Dayanand Saraswati: दूध में पिसा कांच मिलाकर की गई थी हत्या, हत्यारिन ने ऐसे ली थी माफी
Dayanand Saraswati: दयानंद सरस्वती का मूल नाम मूल शंकर था। इनका जन्म 12 फऱवरी, 1824 में गुजरात के टंकारा में हुआ था।
Dayanand Saraswati: दयानंद सरस्वती का नाम सभी लोग एक बड़े समाज सुधारक के रूप में जानते हैं । लेकिन क्या आपको पता है कि इस महान समाज सुधारक की मौत कैसे हुई थी (kaise hui Dayanand Saraswati ki maut) । क्या ये मौत स्वाभाविक थी या फिर किसी साजिश का शिकार हुए थे। किसने रची थी ऐसे महान व्यक्तित्व को एक भयानक मौत देने की साजिश। ऐसे व्यक्ति का कौन शत्रु हो सकता है जिसने अपने जीवन का ध्येय समाज का भला करना बनाया हो।
दयानंद सरस्वती देश के अग्रणी क्रांतिकारियों में सर्वोपरि हैं। उन्होंने कहा था- मेरी यह स्पष्ट मान्यता है कि राजनीतिक स्तर पर मेरे देशवासियों की निर्बाध प्रगति के लिए तथा संसार की सभ्य जातियों के समुदाय में आर्यावर्त (भारत) को सम्माननीय स्थान प्रदान करने के लिए यह अनिवार्य है कि मेरे देशवासियों को पूर्ण स्वाधीनता प्राप्त हो। सर्वशक्तिशाली परमात्मा के समक्ष प्रतिदिन मैं यही प्रार्थना करता हूं कि मेरे देशवासी विदेशी सत्ता के जुए से शीघ्रातिशीघ्र मुक्त हों।
दयानंद सरस्वती के प्रमुख काम (Dayanand Saraswati Major Works)
आर्य समाज की स्थापना (Arya Samaj ki sthapna)
वेदों की ओर लौटो नारा (vedo ki or lauto nara)
स्वराज्य का नारा (Swarajya ka nara)
पाखंड खण्डिनी पताका फहराई (hypocrisy hoisted the flag)
दलितोद्धारक
स्त्री शिक्षा के प्रचारक (stree shiksha pracharak)
प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के रणनीतिकार (First Freedom Struggle Strategist)
क्रांतिकारी संन्यासी (krantikari sansyasi)
कौन रहे अनुयायी
दयानंद सरस्वती पर चर्चा करने से पहले ये जान लीजिए कि कौन कौन महापुरुष इनके अनुयायी रहे हैं इसकी लिस्ट वैसे तो बहुत लंबी है । लेकिन कुछ खास नामों में मादाम भिकाजी कामा, भगत सिंह, पण्डित लेखराम आर्य, स्वामी श्रद्धानन्द, चौधरी छोटूराम, पण्डित गुरुदत्त विद्यार्थी, श्यामजी कृष्ण वर्मा, विनायक दामोदर सावरकर, लाला हरदयाल, मदनलाल ढींगरा, राम प्रसाद 'बिस्मिल', महादेव गोविंद रानाडे, महात्मा हंसराज, लाला लाजपत राय इत्यादि के नाम उल्लेखनीय रूप से लिए जाते हैं।
अब पहला सवाल दयानंद सरस्वती कौन थे (Dayanand Saraswati kain the)
दयानंद सरस्वती का मूल नाम मूल (Dayanand Saraswati real name) शंकर था। इनका जन्म (Dayanand Saraswati birth)12 फऱवरी, 1824 में गुजरात के टंकारा में हुआ था। इनके पिता नाम (Dayanand Saraswati father name) करशनजी लालजी तिवारी और मां का नाम (Dayanand Saraswati mother name) यशोदाबाई था। इनके पिता टैक्स कलेक्टर थे। मूलशंकर ने शुरुआत में पंडित बनने के लिए वेद शास्त्र व धार्मिक पुस्तकों का गहन अध्ययन किया।
ज्ञान की प्राप्ति कैसे हुई (Dayanand Saraswati ko gyan ki prapti)
चूंकि मूलशंकर का परिवार धार्मिक था (Dayanand Saraswati Family) । इसलिए हिन्दू पर्व धूमधाम से मनाए जाते थे। वह शिवरात्रि का पर्व था जब परिवार रात्रि जागरण कर रहा था। मूलशंकर ने देखा कि शिव का प्रसाद चूहे खा रहे हैं। यह देखकर उनके मन में सवाल उठा कि जो भगवान स्वयं अपनी रक्षा नहीं कर सकता वह मानवता की रक्षा क्या करेगा।
सत्य की खोज
