झूठी आजादी का नारा देने वाले कम्यूनिस्ट अब क्यों मनाने जा रहे स्वाधीनता दिवस
भारतीय कम्यूनिस्ट पार्टी ने आगामी 15 अगस्त को स्वाधीनता दिवस मनाने का एलान कर लोगों को चौंका दिया है।
नई दिल्ली: भारतीय कम्यूनिस्ट पार्टी ने आगामी 15 अगस्त को स्वाधीनता दिवस मनाने का एलान कर लोगों को चौंका दिया है। बीते 74 साल से देश की आजादी को झूठ बता रहे कम्यूनिस्टों का यह वैचारिक बदलाव सवालों के घेरे में है। लोग पूछ रहे हैं कि आखिर कम्यूनिस्ट नेता इतने सालों तक देश की जनता को गुमराह क्यों करते रहे। सीपीआई ने भी पिछले महीने केरल में रामायण पर ऑनलाइन संवाद कार्यक्रम का आयोजन किया है।
देश की बदलती राजनीति और राष्ट्रवादी विचार को मिली अहमियत का असर कम्यूनिस्टों के गढ़ पश्चिम बंगाल और केरल में भी दिखने लगा है। बदलाव की बयार अब कम्यूनिस्टों के शरीर को भी छूकर गुजर रही है। पिछले महीने भारतीय कम्यूनिस्ट पार्टी केरल ने रामायण पर कार्यक्रम का आयोजन किया है। इसी बीच दूसरी खबर पश्चिम बंगाल से है जहां देश की आजादी के बाद पहला मौका होगा जब 15 अगस्त को कम्यूनिस्ट पार्टी के कार्यकर्ता देश की आजादी का जश्न मनाएंगे। कम्यूनिस्ट गढ़ करार दिए गए पश्चिम बंगाल की कम्यूनिस्ट पार्टी ने आजादी का पर्व जोर—शोर से मनाने का फरमान जारी किया है। भारतीय कम्यूनिस्ट पार्टी मार्क्सवादी (माकपा) के सभी कार्यालयों में 15 अगस्त के मौके पर तिरंगा फहराया जाएगा। पार्टी की ओर से जिला इकाइयों को निर्देश दिया गया है कि आयोजन जोरशोर और धूमधाम के साथ किया जाना चाहिए।
कम्यूनिस्ट पार्टी कार्यालयों में नहीं होता था जश्न
देश के आजाद होने के बाद से अब तक कम्यूनिस्ट पार्टी की ओर से कभी स्वतंत्रता दिवस को धूमधाम से नहीं मनाया गया। इसकी वजह पार्टी की वह वैचारिकी थी जिसके तहत कहा जाता रहा है कि भारत को अंग्रेजों के शासन से आजादी मिली है लेकिन देशवासियों को अभी तक पूरी आजादी नहीं मिली है। कम्यूनिस्ट नेताओं का कहना था कि यह झूठी आजादी है। सच्ची आजादी तब होगी जब कम्यूनिस्ट विचारधारा के अनुरूप देश की शासन व्यवस्था में बदलाव हो जाएगा। जब विभिन्न वर्गों का अंतर मिट जाएगा तब सच्ची आजादी आएगी। यही वजह है कि आजादी के बाद 74 साल में कभी कम्यूनिस्ट पार्टी कार्यकर्ताओं ने आजादी का जश्न नहीं मनाया। ये आजादी झूठी है का नारा भारतीय कम्यूनिस्ट पार्टी के नेताओं ने दिया था, लेकिन 1964 में भाकपा से अलग होने के बावजूद माकपा ने कभी इस नारे से अपने को अलग नहीं दिखाया।
माकपा ने बताई वजह
माकपा की केंद्रीय समिति के सदस्य सुजान चक्रवर्ती ने मीडिया को बताया है कि पार्टी का स्वतंत्रता दिवस मनाने का तरीका अन्य लोगों से भिन्न रहा है। पहले पार्टी कार्यकर्ता इसे विचार गोष्ठी व वैचारिक चिंतन के अवसर के तौर पर मनाते रहे हैं। फासिस्ट व सांप्रदायिक ताकतों से देश व समाज को होने वाले खतरों पर केंद्रित चर्चाओं के जरिये जन जागरुकता का काम करते रहे हैंं। इस बार पार्टी ने स्वतंत्रता दिवस आयोजनों को विशेष तौर पर करने का फैसला किया है, क्योंकि 75 साल या 100 साल के आयोजन बार—बार नहीं होते हैं। इसलिए इस बार आजादी का समारोह धूमधाम से मनाया जाएगा।
भाकपा भी बदल रही है चेहरा
भारतीय कम्यूनिस्ट पार्टी केरल की मलप्पुरम इकाई पिछले महीने रामायण पर ऑनलाइन संवाद कार्यक्रम का आयोजन कर चुकी है। रामायण और भारतीय विरासत विषय पर केंद्रित संवाद कार्यक्रम का आयोजन 25 जुलाई से किया गया था। इस कार्यक्रम में भाकपा के कई बड़े नेता शामिल हुए। मलप्पुरम में सीपीआई के जिला सचिव पीके कृष्णदास ने इस मौके पर मीडिया को बताया था कि रामायण पर संवाद कार्यक्रम के आयोजन का मकसद सांप्रदायिक व फासिस्ट संगठनों के उस दुष्प्रचार की काट करना है, जो रामायण व हिंदू प्रतीकों को लेकर किया जा रहा है। उन्होंने कहा कि रामायण जैसे महाकाव्य हमारी साझी संस्कृति की विरासत हैं। इनके बारे में गुमराह नहीं किया जाना चाहिए।
बदल गया है राजनीतिक विमर्श
कम्यूनिस्ट दलों की वैचारिकी और व्यवहार में आए बदलाव पर राजनीतिक विश्लेषक रुद्र प्रताप दुबे कहते हैं कि 2014 के बाद एक बड़ा बदलाव जो भारत में आया है वो ये है कि राजनीति का विमर्श बदल गया है। भारत की वर्तमान राजनीति में 'राष्ट्रवाद और हिन्दू धर्म की ओर झुकाव' सफलता पाने का मंत्र बनता जा रहा है और जिसे भी इस बात पर संदेह हो उसे धर्म निरपेक्ष दलों के वर्तमान आचरण को गौर से देखना चाहिए।
हिन्दू धर्माचार्यों के आश्रम और हिन्दू मंदिरों के दरवाजे आज राजनीतिक दलों के प्रमुखों के साथ गुलजार हैं। कम्युनिस्ट पार्टी जो मंदिरों और पूजा पद्धति से कोसों दूर रहती थी, वो केरल में रामायण पर ऑनलाइन संवाद करवा रही है। पूरे एक हफ्ते की इस टॉक सीरीज में रामायण पर उनके वक्ताओं ने अपने विचार रखे। सिर्फ इतना ही नहीं दशकों तक 'यह आजादी झूठी है' का नारा लगाने वाले कम्युनिस्ट इस बार 15 अगस्त को बंगाल में धूमधाम से स्वाधीनता दिवस मनाने जा रहे हैं।
इस तरह के निर्णयों का स्वागत है लेकिन इस बदले राजनीतिक माहौल ने ये जरूर स्पष्ट कर दिया है कि अगर देश में अल्पसंख्यक समाज दशकों तक विकास की दौड़ में पीछे रहा तो इसके लिए वो राजनीतिक दल भी जिम्मेदार हैं। जो उनके हितैषी बनते थे, लेकिन आज दूसरी तरफ की हवा देखकर उधर उड़ चले हैं।