता भी दे दी है।
रामविलास पासवान के निधन के बाद चिराग ने अभी तक 12 जनपथ स्थित वह बंगला नहीं छोड़ा है जिसमें उनके पिता लंबे समय तक रहे थे। शहरी विकास मंत्रालय की ओर से उन्हें बंगला खाली करने का नोटिस भी जारी किया जा चुका है। यह बंगला रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव को आवंटित किया गया है।
वीपी सिंह के समय आवंटित हुआ था बंगला
जनपथ स्थित 12 नंबर का यह आलीशान बंगला चिराग के पिता रामविलास पासवान को विश्वनाथ प्रताप सिंह के प्रधानमंत्रित्व काल में आवंटित हुआ था। 1982 में पैदा हुए चिराग की उम्र उस समय मात्र आठ साल थी। वह तभी से अपने माता-पिता के साथ इस आलीशान बंगले में रहते आए हैं। उनके बचपन और युवावस्था का लंबा समय इसी बंगले में बीता है। उन्होंने राजनीति का ककहरा भी इसी बंगले में सीखा है।
मंत्री न रहने पर भी यूपीए सरकार के कार्यकाल के दौरान रामविलास पासवान को इस बंगले से नहीं हटाया गया था। 2009 का चुनाव हारने और 2010 में राज्यसभा सदस्य बनने के बीच की अवधि में उन्होंने बाजार दर पर इस बंगले के किराए का भुगतान किया था।
यह बंगला केंद्रीय मंत्री या उसी स्तर के लोगों के लिए ही निर्धारित है। चिराग पासवान मौजूदा समय में महज सांसद हैं। इस कारण वे इस बंगले में रहने की योग्यता नहीं पूरी करते। सांसद के रूप में चिराग को एक और आवास मिला हुआ है। लेकिन वे इसी बंगले में रहते हैं। लोकसभा की वेबसाइट पर भी उनके आवासीय पते के तौर पर यही बंगला दर्ज है।
बंगले पर कब्जा बनाए रखने की कवायद
जानकारों का कहना है कि चिराग ने रामविलास पासवान की पहली पुण्यतिथि तक इस बंगले में रहने की मोहलत तो जरूर मांगी है मगर सच्चाई यह है कि वह इस बंगले पर आगे भी कब्जा बनाए रखना चाहते हैं। कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के दस जनपथ स्थित बंगले के पास स्थित यह बंगला लुटियन जोन का आलीशान बंगला माना जाता है और चिराग इस बंगले पर अपने परिवार का कब्जा बनाए रखना चाहते हैं।
इसी कारण उन्होंने रामविलास पासवान की प्रतिमा स्थापित करके नई चाल चली है। अब देखने वाली बात यह होगी कि शहरी विकास मंत्रालय की ओर से इस बाबत क्या कार्रवाई की जाती है। दलित वोट बैंक की राजनीति के मद्देनजर अभी सरकार की ओर से भी इस बाबत कोई आखिरी फैसला नहीं लिया गया है।