मरीजों की सेवा के लिए अपना जीवन कर दिया बलिदान, ये थे आखिरी शब्द

शोधकर्ता राजीव मल्होत्रा बताते हैं अस्पतालों में भटकते हुए कोरोना के चलते उनकी मां की मृत्यु हो गई, जो एक डॉक्टर थीं।

Newstrack Network :  Network
Published By :  Shreya
Update:2021-05-07 16:59 IST

डॉक्टर (सांकेतिक फोटो साभार- सोशल मीडिया)

नई दिल्ली: देश में कोरोना वायरस की दूसरी लहर (Second wave of Coronavirus) की दस्तक होने के बाद संक्रमण की रफ्तार बेकाबू हो चुकी है। तेजी से मरीजों की संख्या में इजाफा होने से अस्पतालों में लोगों की भीड़ बढ़ गई है, जो पर्याप्त चिकित्सा सुविधाओं के इंतजार में हैं। इस बीच कई ऐसे लोग हैं, जिन्होंने मरीजों और फ्रंटलाइन वर्कर्स को मदद की पेशकश की है।

देश में कोरोना संक्रमण की बेकाबू स्थिति के बीच कई लोग मानवीय कार्यों में भाग ले रहे हैं। वहीं, कुछ केवल महामारी की आलोचना कर रहे हैं और कह रहे हैं कि महामारी ने हमारी लाइफस्टाइल को नष्ट कर दिया है। लेकिन इस महामारी के पीछे क्या कारण है, यह जीवन के वास्तविक रंगों को क्यों दिखा रहा है? इस बीच जाने-माने शोधकर्ता राजीव मल्होत्रा ने कोविड संकट पर अपनी बात रखी है।

शोधकर्ता ने माइक्रो-ब्लॉगिंग साइट पर चर्चा की कि कैसे उनकी मां कैसे गुजर गईं और महामारी पर उनके विचारों को भी साझा किया है।

कोरोना के चलते हुई मां की मृत्यु

अपनी मां के बारे में बात करते हुए शोधकर्ता राजीव मल्होत्रा बताते हैं कि वह एक डॉक्टर थीं, जिन्होंने चिकित्सा को धर्म माना और सालों तक मानवता की सेवा की। दिल्ली के अस्पतालों में भटकते हुए कोरोना वायरस की वजह से 95 वर्षीय महिला डॉक्टर की मृत्यु हो गई। उन्हें समय पर इलाज नहीं मिल सका। राजीव ने बताया कि अपने आखिरी समय में भी जो उन्होंने विदेश में रह रहे अपने बेटे से कहा, उसे सुनकर आप भी उन्हें सलाम करने के लिए मजबूर हो जाएंगे।

ये था मां का आखिरी संदेश

उन्होंने बताया कि मेरे लिए मेरी मां का आखिरी संदेश था-

उनके बाद Attendants और गांवों की देखभाल करूं

उनकी मृत्यु प्राकृतिक कानून के कारण हुई

भारत माता के लिए शोक

कोरोना पर उनकी मां के विचार

कोरोना पर उनकी मां के विचारों को बताते हुए राजीव मल्होत्रा ने बताया कि महामारी के दौरान मेरी मां ने मुझे नियमित रूप से यह बताया कि यह ब्रह्मांड के तर्क के अनुसार है। हमें अपना बस अपना कर्म करना चाहिए।

राजीव मल्होत्रा बताते हैं कि उनकी मां बहुत बहादुर और अंत तक बेहद स्पष्ट थीं। वो पूर्व-विभाजन भारत में एक मेडिकल डॉक्टर के रूप में स्वर्ण पदक विजेता और पहली महिला डॉक्टर थीं। उन्होंने कभी भी पैसों के लिए काम नहीं किया, बल्कि अपनी सेवा में स्वेच्छा से लगी रहीं। उन्होंने उदाहरण देकर सिखाया कि देना वाला बनो, न कि लेने वाला।

राजीव मल्होत्रा ने कहा कि मैंने भारत को ऑक्सीजन कॉन्सेंट्रेटर भेजने और मदद करने का फैसला लिया। पूरी दुनिया मानवता पर बोल रही है। हमें अपने सामूहिक कर्म को आत्मनिरीक्षण करने की आवश्यकता है।


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