इस बीच हैजा महामारी से मूलशंकर के चाचा और बहन की मौत हो गई। अब वह जन्म और मरण के सवालों में उलझ गए। और अंततः विवाह न करने का निश्चय कर 22 साल की उम्र में सत्य की खोज में निकल पड़े।
ज्ञान की प्राप्ति
घर से निकल कर भटकते हुए मूलशंकर की यात्रा को पड़ाव मिला गुरु विरजानंद के पास, जहां उन्होंने पाणिनि व्याकरण, योग वेदांग सूत्र, आदि का विषद अध्ययन किया। आखिरकार अध्ययन पूर्ण हुआ। गुरुदक्षिणा का समय आया तो गुरु ने कहा गुरु दक्षिणा मांगी जिसमें उन्होंने वचन लिया। विद्या को सफल कर दिखाओ, परोपकार करो, सत्य शास्त्रों का उद्धार करो, मत मतांतरों की अविद्या को मिटाओ, वेद के प्रकाश से इस अज्ञान रूपी अंधकार को दूर करो, वैदिक धर्म का आलोक सर्वत्र विकीर्ण करो। यही गुरुदक्षिणा है। उन्होंने आशीर्वाद दिया कि ईश्वर उनके पुरुषार्थ को सफल करे।
अंतिम शिक्षा -मनुष्यकृत ग्रंथों में ईश्वर और ऋषियों की निंदा है, ऋषिकृत ग्रंथों में नहीं। वेद प्रमाण हैं। इस कसौटी को हाथ से न छोड़ना। मूलशंकर के मन का अंधकार भ्रम दूर हो चुका था।
मौत का भयानक षडयंत्र और हत्यारिन को माफी
स्वामी दयानंद सरस्वती की मृत्यु (Dayanand Saraswati death ) 30 अक्टूबर 1883 को दीपावली के दिन सन्ध्या के समय हुई थी। लेकिन मृत्यु से पूर्व उन्हें असह्य पीड़ा और वेदना से गुजरना पड़ा जिसे उन्होंने उनके अन्तिम शब्दों में यो व्यक्त किया- "प्रभु! तूने अच्छी लीला की। आपकी इच्छा पूर्ण हो।"
कहते हैं मृत्यु से पूर्व वह जोधपुर नरेश महाराज जसवन्त सिंह के निमन्त्रण पर जोधपुर गये थे। वहां उनके नित्य प्रवचन होते थे कभी कभी महाराज जसवन्त सिंह भी प्रवचन सुनने आते थे। वह बहुत आग्रह पूर्वक दो-चार बार स्वामी दयानंद को भी अपने महल में ले गए।
कहते हैं महाराज जसवंत सिंह की एक प्रिय वेश्या थी नन्हीं। नन्हीं का राजकाज में अनावश्यक हस्तक्षेप था। महाराज जसवन्त सिंह भी उसको नहीं रोक पाते थे। प्रजा के हित के लिए स्वामी दयानंद ने महाराज को समझाया तो उन्होंने विनम्रता से स्वामी दयानंद की बात स्वीकार कर ली और नन्हीं नामक उस वेश्या से सम्बन्ध तोड़ लिए। इससे नन्हीं स्वामी दयानंद के खिलाफ हो गई। उसने स्वामी जी के रसोइए कलिया उर्फ जगन्नाथ को अपनी तरफ मिला कर उनके दूध में पिसा हुआ कांच डलवा कर पिलवा दिया।
इसके बाद उसने भयभीत होकर या पकड़े जाने के डर से स्वामी जी के पास आकर अपना अपराध स्वीकार कर लिया और अपने इस नीच काम के लिए क्षमा मांग ली। उदार-हृदय स्वामी जी ने उसे राह-खर्च और जीवन-यापन के लिए पांच सौ रुपए देकर वहां से विदा कर दिया ताकि पुलिस उसे परेशान न करे।
लेकिन विश्लेषक इसे संदेह की नजर से देखते हैं कि एक वेश्या ऐसा काम कर सकती है। लोगों का मानना है कि स्वामी दयानंद की क्रांतिकारी विचारधारा से भयभीत अंग्रेजों ने ये साजिश रची थी। जिसमें वेश्या के खुलासे के बाद जब स्वामी जी को जोधपुर के अस्पताल में इलाज के लिए भर्ती करवाया गया तब कहते हैं वहां के चिकित्सक ने भी औषधि के नाम पर स्वामी दयानंद को विष पिलाना शुरू कर दिया। इससे स्वामी दयानंद की हालत बिगड़ने लगी उन्हें अजमेर के अस्पताल में लाया गया। मगर तब तक बहुत देर हो चुकी थी। और 30 अक्टूबर को दीपावली के दिन दीप जलाने के समय आर्यावर्त ! उठ, जाग, आगे बढ़। समय आ गया है, नये युग में प्रवेश कर। का संदेश देने वाले स्वामी दयानंद की आंखें बंद हो गईं ये दीप बुझ गया रह गया सिद्धान्त, कृण्वन्तो विश्वमार्यम् - अर्थात सारे संसार को श्रेष्ठ मानव बनाओ।।