दिल्ली हाई कोर्ट का फैसला, बेटे के 18 वर्ष पूरे होने पर पिता की जिम्मेदारी नहीं हो सकती खत्म

रिश्ते के डोर जितनी मजबूत होती है, उतनी नाजुक भी होती है। रिश्तों को बनाए रखने में पूरी उम्र गुजर जाती है।

Published By :  Raghvendra Prasad Mishra
Update: 2021-06-23 09:49 GMT

दिल्ली हाई कोर्ट की फाइल तस्वीर (फोटो साभार-सोशल मीडिया)

नई दिल्ली: रिश्ते के डोर जितनी मजबूत होती है, उतनी नाजुक भी होती है। रिश्तों को बनाए रखने में पूरी उम्र गुजर जाती है। लेकिन आज के समय में रिश्ते की डोर काफी नाजुक हो गई है। इसका प्रमाण है तलाक के बढ़ते मामले। दिल्ली हाई कोर्ट ने आज इसी तरह के एक तलाक के मामले में बड़ा फैसला सुनाया है। हाई कोर्ट ने कहा है कि यदि बेटे की उम्र 18 साल की हो जाती है, तब भी पिता का उसके प्रति जिम्मेदारी खत्म नहीं होती। बेटे के बालिग होने के बाद उसका खर्च अकेले मां पर नहीं डाला जा सकता। उसके पढ़ाई व अन्य खर्चों की जिम्मेदारी उसके पिता की बनती है। कोर्ट ने फैसले में लड़के के पिता को मां को हर महीने 15,000 रुपए देने का आदेश दिया है, जिससे वह तलाक ले चुका है।

कोर्ट ने कहा है कि लड़के के ग्रैजुएशन पूरी करने तक या फिर उसे नौकरी लगने तक पिता को यह भत्ता देना होगा। कोर्ट ने टिप्पणी करते हुए कहा कि पिता लिविंग कास्ट बढ़ने का हवाला देकर इस जिम्मेदारी से नहीं बच सकता। ऐसा करने से पूरा खर्चा उसकी मां पर आ जाएगा, जोकि गलत है। ज्ञात हो कि इसस पहले वर्ष 2018 में ट्रायल कोर्ट ने महिला की अर्जी खारिज करते हुए बेटे की पढ़ाई के लिए पिता की तरफ से खर्च दिए जाने की बात से इनकार कर दिया था। जबकि नाबालिग बेटी की पढ़ाई के लिए पिता को खर्च देने का आदेश दिया था।

हाई कोर्ट के जस्टिस सुब्रमण्यन प्रसाद ने कहा कि मां को लड़के के बालिग होने पर उसकी जिम्मेदारी संभालनी चाहिए, लेकिन आय न होने पर उसके पढ़ाई समेत अन्य तमाम खर्चों के लिए दिक्कत आएगी। ऐसे स्थिति में पिता को अपनी आय से लड़के के कमाने योग्य होने तक जरूरी खर्च देना चाहिए। गौरतलब है कि कपल ने नवंबर, 1997 में शादी की थी और उनके दो बच्चे हैं। लेकिन दोनों में नबंबर 2011 में तलाक हो गया। उनके दोनों बच्चों में बेटे की उम्र 20 साल है और लड़की की उम्र 18 साल। मैमिली कोर्ट के आदेश के अनुसार बेटा पिता से तब तक खर्चा लेने का हकदार है जब तक वह 18 वर्ष का नहीं हो जाता। जबकि बेटी को यह अधिकार तब तक है जब तक वह नौकरी नहीं करने लगती या फिर उसकी शादी नहीं हो जाती। हाई कोर्ट ने अपने आदेश में कहा है कि चूंकि दोनों बच्चे मां के साथ रहते हैं ऐसे में मेंटेनेंस देने का मकसद है कि उन्हें जरूरी चीजों की दिक्कत न होने पाए।

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